Bihar News: मुजफ्फरपुर में संविदा वाले को सरकारी कर्मचारी बनाए जाने की हो रही थी साजिश, इस तरह हुआ भंडाफोड़
मुजफ्फरपुर के साहेबगंज नगर परिषद में अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी बनाने का फर्जीवाड़ा सामने आया है। जिला कोषागार पदाधिकारी ने प्रान जारी करने के दौरान इस गड़बड़ी को पकड़ा। मामले में नगर परिषद के कर्मचारी और ऑपरेटर संदेह के घेरे में हैं और जांच जारी है। कार्यपालक पदाधिकारी ने गलती स्वीकार की है लेकिन इस मामले में बड़े खेल की आशंका जताई जा रही है।

प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। जिले में अस्थाई या आउटसोर्सिंग पर बहाल कर्मचारियों को अवैध रूप से सरकारी कर्मचारी बनाए जाने की साजिश का भंडाफोड़ हुआ है। इसमें साहेबगंज नगर परिषद के वैसे कर्मचारियों के प्रान (परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर) जारी कर वेतन व अन्य मद के बिल भेजे गए जो सरकार के स्थायी या वेतनभोगी नहीं थे।
मामला कई स्तरों से पास हो गया। यह जैसे ही जिला कोषागार पदाधिकारी विनोद तिवारी के पास पहुंचा, उन्हें शक हुआ। पड़ताल की तो अवैतनिक व अस्थायी कर्मी को अवैध रूप से प्रान देने का मामला पकड़ा गया। अब वह मामले की जांच कर रहे हैं।
इसमें कई कंप्यूटर आपरेटरों की भूमिका को देखते हुए काम से रोक दिया गया है। विस्तृत जांच में ही सच सामने आएगा, मगर इसमें नगर परिषद साहेबगंज के कार्यपालक पदाधिकारी व डाटा एंट्री आपरेटरों की भूमिका भी शक के घेरे में हैं।
बताया जा रहा कि साहेबगंज नगर परिषद में आधा दर्जन से अधिक कर्मचारी रखे गए हैं। इनका मानदेय नगर परिषद की आमदनी के आधार पर ही तय होता है। ये राज्य सरकार के वेतनभोगी या स्थायी कर्मचारी नहीं हैं।
पिछले माह इन कर्मचारियों के वेतन व अन्य मद की राशि का बिल जिला कोषागार कार्यालय आया। इसमें कर्मचारियों के नाम के साथ प्रान भी जोड़ा गया था। यह प्रान राज्य या केंद्र सरकार के स्थायी कर्मचारी के लिए होता है।
कई टेबल से चलते हुए बिल अंतिम रूप से पास होने के लिए जिला कोषागार पदाधिकारी के पास आया। उन्हें इस पर शक हुआ। यह इसलिए कि अब चतुर्थवर्गीय कर्मचारी तक की बहाली के लिए सरकार परीक्षा या चयन प्रतियोगिता करती है। ऐसे में इतनी संख्या में ये कर्मचारी कैसे स्थायी आ गए। गड़बड़ी की आशंका देखते हुए उन्होंने तत्काल बिल को रोका और इसकी जांच शुरू कर दी है।
बोले पदाधिकारी, गलती हो गई
इस मामले में साहेबगंज नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि गड़बड़ी हुई है। उन्होंने मोबाइल से बात में कहा कि गलती हो गई है। इसे वापस ले लिया गया है, मगर इतनी बड़ी गड़बड़ी कैसे हुई वह यह नहीं बता रहे।
बड़ा खेल करने की साजिश तो नहीं
मामला पकड़ में आने के बाद इसकी जांच शुरू है, मगर इसके पीछे बड़े खेल की साजिश की बू आ रही है। यह इसलिए कि इस तरह किसी कर्मचारी को राज्य सरकार का नियमित कर्मचारी बनाने का यह तरीका नया है। बताया जा रहा कि नगर परिषद में कर्मचारियों की पुष्टि नगर विकास एवं आवास विभाग से कराई गई। उसको आधार बनाकर यह खेल किया गया।
यह होता है प्रान
प्रान (परमानेंट रिटायरमेंट अकाउंट नंबर) एक 12 अंकों की संख्या है जो उन्हें राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के तहत नियमित सरकारी पदाधिकारी व कर्मचारी के पंजीकृत होने पर जारी की जाती है। यह एनपीएस खातों के प्रबंधन, पेंशन बचत में योगदान करने व अन्य लाभ तक पहुंचने में मदद करता है। यह संख्या स्थायी होती है और भारत में कहीं से भी अपने एनपीएस खाते को एक्सेस करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
मामला पकड़ में आया है। इसकी जांच की जा रही है। किस-किस स्तर से गड़बड़ी की गई है वह जांच में सामने आ जाएगी।
विनोद तिवारी, जिला कोषागार पदाधिकारी
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