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    Diwali Puja 2022 : आज भी जिंदा है कंदील बनाने की अनूठी परंपरा, इसका है खास महत्व

    By Jagran NewsEdited By: Ajit kumar
    Updated: Sat, 22 Oct 2022 01:40 PM (IST)

    शिवहर समस्तीपुर और सीतामढ़ी के कुछ हिस्सों में यह बनाया जाता है। हवाई जहाज कलश व घड़े की आकृति में बांस की कमाची से बनाई जाती कंदील। डिजाइन के अनुसार एक कंदील की कीमत 100 से 500 रुपये तक है।

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    दीपावली की रात दरवाजे पर कंदील जलाने की परंपरा वर्षों पुरानी है। फोटो: इंटरनेट मीडिया

    मुजफ्फरपुर, जागरण संवाददाता। दीपावली की रात आसमान में तारों सी जगमग होती रंग-बिरंगी रोशनी...ऐसा लगता है आकाशगंगा ने रंगों की चादर ओढ़ ली हो। आकाश की यह खूबसूरती विभिन्न रंगों से सजी कंदील (बांस से बना लैंप, जिसमें दीया जलाकर रखते हैं) से होती है। दीपावली की रात दरवाजे पर कंदील जलाने और आसमान में उड़ाने की परंपरा वर्षों पुरानी है, जिसे उत्तर बिहार के शिवहर, सीतामढ़ी और समस्तीपुर में आज भी सहेज कर रखा गया है। आधुनिकता का रंग चढ़ने के बावजूद इन जिलों में परंपरा का निर्वहन करते हुए कंदील बनाई जा रही है। षट्कोण, हवाई जहाज, कलश, घड़ा आदि आकार की बन रही हैं। शिवहर के महारानी स्थान, ब्रह्मस्थान और देवी स्थान के लिए लोग कंदील बनवाते हैं। शहर से सटी बस्ती में करीब दो हजार लोग कंदील निर्माण में लगे हैं। आकार और डिजाइन के अनुसार एक कंदील की कीमत 100 से 500 रुपये तक है, जबकि इन्हें बनाने में मात्र 25 से 30 रुपये खर्च आता है।

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    दो से तीन लाख तक की कमाई

    शिवहर के कलाकर गणेशी सदा के पुत्र जगमोहन कहते हैं कि हमें खुशी है कि दीपावली पर कंदील जलाने की परंपरा और कला, दोनों जिंदा है। धनकौल निवासी अशर्फी सदा का कहना है कि जमाना भले ही हाईटेक हो गया है, पर कुछ परंपराएं आज भी बरकरार हैं। कंदील इसी का प्रतीक है। सीतामढ़ी में भी कंदील का निर्माण और बिक्री खूब होती है। बांस आधारित सामग्री का निर्माण करने वाले टोलों में लोग दीपावली पर कंदील का निर्माण कर बेचते हैं। सीतामढ़ी-शिवहर के कंदील बनाने वाले लोग एक सीजन में दो से तीन लाख की कमाई कर लेते हैं। इधर, समस्तीपुर के रोसड़ा में वेणु शिल्पकार सुनील कुमार राय 12 साल से कमाची से विभिन्न प्रकार के आकाशदीप का निर्माण कर रहे हैं।

    लोकल के साथ इंडोनेशिया की झाडू से पटा बाजार

    धनतेरस की खरीदारी को लेकर बाजारों में भीड़ उमड़ पड़ी है। झाड़ू, बर्तन, मूर्तियों से लेकर सोना-चांदी तक की बिक्री हो रही। शहर में अघोरिया बाजार चौक, लेप्रोसी मिशन, डोमा पोखर, सिकंदरपुर सहित अन्य जगहों पर 200 लोग झाड़ू निर्माण और बिक्री कर रहे हैं। कुछ लोग पिछले कई माह से पूरे परिवार के साथ झाड़ू निर्माण में लगे थे। धनतेरस पर अच्छी बिक्री की उम्मीद है। कुछ लोग आनलाइन प्लास्टिक झाड़ू की खरीदारी कर रहे हैं। वहीं जिले के व्यापारियों ने इंडोनेशिया की झाड़ू के अलावा असम और बंगाल की फूलझाड़ू मंगवाई है।

    10 हजार से अधिक झाड़ू बनाई जा रही

    सरैयागंज स्थित होलसेल व्यवसायी राजीव कुमार ने बताया कि जिले में झाड़ू के चार होलसेलर है। वैसे हर चौक-चौराहों झाड़ू की बिक्री हो रही। स्थानीय स्तर पर रोज 10 हजार से अधिक झाड़ू बनाई जा रही है। उन्होंने बताया कि यहां के नारियल के पत्ते में खराबी आने से सही सींक नहीं निकल पाई है। इंडोनेशिया से करीब 15 करोड़ का झाड़ू मंगाई गई है। वर्तमान में शहर में नारियल झाड़ू 40 से लेकर 70 रुपये, फूलझाड़ू 50 से 70 रुपये में मिल रही है। इंडोनेशिया की झाड़ू 75 से 80 रुपये में मिल रही है। इसके अलावा गोरखपुर में बनी झाड़ू भी आई है। पंडितों का कहना हैं कि झाड़ू को मां लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। सफाई से आर्थिक समृद्धि और खुशहाली आती है। झाड़ू खरीदने से घर की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने में मदद मिलती है। 

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