यादवों की 'जमीन' पर मल्लाह Vs मल्लाह...बिहार की इस सीट पर रोचक हुआ मुकाबला
Bihar Assembly Election 2025: बिहार की एक सीट, जहाँ यादव समुदाय का दबदबा है, वहाँ मल्लाह समुदाय के दो लोगों के बीच दिलचस्प मुकाबला हो रहा है। यादव मतदाताओं की संख्या अधिक होने के बावजूद, मल्लाह उम्मीदवारों ने मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। राजनीतिक दल इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि मतदाता विकास और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह मुकाबला किसके पक्ष में जाता है।

इस खबर में प्रतीकात्मक तस्वीर लगाई गई है।
प्रेम शंकर मिश्रा, मुजफ्फरपुर। Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कई चीजें अप्रत्याशित हो रही हैं। सीटों का बंटवारा जिस तरह से हुआ वह राजनीतिक विशेषज्ञों को भी अचंभित कर रहा है।
जिले की औराई सीट सिंबल वितरण से लेकर नामांकन तक चर्चा में आया। यहां सीटिंग विधायक रामसूरत राय का टिकट काट भाजपा ने कांग्रेस से घर वापसी किए अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को उतारा।
वहीं आइएनडीआइए में सिंबल को लेकर नामांकन के एक दिन पहले तक सस्पेंस रहा। अंत में सीट वीआइपी के खाते में आई और भोगेंद्र सहनी प्रत्याशी बनाए गए।
इसके साथ ही यदुवंशियों की इस सीट पर दो निषादों के संग्राम की पटकथा लिख दी गई। वर्ष 1967 में औराई विधानसभा के गठन के बाद से यह पहला मौका है जब यहां पक्ष या मुख्य विपक्ष में यादव उम्मीदवार नहीं हैं।
यही नहीं वर्ष 2000 के बाद से यहां मुख्य दोनों दलों या गठबंधन से यादव प्रत्याशी ही रहते थे। इस चुनाव में दोनों गठबंधनों से मल्लाह प्रत्याशी हैं।
निषादों के नेता इसे अपनी नैतिक जीत मान रहे कि वह राजनीति की मुख्य धारा में शामिल हो रहा है। विदित हो कि मुजफ्फरपुर की औराई विधानसभा सीट यादवों की राजनीतिक जमीन रही है।
1952 से 1962 तक यह सीट कटरा उत्तरी के नाम से था। 1967 में औराई विधानसभा का गठन हुआ। इसके बाद से यहां हुए सभी चुनावों में पक्ष या विपक्ष की ओर से यादव उम्मीदवार जरूर रहे।
पहले चुनाव में कांग्रेस के सीएमपी सिंह ने एसएसपी के पांडव राय को करीब चार हजार वोटों से हराया था। दो वर्ष बाद ही यहां फिर 1967 में विधानसभा चुनाव हुआ।
पांडव राय ने महज 210 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। इसके अगले चुनाव तक ही कांग्रेस के जिम्मे यह सीट रही। 1977 के बाद यहां से यादव उम्मीदवार ही विजयी हुए।
लगातार छह बार पांडव राय के पुत्र गणेश प्रसाद यादव विधायक बने। इसके बाद दो बार अर्जुन राय। फिर रामसूरत राय और सुरेंद्र कुमार विधायक बने।
इन वर्षों के चुनावी संग्राम में यदुवंशियों का ही दबदबा रहा। दूसरी जाति के उम्मीदवार रेस में नजर तक नहीं आए, मगर इस विधानसभा चुनाव में तस्वीर अलग है।
यहां पक्ष और विपक्ष के दोनों उम्मीदवार निषाद हैं। भाजपा की रमा निषाद और वीआइपी के भोगेंद्र सहनी मुख्य दल से हैं। सबसे अधिक बार विधायक रहे गणेश यादव के पुत्र निर्दलीय मैदान में उतरे हैं।
आइएनडीआइए के घटक दल राजद से कई यादव उम्मीदवार लाइन में थे, मगर उन्हें मौका नहीं मिला।राजद कोटे से सीट बाहर हो गई। इससे अर्जुन राय और सुरेंद्र कुमार में से कोई मैदान में नहीं आ सके।
यदुवंशियों का मुख्य मुकाबले से बाहर होने से यहां यही चर्चा है कि उनकी एक सीट छिन गई। जन क्रांति मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक डा. उमा शंकर सहनी कहते हैं, राजनीति में त्रिवेणी (यादव, कुर्मी व कुशवाहा)
का संगम कांग्रेस की उपज रही।
इससे देश की राजनीति खासकर बिहार, यूपी में पिछड़ा वर्ग को नेतृत्व मिला। अति पिछड़ा को अब भी नेतृत्व नहीं मिल सका। जबकि उसकी संख्या सबसे अधिक है।
औराई विधानसभा में इस बार जो हुआ और कई सीटों पर जिस तरह ये निषादों की पूछ हुई वह आगे की राजनीति की दिशा को प्रभावित करेगा।
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