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    Bihar Election: चिराग ने कम कर दी थी JDU के तीर की धार, कहीं इस बार भी तो नहीं देंगे गच्चा?

    Updated: Sat, 13 Sep 2025 06:16 PM (IST)

    मुजफ्फरपुर में पिछले चुनाव में राजद के बेहतर प्रदर्शन में चिराग फैक्टर का भी योगदान था। लोजपा ने जदयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे जिससे जदयू को कई सीटों पर हार मिली। अब सबकी नजर चिराग पासवान के अगले कदम पर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार स्थिति अलग हो सकती है क्योंकि लोजपा को भाजपा कार्यकर्ताओं का साथ नहीं मिलेगा।

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    चिराग पासवान ने बढ़ाई नीतीश कुमार की टेंशन। फाइल फो

    प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। यह सच है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जिले में राजद ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया था। इसमें राजद के समीकरण के साथ एक और फैक्टर था, जो महत्वपूर्ण रहा। वह था चिराग फैक्टर।

    चिराग के नेतृत्व वाली लोजपा ने उन सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जहां जदयू मैदान में था। नतीजा यह रहा कि कई सीटों पर लोजपा उम्मीदवारों के आए वोट जीत और हार के अंतर से कई गुना अधिक थे।

    मुजफ्फरपुर और वैशाली जिले में चार-चार सीटों में से एक-एक पर ही जदयू के उम्मीदवार जीते। अन्य तीन-तीन सीट पर जदयू उम्मीदवार के हार का कारण लोजपा का प्रत्याशी ही रहा।

    पिछले पांच वर्षों में स्थितियां बदली हैं, मगर जदयू को लेकर चिराग ने अभी पत्ते नहीं खोले हैं। लोजपा ने राज्य के सभी प्रमंडलों में कार्यकर्ता सम्मेलन किया।

    इसमें चिराग को सीएम बनाने की आवाज भी उठी तो विधि व्यवस्था को लेकर सरकार को भी घेरा गया। इससे अगले विधानसभा चुनाव को लेकर भी सस्पेंस है।

    यह सीट शेयरिंग का दबाव भी एक कारण हो सकता है, मगर पिछले चुनाव की तरह चिराग का स्टैंड कायम रहा तो एनडीए की परेशानी बढ़ सकती है।

    तिरहुत के पांच जिलों में 17 पर लड़े थे जदयू के उम्मीदवार

    तिरहुत के पांच जिलों की 49 विधानसभा सीटों में से 17 पर जदयू ने उम्मीदवार दिए थे। मुजफ्फरपुर, वैशाली और सीतामढ़ी में चार-चार, पूर्वी और पश्चिम चंपारण में दो-दो और शिवहर में एक सीट मिली।

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    मुजफ्फरपुर की चार में से एक सकरा में अशोक कुमार चौधरी महज 1400 वोटों से जीत सके। मीनापुर में तो जदयू उम्मीदवार मनोज कुमार को करीब 44 हजार तो लोजपा के अजय कुशवाहा को 43 हजार वोट मिले।

    यहां राजद के राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव 60 हजार वोट लाकर जीत गए। गायघाट में जदयू उम्मीदवार महेश्वर यादव राजद के निरंजन राय से महज छह हजार वोट से हारे। यहां लोजपा उम्मीदवार कोमल कुमारी को 36 हजार वोट मिले थे।

    कांटी में जदयू उम्मीदवार मो. जमाल तीसरे नंबर पर रहे। यहां राजद के इसरायल मंसूरी 10 हजार वोटों से विजयी हुए। लोजपा उम्मीदवार विजय कुमार सिंह को 18 हजार वोट मिले।

    यही हाल वैशाली में रहा। महुआ सीट पर राजद के मुकेश कुमार रोशन 13 हजार वोटों से इसलिए जीते कि लोजपा को यहां 25 हजार से अधिक मत मिले।

    महनार सीट पर लोजपा के रवींद्र कुमार सिंह के 31 हजार वोट जदयू के उमेश सिंह कुशवाहा की हार का कारण बना। राजद की बीना सिंह लगभग आठ हजार वोट से ही जीत सकी थीं। राजापाकर में लोजपा के धनंजय कुमार 24 हजार से अधिक वोट लाकर जदयू की हार के कारण बने।

    सीतामढ़ी में जदयू की हार का कारण 

    सीतामढ़ी की दो सीटों पर जदयू की हार के कारण में लोजपा के साथ रालोसपा भी थी। बाजपट्टी में राजद और जदयू में कांटे का संघर्ष रहा।

    2700 वोटों से राजद के मुकेश कुमार यादव जीते। यहां लोजपा को छह हजार और रालोसपा को 11 हजार के करीब वोट आए। यह 17 हजार वोट जदयू पर भारी पड़ गया।

    बेलसंड में जदयू उम्मीदवार लगभग 14 हजार वोटों से हारे। यहां भी रालोसपा और लोजपा को मिलाकर 29 हजार से अधिक वोट आए।

    चंपारण की दो और शिवहर की एक सीट पर लोजपा के कारण जदयू की हार तो नहीं हुई, मगर यहां भी 10 से 11 प्रतिशत वोट इस पार्टी के उम्मीदवार को आए।

    सम्मानजनक सीट मिलने की उम्मीद

    अब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव की डुगडुगी बजने वाली है, सारी नजर चिराग के अंतिम निर्णय पर है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर चिराग पिछले विधानसभा चुनाव का स्टैंड कायम भी रखते हैं तो वैसी स्थिति नहीं बनेगी।

    यह इसलिए कि पिछली बार लोजपा के उम्मीदवारों को परोक्ष रूप से भाजपा कार्यकर्ता का कहीं ना कहीं साथ जरूर मिला था। इस बार वह स्थिति नहीं बनेगी।

    लोजपा (रा) के जिलाध्यक्ष विश्वकर्मेंद्रो देव उर्फ चुलबुल शाही भी कहते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव की स्थिति नहीं बननी चाहिए। हम एनडीए के साथ हैं, मगर सम्मानजनक सीट की मांग हमारे नेता की है, वह तो मिलना ही चाहिए।