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नेपाल से बिहार पहुंचा मिथिला बिहारी का डोला, जानिए रामायण काल की इस परंपरा के बारे में...

मधुबनी के हरलाखी थाना क्षेत्र के फुलहर में पुष्प वर्षा कर हुआ भव्य स्वागत। ग्रामीणों ने साधु संतों व श्रद्धालुओं के लिए की भंडारे की व्यवस्था।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 25 Feb 2020 10:03 PM (IST)Updated: Tue, 25 Feb 2020 10:44 PM (IST)
नेपाल से बिहार पहुंचा मिथिला बिहारी का डोला, जानिए रामायण काल की इस परंपरा के बारे में...
नेपाल से बिहार पहुंचा मिथिला बिहारी का डोला, जानिए रामायण काल की इस परंपरा के बारे में...

मधुबनी, जेएनएन। मिथिला परंपरा के अनुसार वर्षों से जारी मध्यम परिक्रमा यात्रा मंगलवार को थाना क्षेत्र के कल्याणेश्वर से चलकर गिरजा महारानी स्थान फुलहर पहुंची। यहां श्री मिथिला बिहारी के डोले का पुष्प वर्षा से स्वागत किया गया। मिथिला बिहारी का परिक्रमा डोला अमावस्या के दिन नेपाल के जनकपुर से तीन किमी दूर स्थित कचुरी नामक स्थान से उठकर हनुमानगढ़ी होते जिले के कल्याणेश्वर में विश्राम के बाद यहां पहुंचा। दोपहर 12 बजे डोला आते ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। साथ में हजारों साधु संत व श्रद्धालु भी रहे। फुलहर में रातभर भजन, कीर्तन, रामलीला व झांकी समेत अन्य धार्मिक कार्यक्रम होंगे।  रात्रि विश्राम के बाद बुधवार को यहां से परिक्रमा नेपाल के मटिहानी पहुंचेगी। 

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रामायण काल की परंपरा 

परिक्रमा में शामिल संत रामभूषण दास निर्मोही ने बताया कि रामायण काल से ही इस परिक्रमा यात्रा की परंपरा रही है। 84 कोस की यात्रा में शामिल होने से 84 लाख योनियों से उद्धार हो जाता है। सुख, समृद्धि व शांति मिलती है। 

डोला की हुई पूजा -अर्चना 

 हजारों श्रद्धालुओं ने मिथिला बिहारी और किशोरी जी के डोले की पूजा -अर्चना की। मिथिला बिहारी के आगे लाल तथा किशोरी जी की डोली के आगे पीला झंडा दिख रहा था। डोली के पीछे भजन- कीर्तन करते साधु-संत चल रहे थे। यह मध्यमा परिक्रमा मेला यात्रा मिथिला क्षेत्र से जुड़े भारत नेपाल के प्रसिद्ध पंद्रह देव स्थलों का भ्रमण 15 दिनों में करती है। सभी देव स्थलों की अनेक परंपरा जुड़ी है। शास्त्र के अनुसार मनुष्य जीवन में कम से कम एक बार परिक्रमा भ्रमण करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

भारत-नेपाल को जोड़ती है यात्रा

यह ऐतिहासिक परिक्रमा मेला सदियों से चलती आ रही है। दो भागों बंटी मिथिला की यह यात्रा भारत-नेपाल के संबंधों को जोड़ती है।  भारत से शुरू होकर यह परिक्रमा मेला जनकपुरधाम नेपाल में जाकर संपन्न होता है। मिथिलांचल में सदियों से चले आ रहे परिक्रमा मेला सम्पन्न होने के अगले दिन होली पर्व मनाने की परंपर है। यात्रा में शामिल नेपाल के श्रद्धालुओं ने बताया कि परिक्रमा में भाग लेने से मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम व नारीशक्ति की प्रतीक माता सीता की भक्ति व प्रेरणा को समझने का अवसर मिलता है। इसलिए मिथिलावासी को एक बार इस यात्रा में शामिल होना चाहिए।

पुलिस बल की तैनाती

हरलाखी थाना क्षेत्र व भारत-नेपाल सीमा पर स्थित फुलहर में इस ऐतिहासिक यात्रा मेला को देखने जुटी भीड़ को लेकर पर्याप्त पुलिस बल की तैनाती थी। थानाध्यक्ष अशोक कुमार ने बताया कि मेला में विधि व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम हैं। 

आठ मार्च को जनकपुरधाम में समाप्त होगी परिक्रमा

यात्रा 26 को मटिहानी स्थान नेपाल, 27 को जलेश्वर स्थान नेपाल, 28 को मरइ स्थान, 29 को ध्रुवकुंड, एक मार्च को कंचन वन, दो मार्च को परवत्ता, तीन मार्च को धनुषाधाम, चार मार्च को सतोखर, पांच मार्च को औरही स्थान, छह मार्च को करुणा स्थान एवं सात मार्च को कल्याणेश्वर स्थान कलना में परिक्रमा यात्रा संकल्प के साथ पूरी कर विश्वामित्र आश्रम विशौल में विश्राम करेगी। अगले दिन जनकपुर धाम की पंचकोसी परिक्रमा कर यात्रा समाप्त हो जाएगी। 


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