लोक आस्था का महापर्व छठ सामाजिक समरसता का सबसे बेहतर उदाहरण
Chhath Puja 2022 समाज के अंतिम पायदान की जातियों की होती सबसे बड़ी भूमिका सूप और दउरा होता पर्व का मुख्य आधार। सभी व्रतियों का एक सा महत्व भगवान भास्कर को अर्घ्य देने सभी जाति-धर्म के लोग पानी में साथ खड़े रहते।

मुजफ्फरपुर, जासं। लोक आस्था के महापर्व छठ का आयाम दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। नदी घाटों से शुरू हुआ यह अनुष्ठान सात समंदर पार चला गया है। वह भी अपने मूल रूप में। गांव से लेकर महानगर तक पर्व के मूल रूप में परिवर्तन नहीं आया है। इसकी महत्ता रिसर्च की तरफ भी बढ़ रही है। विज्ञानी सूर्य की किरणों के प्रभाव के रूप में पर्व के महत्व को देखते हैं। इसका सबसे मजबूत पक्ष सामाजिक समरसता है। यह इसलिए कि महापर्व में समाज की सभी जातियों का महत्व है। खासकर अनुसूचित जाति की।
पर्व का यह बड़ा सामाजिक आधार
पर्व का आधार सूप और दउरा है। इसका निर्माण समाज का यही वर्ग करता है। सूप के निर्माण से पीढ़ियों से जुड़ी निशा कहती हैं, ‘अगर छुआछूत रहथियै त हमर बनाइल सूप छठी मइया के कइसे चढ़थियै। छठ मइया लगुन सबे बराबर हई। इ बड़का परब हई। एहिने समाज हमेशा चलई त कउनो झगड़ा-झंझट नई होतई।’ इस सूप पर दी जाने वाली सामग्री में कृषि प्रधान चीजें होती हैं। गन्ना, मूली, अदरक, हल्दी मुख्य रूप से बिहार में अतिपिछड़ी जाति की खेती मानी जाती है। इस समाज की अहमियत पर्व में दिखती है। पर्व में जरूरी लहठी का निर्माण अधिकतर अल्पसंख्यक लोग करते हैं। पर्व का यह बड़ा सामाजिक आधार है। महत्वपूर्ण यह कि जहां अन्य अनुष्ठानों में मंत्रों का महत्व रहता, यहां यह गौण है। कहा जाता है कि भगवान भास्कर से सीधा जुड़ाव अर्घ्य के साथ होता है। बाबा गरीबनाथ के मुख्य पुजारी पंडित विनय पाठक कहते हैं, इस पर्व में उपासना मुख्य है। इसलिए इसमें मंत्रों की अधिक जरूरत नहीं पड़ती।
उपासना में प्राकृतिक चिकित्सा के सार
बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में भौतिक शास्त्र की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. तारण राय के अनुसार छठ वैदिक आराधना यानी प्राकृतिक चिकित्सा, स्वस्थ शरीर तथा सभ्य समाज के निर्माण का पर्व है। सूर्य की रोशनी में पानी में डुबकी लगाने से बायोइलेक्ट्रिसिटी का फ्लो होता है। इससे शरीर ऊर्जा से भर जाता है। वहीं इंफ्रारेड किरण की अधिकता से विटामिन डी प्रचुर मात्रा में मिलती है, जिससे शरीर के हानिकारक कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसलिए इस पूजा को चर्म रोग से भी जोड़ा जाता रहा है।
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