बगहा एक मंदिर में होगी चित्रगुप्त पूजा, भैया दूज की तैयारी पूरी
बगहा। नगर के बगहा एक में 80 के दशक में हुआ मंदिर का निर्माण।

बगहा (प.चं), जासं। दीपावली का त्योहार हर्षोल्लास के साथ संपन्न हो गया। दूसरे दिन गोबर्धन पूजा की धूम हर ओर छाई रही। अब चित्रगुप्त पूजा व भैयादूज की तैयारी अंतिम चरण में है। इसको लेकर चित्रांश परिवार के सदस्य तैयारी कर लिए हैं। वहीं बहने भी भाइयों के लिए तैयारियां पूरी कर ली है।
सेवानिवृत्त स्टेशन अधीक्षक जयकुमार प्रसाद ने कहा कि क्षेत्र में सबसे पहले भगवान चित्रगुप्त की पूजा 1980 में शुरू हुई। उस समय मंदिर होने के कारण चित्रांगदा सिनेमा परिसर में पूजा होती थी। सिनेमा मालिक स्व. बच्चा बाबू ने भूमि दान कर मंदिर निर्माण कराया। यहां दिन में पूजा व रात में भाई भोज का आयोजन होता है। जिसमें समाज के सभी लोग शामिल होकर खुशियां बांटते हैं। अमरेश कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि इस दिन चित्रांश समाज के सभी भाई बंधु एकत्रित होकर हर्षोल्लास के साथ भगवान की पूजा करते हैं। भाई अपनी बहनों को देंगे गिफ्ट :-
साल में दो बार भाई बहन के स्नेह व प्रेम से जुड़ा त्योहार आता है। जिसका इंतजार जितना भाई को होता है उससे कहीं अधिक बहन को भी रहता है। इसको लेकर हर भाई अपने क्षमता के अनुसार उपहार की तैयारी करता है। इस बार अपनी छात्रा बहनों के लिए उपहार स्वरूप पढ़ाई से संबंधित सामान देने की योजना है।
- रत्न विनायक, छात्र, नरईपुर वार्ड संख्या 10 भाई बहन की स्नेह से जूड़ा होने के कारण इसका प्रतीक्षा हर किसी को रहता है। बड़ी बहन पढ़ाई के सिलसिला में घर से बाहर रहती है। लेकिन, त्योहार के अवसर पर उसका आगमन हो गया है। पढ़ाई में सहयोग को ध्यान में रखते हुए उसको लैपटॉप देने की योजना बनायी गई है।
- अभिषेक राज आनंदनगर मेरा भाई बाहर पढ़ता है। दीपावली व छठ को लेकर घर आ गया है। अगर नहीं आया होता तो मैंने उसको इसके लिए आने को नहीं बोलती। वैश्विक महामारी का खतरा कम जरूर हुआ है, लेकिन अभी टला नहीं है। इससे बचने के लिए सुरक्षित रहना व मास्क का उपयोग आवश्यक है।
- शिवांगी भालोटिया, छात्रा दयाल सिंह कॉलेज नई दिल्ली मेरा भाई अभी आठवीं में पढ़ता है। छोटा होने के कारण चंचल अधिक है। उसको बार बार मास्क आदि के उपयोग को लेकर ताकीद रखना पड़ता है। इस त्योहार में उसके लिए उपहारों के साथ मैं स्पेशल मास्क खरीदी हूं। वह भी मेरे लिए एक मास्क व एक लीटर सैनिटाइजर खरीदकर घर लाया है। भाई दूज के प्रसाद के समय हम दोनों एक दूसरे को आदान प्रदान करेंगे।
- कुमारी मानवी यदुवंशी गोधन कूटने की है परंपरा :-
अमूमन ग्रामीण इलाकों में भाई दूज की परंपरा बहुत पुरानी व निराली है। इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं गोधन (गोबर से बने एक प्रतिमा कुटने) का त्योहार मनाती है। उसमें मिट्टी के बर्तन (कुलिया) में चिउड़ा व मिठाई आदि सजाकर रखती है। गोबर के बने प्रतिमा (गोधन) के अंदर एक थैले में चना या मटर को पूरी तरह सुरक्षित कर रखा जाता है। जिसे गोधन कुटने के बाद उसमें से निकालकर प्रसाद स्वरूप भाइयों को देती है। इसको बजड़ी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसको खाने वाला बज्र के समान हो जाता है। उससे पहले बहने एक प्रकार के कांटा का पौधा समक्ष रखकर फल फुल के साथ भगवान की पूजा करते हुए ईश्वर से भाइयों के दीर्घायु व स्वस्थ्य जीवन के लिए दुआ करती है। बाद में उसी भाई को श्राप देती है। फिर भगवान से गलती की क्षमा मांगते हुए उसी कांटानुमा पौधा से जीभ को चुभाती है। ऐसी मान्यता है कि पहले श्राप देने के बाद पुन: उनके लिए दुआ मांगने से भाइयों की उम्र लंबी होती है।
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