सीतामढ़ी में चौदह कोसी परिक्रमा के लिए निकली माता सीता के डोला का जगह-जगह स्वागत
Sitamarhi News माता सीता की चौदह कोसी परिक्रमा का है पौराणिक महत्व। परिक्रमा का उद्देश्य धर्म में निष्ठा को बढ़ाने के साथ जानकी जन्मभूमि के महत्व को जन-जन को बतलाना है। डोला में विराजित दिव्य विग्रह के दर्शन से यश वैभव व कृति की होती है प्राप्ति।

सीतामढ़ी, जासं। रजत द्वार मां जानकी मंदिर से चौदह कोसी दीर्घ गृह परिक्रमा को लेकर निकली माता सीता के डोला का विभिन्न गांवों में ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया जा रहा है। माता सीता के डोला चौदह कोसी परिक्रमा का पौराणिक महत्व है। परिक्रमा जानकी नवमी के दिन अन्तरगृह परिक्रमा के साथ संपन्न होगी। परिक्रमा का उद्देश्य धर्म जागरण, धर्म निष्ठा, माता जानकी जन्मभूमि के महत्व एवं अतुल शक्ति से जनमानस को परिचित कराना है। दिव्य विग्रह जो डोली में रखी जाती है ग्रामीण उसका दर्शन कर यश वैभव एवं कृति को प्राप्त करते हैं।
नारी शक्ति में सर्वोच्च आदर्श माता सीता का त्याग तपस्या गुण स्वभाव शास्त्र वर्णित है। उनके दिव्य गुणों का प्रतीक स्वरूप में जानकी मंदिर से यात्रा आरंभ होकर विभिन्न गांव में दर्शन के लिए जाती है। सिया सुंदरी शरण दास के नेतृत्व में झुनझुनिया बाबा, किशोरी शरण मधुकर, सरयू शरण दास, परमहंस दास फुल बाबा, शंभू बाबा, वैदेही शरण त्यागी जी, सिद्ध बाबा, किशोरी दास, नागा बाबा ने परिक्रमा का शुरुआती नेतृत्व किया था। तब गाजे-बाजे हाथी घोड़े एवं हजारों की भीड़ के साथ यात्रा अविस्मरणीय रहती थी।
जन सहयोग से परोसे जाते हैं विभिन्न भोग
कालांतर में समय के बदलाव के साथ मंदिर के साधु महात्मा की यात्रा सीमित होती गई। जिन जिन गांव से यात्रा जाती है उनका सहयोग काफी अधिक मिलता है। गांव में बाल भोग, राजभोग, अल्पाहार,फलाहर, शर्बत की व्यवस्था ग्रामीणों के द्वारा की जाती है। जिस गांव में डोला का रात्रि विश्राम होता है वहां भजन कीर्तन श्री राम कथा, माता जानकी के चरित्र पर चर्चा एवं बधाई गीत गाए जाते हैं। जानकी नवमी के दिन अंतर गृह परिक्रमा (नगर में) का आरंभ होता है। रामानंद आश्रम के महंत राजेश्वर दास जन सहयोग से सबका स्वागत कर राजभोग कराते है। रिंग बांध होते हुए रेलवे स्टेशन सीता घाट, शंकर मंदिर, मेहसौल चौक, पासवान चौक, बसुश्री चौक होते हुए पुनः जानकी मंदिर में परिक्रमा संपन्न हो जाता है।
परिक्रमा का महत्व
विष्णु पुराण में परिक्रमा का महत्व उल्लेख किया गया है। सनातन धर्म से प्राणी जुड़े, धर्म जागरण हो। सभी प्राणी जानकी माता का दर्शन कर सकें इसलिए चौदह कोसी परिक्रमा का आयोजन किया जाता है। देश के के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर होने वाली परिक्रमा की तरह जानकी जन्मभूमि से विश्वकल्याण की भावना से यह परिक्रमा आयोजित की जाती है। आर यह परिक्रमा माता सीता की प्राकट्य भूमि की सबसे बड़ी परिक्रमा है।
ग्रामीण कराते हैं साधु संतों को भोग
साधु संतों की सेवा बाल भोग भंडारा राजभोग, गांव के ग्रामीणों द्वारा ही किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम ने अपने शिष्यों को पहलवानी की शिक्षा परशुरामपुर गांव में दी थी, वहां माता सीता के डोला का भव्य स्वागत किया जाता है। लक्ष्मणा तट पर अवस्थित लगमा शिव मंदिर में डोला को रखा जाता है और ग्रामीणों द्वारा भव्य स्वागत किया जाता है। पश्चिम में तपस्वी नारायण दास जी के आश्रम पर भव्य रूप से डोला का स्वागत किया जाता है। उत्तर में मैबी होते हुए पंथपाकड़ धाम में श्रद्धालुओं द्वारा जानकी माता के डोला साथ आए भक्तों का अद्भुत स्वागत किया जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से इस आयोजन का महत्व काफी अधिक है ।ऋषि मुनि और संतों ने इसकी शुरुआत काफी शोध एवं अनुभव के आधार पर की है।
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