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    मुजफ्फरपुर की बेटी जाह्नवी का अनोखा अभियान, बेटी होने पर न हों निराश

    By Dharmendra Kumar SinghEdited By:
    Updated: Wed, 27 Apr 2022 02:22 PM (IST)

    Muzaffarpur News लैंगिक भेदभाव मिटाने के लिए मुजफ्फरपुर की बेटी कर रही जागरूक। गांव-गांव पहुंच शिक्षा का महत्व बतातीं माता-पिता का मिलता सहयोग। नारी सशक्तीकरण का अनोखा उदाहरण। मुजफ्फरपुर सीतामढ़ी और बेतिया के गांवों में चला चुकी हैं अभियान।

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    जाह्नवी के प्रयास से दिख रहा समाज में बदलाव। फोटो-जागरण

    मुजफ्फरपुर, {अंकित कुमार}। बेटियां किसी से कमजोर नहीं, न ही बोझ। फिर उनके जन्म पर निराशा क्यों...? मुजफ्फरपुर की 12वीं की छात्रा जाह्नवी का यह सवाल सीधे दिलोदिमाग पर दस्तक देता है। उनलोगों के सोच और समझ को विकसित करता है जो लैंगिक व्याख्या कर सामाजिक विद्रूपता फैलाते हैं। कटरा प्रखंड के अम्मा गांव की जाह्नवी उस उम्र से जागरूकता फैला रहीं, जब ब'चों में इसकी समझ कम ही होती है। गांव-गांव घूमकर लोगों को बताती हैं कि बेटियों के बिना घर-परिवार और समाज में संतुलन नहीं बनाया जा सकता। 2018 में हुई शुरुआत जाह्नवी ने वर्ष 2018 में अभियान की शुरुआत की। पिता संतोष कुमार के किसी परिचित के यहां बेटी होने पर उनके साथ अस्पताल गई थीं। तब वह महज 11 साल की थीं।

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    बेटी होने पर लोगों को मायूस देखा। पुरुषवादी समाज में बेटियों को कमतर आंकने की बात जाह्नवी के भीतर घर कर गई। ठान लिया कि समाज से बेटे-बेटियों के भेद को मिटाना है। मुजफ्फरपुर के अलावा सीतामढ़ी, बेगूसराय और बेतिया के एक दर्जन से अधिक गांवों में अभियान चला चुकी हैं। इसमें उनके सामाजिक कार्यकर्ता पिता का भी सहयोग मिलता है। पांच हजार से अधिक लोगों से कर चुकीं संवाद जाह्नवी ने अभियान की शुरुआत अपने ही गांव से की थी। माता-पिता का सहयोग मिला तो हौसला बढ़ा। 11 साल की ब'ची का लैंगिक समानता पर संवाद लोगों को प्रभावित कर रहा था। उसने दहेज के लिए रुपये जमा करने की जगह उसे शिक्षा में निवेश करने की सलाह दी। उन्हें सक्षम बनाने के प्रति जागरूक किया। अभी तक वे पांच हजार से अधिक लोगों से संवाद कर चुकी हैं। भेदभाव व हिंसा पर लिखी पुस्तक लड़कियों के साथ भेदभाव व हिंसा पर जाह्नवी ने 'शिरोज : ब्रेकिंग स्टोरियोटाइप्स' पुस्तक की रचना की है।

    पांच महीने में इसकी 800 से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। उन्हें संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन की ओर से 2020 में गर्ल अप ग्रांट और 2021 में गर्ल अप स्कालरशिप मिल चुकी है। इस साल भी संयुक्त राष्ट्र फाउंडेशन ने विश्व के 175 देशों में इस क्षेत्र में कार्य कर रहीं 20 लड़कियों में जाह्नवी का चयन किया है। 29 जुलाई को कनाडा में लैंगिक समानता पर होनेवाले कांफ्रेंस के लिए भी उन्हें आमंत्रित किया गया है। दिख रहा बदलाव जाह्ववी के प्रयास से बदलाव दिख रहा है। गन्नीपुर में शैलेंद्र की चार बेटियां और तीन बेटे हैं। वे बेटों को तो पढ़ा रहे थे, जबकि बेटियां घर के कामकाज में सहयोग करती थीं। जाह्नवी ने शैलेंद्र और उनकी पत्नी से संवाद कर बेटियों को स्कूल भेजने की सलाह दी। अब उनकी दो बेटियां चंदा व पूजा स्कूल जाने लगी हैं। दो अभी छोटी हैं। सकरा निवासी विनोद बिनुराज व रजनीकांत सिंह, बेतिया के बालेश्वर प्रसाद, बालूघाट के पंकज कुमार भी प्रेरित होकर बेटियों को शिक्षित कर रहे हैं।