Bihar News: समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा का मुजफ्फरपुर में निधन
Bihar News:मुजफ्फरपुर में समाजवादी विचारक सच्चिदानंद सिन्हा का निधन हो गया। वे छात्र जीवन से ही समाजवादी मूल्यों से जुड़े थे और उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। वे जार्ज फर्नांडिस के करीबी थे और उन्हें मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने की सलाह दी थी। योगेंद्र यादव ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया और उन्हें श्रद्धांजलि दी।

डा. लोहिया की पत्रिका मैनकाइंड का संपादन भी उन्होंने किया था। फोटो सौ: इंस्टाग्राम
जागरण संवाददाता मुजफ्फरपुर। Bihar News: समाजवादी चिंतक सच्चिदानंद सिन्हा का निधन बुधवार की सुबह मिठनपुरा स्थित आवास पर हो गयात्नि। उनके निधन की खबर सुनने के बाद जगह-जगह से लोग अंतिम दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं।
उनका जन्म जिले के साहेबगंज प्रखंड स्थित परसौनी ग्राम में हुआ था। हालांकि बाद के दिनों में वे मुशहरी मानिक के रहने लगे थे। सच्चिदानंद सिन्हा छात्र जीवन में ही समाजवादी मूल्यों की राजनीति की तरफ आकृष्ट हुए। उसके बाद सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता हो गए।
इस दौरान डा. राममनोहर लोहिया की पत्रिका मैनकाइंड के संपादक मंडल में शामिल हो गए। बाद के दिनों में किशन पटनायक की वैचारिक पत्रिका सामयिक वार्ता के संपादकीय सलाहकार रहे। उन्होंने अंग्रेजी तथा हिन्दी में दर्जनों पुस्तकें लिखीं।

जिनमें सोशलिज्म एंड पावर, कियोस एंड क्रिएशन, कास्ट सिस्टम : मिथ रियलिटी एंड चैलेंज, कोएलिशन इन पालिटिक्स, इमरजेंसी इन परस्पेक्टिव, इंटरनल कालोनी, दी बिटर हार्वेस्ट, सोशलिज्म : ए मैनिफेस्तो फार सरवाइवल, समाजवाद के बढ़ते चरण, वर्तमान विकास की सीमाएं, पूंजीवाद का पतझड़, संस्कृति विमर्श, मानव सभ्यता और राष्ट्र-राज्य, संस्कृति और समाजवाद, पूंजी का चौथा अध्याय, भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता आदि प्रमुख हैं।
जार्ज से मिलने जाते थे दिल्ली
बड़ौदा डायनामाइट केस में जार्ज तिहाड़ जेल में बंद थे। जब हर तारीख पर उनसे मिलने सच्चिदानंद सिन्हा जाया करते थे। उनके करीबी रहे अरविंद वरुण कहते हैं कि जार्ज साहब उन्हें सच्ची कहकर बुलाया करते थे, प्रायः हर तारीख पर अदालत में उनसे मिलने जाया करते।
तब इनका मुख्य मकसद होता लंदन के अखबारों में प्रकाशित बड़ौदा डायनामाइट केस, जार्ज फर्नांडिस और भारत संबंधी खबरों को जार्ज तक सफाई से पहुंचा देना।
ऐसी सभी खबरों के लेखक निर्मल वर्मा लंदन के अपने संपर्कों के माध्यम से जुटाते और पूसा स्थित उनके घर से सच्चिदा बाबू इन्हें तारीख के दिन अदालत में जार्ज साहब को सौंप देते।
जेल प्रशासन अखबार देने पर आपत्ति न करे, इसके लिए अखबार के पन्नों में फल आदि लपेट कर दे दिया जाता। इससे पुलिस वालों का ध्यान उधर नहीं जाता।
जब इमरजेंसी समाप्ति की घोषणा की गई औार चुनाव का बिगुल बज गया तो जार्ज की तीव्र इच्छा थी कि वे बड़ौदा से चुनाव लड़ें, लेकिन मोरारजी देसाई इस पर तैयार नहीं हुए।

सच्चिदा बाबू की सलाह जार्ज आए
बड़ौदा सीट वह अपने संगठन कांग्रेस के खाते में चाहते थे। तब जार्ज के सामने अन्य आठ-दस नाम रखे गए। जार्ज ने यह सूची सच्चिदा बाबू को दिखाई और उनकी राय मांगी। इस सूची में मुजफ्फरपुर भी शामिल था। सच्चिदा बाबू ने उन्हें सलाह दी कि उन नामों में सबसे सही मुजफ्फरपुर रहेगा।
आगे ऐसा ही हुआ। तब 1977 के चुनाव में हथकड़ी लगा जार्ज फर्नांडिस का पोस्टर बहुत लोकप्रिय हुआ था और वोटरों को छुआ था। इस पोस्टर का आइडिया सच्चिदा बाबू का ही था और दिल्ली से इसकी पहली खेप वही मुजफ्फरपुर लाए भी थे।
योगेंद्र यादव ने अपनी एक पोस्ट के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी है। उन्होंने कहा, 'सच्चिदाजी नहीं रहे। भारतीय समाजवादी विचार परंपरा के एक युग का अवसान हो गया। मुझ जैसे ना जाने कितने युवाओं का वैचारिक प्रशिक्षण सच्चिदानंद सिन्हा को पढ़कर और सुनकर हुआ था।
हिंदी और अंग्रेज़ी में दर्जनों किताबें, सैकड़ों लेख— अधिकांश बिहार के एक गांव में बैठकर लिखे गए। अर्थव्यवस्था से लेकर कला तक, गांधी से मार्क्स और नक्सलवाद तक। हमारे युग का कोई कोना सच्चिदाजी की कलम से ना छूटा।
उम्मीद है अकादमिक जगत आने वाले समय में उनके आंतरिक उपनिवेशवाद के सिद्धांत, जाति व्यवस्था की नई व्याख्या, पूंजीवाद के पतझड़ के विश्लेषण और अन्य स्थापनाओं पर गौर करेगा।
अलविदा सच्चिदाजी! मेरा सौभाग्य था कि आपका सानिध्य और आशीर्वाद मिला। सुखद संयोग था कि पिछले महीने मुजफ्फरपुर में आपसे मुलाक़ात हो पाई। आपकी नई नवेली दाढ़ी के पीछे चिर परिचित निश्छल मुस्कान और खिली हंसी संजो कर रखूंगा। अच्छा हुआ आपने मना करने पर भी आपके चरण छू सका।'

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