Sawan 2025: गीतों में रीति-रिवाजों की झलक, भगवान शिव से अखंड सुहाग की कामना
सावन में पूजा पाठ के साथ -साथ गीतों की अनोखी परंपरा रही है। भगवान शिव की में लीन कांवरिये नचारी गाकर बाबा को प्रसन्न करते हैं। महिलाएं कजरी गाती हैं। मिथिलांचल के पर्व तीज के दौरान सुहागिन महादेव और माता पार्वती की पूजा करते हुए गाती हैं। सुहागिनों का विशेष पर्व मधुश्रावणी इसी महीने होता है। इसमें विषहरी माता की पूजा होती है।

मीरा सिंह, मुजफ्फरपुर। Sawan 2025 : गीतों की अपनी परंपरा है। भावनाओं का प्रवाह तो संस्कृतियों की झलक भी। शब्दों में रची-बसी यही भावनाएं हर महीने की पहचान और विशेषताओं की प्रस्तुति देती हैं। इन्हीं में से एक है सावन...यह महीना भगवान शिव को समर्पित है।
नचारी गाकर बाबा को प्रसन्न करते
भगवान शिव की भक्ति आराधना में लीन कांवरिये नचारी गाकर बाबा को प्रसन्न करते हैं तो महिलाएं कजरी गाती हैं। गीत कभी कांवरियां पथ पर गूंजते हैं तो कभी धान रोपती महिलाओं की स्वर लहरियों से घटा घनघोर होता है। मिथिलांचल के गीत 'सब कमरथुआ आबि रहल अछि पथ में धूम मचाए जपई छी ओम नम: शिवाय...'।
हर अवसर पर गीत
पथ में चलते हुए जब पैरों में कंकड़ की चुभन महसूस होती है तो गाते हैं, 'छोट-छोट रोड़ी गड़ैय यौ बाबा, हमरा चललो नैय जाइय...'। इसी तरह तीज पर्व के दौरान सुहागिन महादेव और माता पार्वती की पूजा करते हुए गाती हैं, 'अचल सोहाग मोरा देव हो भोला नाथ पूजल आस लगाय, हे गौरी दाय देखु न नयना निहारी...'।
विषहरी माता की पूजा
मिथिलांचल में सुहागिनों का विशेष पर्व मधुश्रावणी जो इसी महीने होता है, उसमें विषहरी माता की पूजा का विशेष महत्व है। 'विषहरि-विषहरि सुनु मोर पुकार राम, अचल सुहाग रहे वर दिय हमार' गाकर नवविवाहिता पूजा की शुरुआत करती हैं।
गीतों में पारंपरिक रिवाजों का पालन
मिथिलांचल में सावन के महीने में गाए जाने वाले गीतों में पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन है, देवताओं की स्तुति है तो सामाजिक सांस्कृतिक भावनाएं भी। इन्हें महिलाएं झूला गीत, कजरी, विरह गीत, नचारी आदि गाकर अभिव्यक्त करती हैं।
राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक झूला गीत
मैथिली लोक गायिका डा. सुषमा झा कहती हैं कि सावन में प्रकृति की सुंदरता देखते बनती है। चारों तरफ हरियाली। रंग-बिरंगे फूल, पत्तियां। खेतों में लगीं फसलें। उस पर जब वर्षा की बूंदें धरती पर गिरती हैं तो हर मन प्रेम से अभिभूत हरित हो जाता है।
मिथिलांचल की बात निराली
वैसे तो हर प्रांत में सावन का अपना महत्व है, लेकिन मिथिलांचल की बात ही निराली है। सावन में जब कांवरिये झूमते-गाते भगवान शिव की आराधना करते कांवर पथ पर चलते हैं तो देखने वाले भी शिव की भक्ति में लीन हो जाते हैं। तीज और मधुश्रावणी सावन के खास त्योहार हैं।
पति की लंबी उमर की कामना
महिलाएं और नवविवाहिताएं भगवान शिव और पार्वती की आराधना कर गीतों के माध्यम से पति की लंबी उमर की कामना करती हैं। सावन में कजरी और झूला गीत की बात न हो तो सावन की रंगत फीकी हो जाती है। 'झूला झूलु सब सखी मिली क आयल सावन सोहावन हे...।' राधा-कृष्ण का झूला तो अनुपम है। 'झूला लगे कदम की डारी, झूले कृष्ण मुरारी न, राधा झूले कृष्ण झूलावे बारी-बारी न...।'
काले बादलों को देख आती प्रीतम की याद
वर्षा ऋतु प्रेम का प्रतीक है। विरहन नायिका का पति परदेश में है। नायिका आसमान में उमड़ते-घुमड़ते काले बादलों को देखती है। रात में जब वर्षा की बूंदें गिरती हैं तब नायिका पति को याद कर गाती है, 'हरि श्याम भये निरमोही, दरद नहीं जाने ए हरि।
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