Bihar News: क्लासरूम से निकाली स्वावलंबन की राह, एक लाख से अधिक लोगों को 'मशरूम मैन' प्रो. दयाराम ने बनाया स्वावलंबी
Bihar News डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में 30 साल से मशरूम उत्पादन के प्रशिक्षण पर हो रहा काम। प्रोफेसर दयाराम ने प्रशिक्षण देकर एक लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से बनाया स्वावलंबी।

मुजफ्फरपुर, {अजय पांडेय}। उत्तर प्रदेश के झांसी के टकोरी निवासी प्रवीण वर्मा मशरूम उत्पादन कर सालाना न सिर्फ पांच लाख रुपये कमा रहे, बल्कि 12 लोगों को रोजगार भी दिया है। वे मशरूम से बिस्कुट, अचार, लड्डू और मुरब्बा भी बनाते हैं। इसका प्रशिक्षण उन्होंने चार वर्ष पहले बिहार के समस्तीपुर स्थित डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में एडवांस सेंटर आफ मशरूम रिसर्च के परियोजना निदेशक प्रो. दयाराम से लिया था।बीते 30 वर्ष में प्रवीण जैसे एक लाख से अधिक लोग प्रो. दयाराम या उनके सिखाए शिष्य से प्रशिक्षण लेकर स्वावलंबी बन चुके हैं। इनमें 10 हजार से अधिक उनके विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र हैं। प्रो. दयाराम को इस काम के चलते लोग 'मशरूम मैन' के रूप में जानते हैं।
कोरोना काल में बाहर से आए लोगों को दिया प्रशिक्षण
उत्तर प्रदेश के जौनपुर से निकलकर गोरखपुर और वाराणसी में पढ़ाई के बाद 1991 में पूसा पहुंचे प्रो. दयाराम मशरूम उत्पादन और इसे उद्योग के रूप में स्थापित करने के प्रति समर्पित हैं। उनके प्रयास से बिहार के 15 से अधिक जिलों की महिलाएं और किसान न सिर्फ मशरूम की खेती कर रहे, बल्कि कई लोगों को रोजगार भी दे रहे। कोरोना काल में बाहर से आए लोगों को भी प्रशिक्षण दिया।
उन्होंने विश्वविद्यालय स्तर पर नवाचार से इसके विविध उत्पादों पर भी काम शुरू किया और उसके माध्यम से रोजगार मुहैया कराया। उनके नेतृत्व में यहां मशरूम बिस्कुट, बर्फी, आटा, रवा, गुलाब जामुन, पनीर, अचार और समोसा बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। स्वावलंबन की राह में यह मील का पत्थर साबित हो रहा है। आम लोगों के लिए प्रशिक्षण का कार्यक्रम एक से लेकर 15 दिन का होता है। इसके लिए महज रजिस्ट्रेशन शुल्क लिया जाता है।
मास्टर ट्रेनर बन दे रहे प्रशिक्षण
प्रवीण वर्मा कहते हैं कि वर्ष 2018 में जब मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षण लेने कृषि विश्वविद्यालय पहुंचा तो प्रो. दयाराम के सहज और सरल भाव को देखा। प्रशिक्षण के समय वे सुबह पांच बजे ही विश्वविद्यालय पहुंच जाते थे। उनके सिखाए गुर से न सिर्फ मैंने अपना काम शुरू किया, बल्कि 1500 लोगों को प्रशिक्षित भी किया। वर्ष 2013 में मशरूम बीज उत्पादन का प्रशिक्षण ले चुकीं बिहार के बांका जिले की विनिता कुमारी बताती हैं कि आज उनकी बदौलत 30 से 40 हजार रुपये महीना कमा रही हूं। मधुबनी के राजनगर प्रखंड के रांटी बढ़ई निवासी सुखराम चौरसिया ने वर्ष 2018 में प्रशिक्षण लिया था। वे आज मशरूम उत्पादन कर सालाना डेढ़ लाख रुपये कमा रहे हैं।
प्रो. दयाराम बताते हैं कि हम समाज में आत्मनिर्भरता पैदा करना चाहते हैं। यह तभी आएगी, जब क्लासरूम के अलावा बाहर के लोगों को जोड़ा जाए। इसी ध्येय के साथ बाहर के लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। कुलपति डा. कृष्ण कुमार का कहना है कि दयाराम के नेतृत्व में मशरूम उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे स्वावलंबन की राह मजबूत हुई है।

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