World Sparrow Day: गौरैया की प्रजाति संकट में, पांच दशक में 150 करोड़ गौरैया समा गईं मौत के आगोश में
World Sparrow Day उदास मन को प्रफुल्लित कर देती गौरैया की चहचहाहट। कीटनाशकों के प्रयोग से गौरैया की प्रजाति संकट में। अब चंद घरों के आंगन में ही फुदकत ...और पढ़ें

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। गौरैया की चहचहाहट उदास मन को भी प्रफुल्लित कर देती है। पारिस्थितिकी के संतुलन के लिए भी इनका वजूद महत्वपूर्ण है। लेकिन, कीटनाशकों के प्रयोग से गौरैया की प्रजाति संकट में है। प्रकृति से सामंजस्य बनाए रखने में सहायक गौरैया वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे गांवों के चंद घरों के अंागन में ही अब फुदकती दिखती हैं।
रॉयल सोसाइटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ बर्ड के हालिया सर्वे के मुताबिक, पिछले 40 सालों में दूसरे पक्षियों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है, लेकिन भारत में गौरैया की तादाद में 60 फीसद तक कमी आई है। दुनिया भर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से पांच भारत में देखने को मिलती हैं। इनमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश, ङ्क्षसड स्पैरो, रसेट, डेड और टी-स्पैरो शामिल हैं। गौरैया हमारे घरों के आस-पास कीट-पतंगों को खाकर उनकी संख्या सीमित करती है। अगर हमारे बीच गौरैया सुरक्षित है तो हमारा पर्यावरण सुरक्षित होगा।
इंसानों ने घोंसले उजाडऩे में कोई कसर न छोड़ी
कृषि विशेषज्ञ सतीश कुमार दूबे बताते हैं कि फसलों से भोजन का इंतजाम करने वाली गौरैया के घोंसलों को इंसानों ने उजाडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी। अधिक उत्पादन के लालच में फसलों पर रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का धड़ल्ले से प्रयोग किया गया। जिसे खाकर गौरैया अपनी जान गंवाती गईं।
तरंगों ने प्रजनन क्षमता को किया प्रभावित
बगहा-दो के पशु चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. एसबी रंजन बताते हैं कि मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें गौरैया की प्रजनन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही। प्रदूषण की मार ने भी इस चिडिय़ा की चहचहाहट को हमसे दूर कर दिया। पर्यावरणविद गजेंद्र यादव ने कहा कि गौरैया को बचाना हम इंसानों का कत्र्तव्य है। खेतों में कीटनाशकों का कम प्रयोग, छतों की मुंडेरों पर गौरैया के लिए घोंसला बनाना, छत पर उनके लिए पानी रखना, वायु व ध्वनि प्रदूषण को कम करना, शिकार बंद करना आदि उपायों के जरिये गौरैया की प्रजाति को बचाया जा सकता। प्रकृति प्रेमी मनोज कुमार ने बताया कि आमतौर पर गौरैया बबूल, कनेर, नींबू, अमरूद, अनार, मेहंदी, बांस, चांदनी आदि छोटे पेड़ों पर घोंसला बनाना पसंद करती है। ये पेड़ अब काटे जा रहे हैं।
पांच दशक में 150 करोड़ गौरैया समा गईं मौत के आगोश में
अब सुबह उठने पर उसके चहचहाने की आवाज नहीं मिलती और न दोपहर में पेड़ की डाली पर वह फुदकती हुई दिखाई देती। हम बात कर रहे हैं मानव फ्रेंडली गौरैया की। पक्षियों में अपना खास स्थान रखने वाली गौरैया विलुप्त होने के कगार पर है। पिछले 50 वर्षों में दुनिया से करीब 150 करोड़ गौरैया मौत के आगोश में समा गईं। ये बातें जुलॉजी विभाग के प्राध्यापक प्रो. बीकेपी मिश्रा ने बताईं।
उन्होंने कहा कि गौरैया विलुप्त होने के कगार पर है इसका कारण है कि अब गांवों में भी दरवाजे पर अनाज रखने वाले बखार और खलिहान नहीं होते। इस कारण गौरैया को भोजन नहीं मिल पाता। जो अनाज उसे मिलता भी है उसमें अत्यधिक कीटनाशक का प्रयोग किया होता है। उसे खाने से गौरैया मर जाती है। गौरैया के मानव जाति के समीप होने से कई लाभ होते थे। जैसे आसपास कई ऐसे कीट-पतंग होते हैं जो मानव जाति को नुकसान पहुंचा सकते हैं, गौरैया इन्हें खा जाती थी। साथ ही गौरैया के चहचहाहट से थकान से राहत मिलती थी और लोग रिलैक्स हो जाते थे।

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