गरीबी, भूख और टूटती उम्मीदें: जब एक पिता हार गया और उजड़ गया पूरा परिवार
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक हृदयविदारक घटना सामने आई है। सकरा थाना क्षेत्र के मिश्रौलिया गांव में एक पिता ने अपने पांच बच्चों के साथ फांसी लगाकर आ ...और पढ़ें

Muzaffarpur tragedy: फंदा नहीं कसने की वजह से इस घटना में ये दोनों बच गए। जागरण
डिजिटल डेस्क, मुजफ्फरपुर। Bihar tragic incident: जिले के सकरा थाना अंतर्गत मिश्रौलिया गांव में एक पिता अपने पांच बच्चों के साथ फांसी के फंदे पर झूल गया। इसमें तीन पुत्री समेत अमरनाथ राम (40) की मौत हो गई। जबकि उसके पत्नी की मौत होली के समय ही हो गई थी।
यह घटना एक उस पिता की अकर्मण्यता के साथ ही साथ व्यवस्था की विफलता की तस्वीर भी है, जहां एक परिवार धीरे-धीरे भूख, बीमारी और बेबसी में घुटता रहा। हालात ऐसे बने कि एक पिता ने जिंदगी से हार मान ली और उसके साथ उसके मासूम बच्चों की सांसें भी थम गईं।
पत्नी की बीमारी से हुई मौत
परिवार बेहद साधारण जिंदगी जी रहा था। मां की मौत पहले ही हो चुकी थी। वही मां, जो बीमारी के बावजूद दूसरों के घरों में काम कर बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी जुटाती थी। उसके जाने के बाद घर की रौनक ही नहीं, आमदनी भी चली गई।

घटना की सूचना मिलने के बाद डीआइजी जयंतकांत घटनास्थल पर पहुंचे। जागरण
पिता कभी-कभार मजदूरी कर लेता था, लेकिन काम लगातार नहीं मिलता था। कई दिन ऐसे गुजरते जब घर में चूल्हा नहीं जलता था। बच्चों का पेट भरने का सहारा सिर्फ सरकारी राशन था, जो भी हर महीने समय पर नहीं मिल पाता था।
घर में नहीं है कोई साधन
घर कच्चा था। न बिजली, न पंखा, न कोई बुनियादी सुविधा। बच्चों की पढ़ाई छूट चुकी थी क्योंकि किताब, कॉपी और कपड़े जुटाना संभव नहीं था। धीरे-धीरे जरूरतें बोझ बनती चली गईं और पिता भीतर ही भीतर टूटता चला गया।

घटना के बाद शोक संतप्त परिवार। जागरण
घटना से एक रात पहले परिवार ने साथ बैठकर खाना खाया। यह शायद आखिरी बार था, जब घर में एक साथ खाना बना। किसी को अंदाजा नहीं था कि वही रात परिवार की आखिरी रात बन जाएगी।
सुबह जब सच्चाई सामने आई तो गांव सन्न रह गया। एक बच्चा किसी तरह जान बचाकर बाहर निकला और मदद की गुहार लगाई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एक पिता और उसके बच्चे मौत के फंदे से झूल रहे थे।

घटना के बाद मौके पर जमा लोगों की भीड। जागरण
ग्रामीण बताते हैं कि पिता ज्यादा बोलता नहीं था। वह अपनी परेशानी किसी से कह नहीं पाता था। आर्थिक तंगी, अकेलापन और जिम्मेदारियों का बोझ उसे भीतर से तोड़ चुका था।

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