जयनगर-कुर्था के बाद नेपाल के लिए दूसरी रेल सेवा रक्सौल से काठमांडू तक
16 हजार 550 करोड़ रुपये की लागत से पूरा करनी है परियोजना। ट्रेन सेवा शुरू होने से दूरी घटकर 136 किमी हो जाएगी। अभी रक्सौल से काठमांडू जाने के लिए बस या निजी वाहन ही एकमात्र विकल्प है।

रक्सौल (पूचं), [विजय कुमार गिरि]। मधुबनी के जयनगर और नेपाल के कुर्था के बीच ट्रेन परिचालन शुरू होने के बाद रक्सौल-काठमांडू रूट के लिए आस बढ़ गई है। चार साल पहले 2018 में स्वीकृत इस रूट पर 136 किमी के लिए तीसरे चरण के लाइन सर्वे का काम चल रहा है। यह परियोजना 16 हजार 550 करोड़ रुपये की है। 13 स्टेशन प्रस्तावित : प्रस्तावित रेललाइन में रक्सौल, बीरगंज, बगही, पिपरा, धूमरवाना, काकड़ी, चंद्रपुर, धीयाल, शिखरपुर, सिसनेरी, सथिकेल और काठमांडू सहित कुल 13 स्टेशन होंगे। इसमें 32 रोड ओवरब्रिज, 53 अंडरपास, 259 छोटे पुल तथा 41 बड़े रेल पुल भी होंगे। 39 छोटी-बड़ी सुरंगों का भी निर्माण होना है, जिसकी कुल लंबाई 41.87 किलोमीटर है।
रक्सौल से काठमांडू के बीच की दूरी सड़क मार्ग से करीब 150 किमी है। ट्रेन सेवा शुरू होने से दूरी घटकर 136 किमी हो जाएगी। अभी रक्सौल से काठमांडू जाने के लिए बस या निजी वाहन ही एकमात्र विकल्प है। बस का किराया करीब 600 रुपये (भारतीय करेंसी) है, जबकि ट्रेन का किराया अधिकतम 200 रुपये हो सकता है। यात्रा का समय भी छह घंटे से घटकर दो से ढाई घंटे पर आ जाएगा।
व्यापारिक हब हो जाएगा रक्सौल
चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज, रक्सौल के अध्यक्ष अरुण कुमार गुप्ता का कहना है कि रक्सौल-काठमांडू के बीच ट्रेन चलने से दोनों देशों के बीच के सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध और प्रगाढ़ होंगे। टेक्सटाइल्स चैंबर आफ कामर्स के महासचिव बिमल रुंगटा का कहना है कि सामान्य दिनों में प्रतिदिन दो से ढाई करोड़ का कारोबार है। ट्रेन शुरू होने से पांच करोड़ तक जा सकता है। आसान आवागमन के चलते नेपाल के पहाड़ी और तराई इलाके के छोटे कस्बों के लिए रक्सौल बड़ा व्यावसायिक केंद्र हो जाएगा।
रक्सौल होकर बीरगंज तक जाती है मालगाड़ी
फिलहाल रक्सौल से छह किमी दूर नेपाल के परसा जिले में स्थित बीरगंज तक कोलकाता, विशाखापट्टनम, गुजरात या अन्य राज्यों से आने वाली मालगाड़ी पहुंचती हैं।
कोंकण रेलवे के अनुभवी इंजीनियरों का मिलेगा लाभ
रक्सौल स्टेशन प्रबंधक के अनुसार, काठमांडू की ओर से कोंकण रेलवे सर्वेक्षण कर रहा है। परियोजना को अगले पांच साल में पूरा करना है। अधिकारी का कहना है कि इस रूट पर पुल-पुलियों के अलावा सुरंगों का भी निर्माण होना है। इस तरह के निर्माण में कोंकण रेलवे का अनुभव है।
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