ऑक्सीजन की कमी से वनस्पति और फलों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव, समस्तीपुर में लगभग चार फीसद पेड़ों को नुकसान
जलजमाव के बाद आम लीची व केला की बागवानी में वैज्ञानिक ढ़ंग से करें बचाव विज्ञानी बताते हैं कि असली नुकसान का आंकलन तो जलजमाव दूर होने के बाद ही पता चल जाएगा। अभी तक चार फीसद पेड़ों के नुकसान की उम्मीद है।

समस्तीपुर, जासं। अत्यधिक बारिश एवं बाढ़ के कारण अधिकांश बागों में जल जमाव जैसी स्थिति है। ख़राब जल निकासी और जलभराव के कारण कई पेड़ो में गलन की स्थिति है। कई के पत्ते पीले पड़ रहे हैं तो कई पर कीट व चिटिंयों का प्रकोप है। अभी तक जिले में बागों में लगे पेड़ों के नुकसान का कोई आंकड़ा नहीं है। विज्ञानी बताते हैं कि असली नुकसान का आंकलन तो जलजमाव दूर होने के बाद ही पता चल जाएगा। अभी तक चार फीसद पेड़ों के नुकसान की उम्मीद है।
वैज्ञानिक ढंग से दूर करें परेशानी
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के पादप रोग विशेषज्ञ एवं अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक डॉ. संजय कुमार सिंह बताते हैं कि वानस्पतिक विकास में कमी, पौधों के चयापचय (मेटाबोलिस्म) में परिवर्तन, पानी और पोषक तत्वों का कम अवशोषण की वजह से पेड़ के कुछ हिस्सों या पूरे पेड़ की मृत्यु हो रही है। जल भराव की वजह से उत्पन्न तनाव, कम सहनशील पौधों में क्षति का प्रमुख कारण है।ऑक्सीजन की कमी से होती है पौधों की मृत्यु
बाढ़ के कारण फलों के पेड़ ऑक्सीजन की कमी से ग्रस्त होते हैं। ऑक्सीजन की कमी से पौधों की मृत्यु हो जाती है। बाढ़ या जलभराव वाली मिट्टी के लिए फलों की फसलों में व्यापक सहिष्णुता होती है लेकिन जब यह जलभराव लम्बे समय तक बागों में रहता है तो यह पेड़ की मृत्यु का कारण भी बनता है। कुछ पेड़ों की जड़ें जलभराव वाली मिट्टी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। पपीता की खेत में यदि पानी 24 घंटे से ज्यादा रुक गया तो पपीता के पौधों को बचा पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। इसी तरह बेर की जड़ें मध्यवर्ती होती हैं, और आम , लीची एवं अमरूद के पेड़ कम संवेदनशील होते हैं। लेकिन इस बाग से भी पानी 10 -15 दिन में निकल जाना चाहिए। छोटी फल वाली फसलें यथा स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, रास्पबेरी सात दिनों तक जल जमाव को सहन कर सकते हैं। आंवले जलभराव वाली मिट्टी के अपेक्षाकृत अधिक सहिष्णु हैं।
फलों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है
जलजमाव (बाढ़) के तुरंत बाद, मिट्टी और हवा के बीच गैसों का आदान-प्रदान बहुत कम हो जाता है। सूक्ष्मजीव पानी और मिट्टी में ऑक्सीजन की ज्यादा खपत करते हैं। मृदा में ऑक्सीजन की कमी पौधों और मिट्टी में कई बदलाव लाती है जो वनस्पति और फलों के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। पौधे जल अवशोषण को कम करके और अपने रंध्रों को बंद करके प्रतिक्रिया करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रकाश संश्लेषण की दर कम होती है। इसके बाद जड़ में पारगम्यता और खनिज अवशोषण कम हो जाता है। आमतौर पर बाढ़ की एक छोटी अवधि के बाद देखे जाने वाले पहले पौधे के लक्षण मुरझाए हुए पत्ते और एक अप्रिय गंध है जो अक्सर घायल या मृत जड़ों से निकलती है। यह भूरे रंग की दिखाई देती है।
सितंबर के प्रथम सप्ताह के बाद आम एवं लीची के बागों में खाद एवं उर्वरकों का नहीं करें प्रयोग
जल जमाव वाले क्षेत्रों में फलों वाले बागों में नुकसान को कम करने के लिए, नए जल निकासी चैनलों का खोदकर निर्माण करना या पंप द्वारा जितनी जल्दी हो सके बाग से पानी निकलकर सूखा देना चाहिए। यदि मूल मिट्टी की सतह पर गाद या अन्य मलबे की एक नई परत जमा हो गई है, तो इसे हटा दें और मिट्टी की सतह को उसके मूल स्तर पर बहाल कर दें। यदि मिट्टी का क्षरण हो गया है, तो इन स्थानों को उसी प्रकार की मिट्टी से भरें जो बाग में थी। धूप निकलने के बाद मिट्टी की जुताई करें। बागों में पेड़ की उम्र के अनुसार खाद एवं उर्वरको का प्रयोग करें लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि सितंबर के प्रथम सप्ताह के बाद आम एवं लीची के बागों में किसी भी प्रकार के खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग नहीं करें। सितंबर के प्रथम सप्ताह के बाद खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किया या किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि कार्य किया तो आपके बाग में फरवरी माह के अंत में मंजर (फूल ) आने की बदले आपके बाग में नई- नई पत्तियां निकल आएगी।
भारी वर्षा की वजह से केला की फसल भी प्रभावित
जैसे ही खेत की मिट्टी सूखे तुरंत जुताई गुड़ाई करके सुखी एवं रोगग्रस्त पत्तियों की कटाई-छटाई करें, बगल में निकल रहे अवांछनीय छोटे पौधों को काटकर हटा दें। इसके बाद प्रति पौधा 200 ग्राम यूरिया एवं 150 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश मुक्त आभासी ताने से 1-1.5 मीटर की दूरी पर रिंग बना कर देना चाहिए इससे केला के पौधे बहुत जल्द सामान्य हो जाएंगे।
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