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    1942 में नील की खेती के विरोध में कूद गए थे लौधु मंडल, जानी पड़ी जेल

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 08 Aug 2022 05:14 PM (IST)

    मनोज कुमार मिश्र तारापुर (मुंगेर) स्वतंत्रता संग्राम में तारापुर का अहम योगदान रहा है। 15 ...और पढ़ें

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    1942 में नील की खेती के विरोध में कूद गए थे लौधु मंडल, जानी पड़ी जेल

    मनोज कुमार मिश्र, तारापुर (मुंगेर) : स्वतंत्रता संग्राम में तारापुर का अहम योगदान रहा है। 15 फरवरी 1932 को तारापुर थाना पर झंडा फहराने के क्रम में लोगों ने शहादत दी थी। किसान आंदोलन में नील की खेती का विरोध में कई की गिरफ्तारी हुई। सत्याग्रह आंदोलन में एक माह तक समानांतर सरकार चली थी। तारापुर बिहमा के लौधु मंडल उर्फ सुखदेव सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिए थे, जेल भी गए। 15 अगस्त 1972 को भारत सरकार ने उन्हें ताम्रपत्र प्रदान किया। उनके नाम से गांव के मध्यविद्यालय का नाम पड़ा। उनके पुत्र उदय सिंह कहते हैं पिताजी अक्सर आजादी से जुड़ी बातें सुनाते थे। उनका उद्देश्य था कि आने वाली पीढ़ी आजादी के दीवानों की गाथा सुने, उनमें देशभक्ति की भावना पनपे। नौ अगस्त 1942 को जब संपूर्ण क्रांति की घोषणा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा किया गया तो उनके पिता नील की खेती का विरोध करने के आंदोलन के नेतृत्व से जुड़ गए। देवगांव कोठी को जलाने में इनकी भूमिका थी। मुकदमा हुआ, फरार हो गए। अंग्रेजो ने घर की कुर्की जब्ती भी की। गिरफ्तारी भी हुई। मंडल कारा मुंगेर में वर्षों रहने के बाद रिहा हुए। स्व. लोधु मंडल के घर के सामने रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता चंदर सिंह राकेश कहते हैं कि उनके साथ अक्सर क्रांति से संबंधित बातें होती थी। स्व. मंडल उन्हें बताते थे कि कैसे अंग्रेज जबरन नील की खेती करवाते थे। अंग्रेज किसान को केवल नील का बीज देते थे। किसान उसे उपजा कर देवगांव स्थित नीलमणि कोठी तक पहुंचाते थे। यह किसानों का बहुत क्रूर शोषण था। स्व. मंडल अपने फरारी जीवन के संबंध में जो कष्ट हुआ था, वह बड़े दर्द भरे दिल से बताते थे। घर की कुर्की-जब्ती के संबंध में बताते हुए उनकी भृकुटी तन जाती थी। 15 फरवरी 1932 की घटना में आंदोलनकारियों का उत्साहवर्धन करने का कार्य किए थे। उस समय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को अपने घरों में अंग्रेजी हुकूमत से छिपा कर रखने का काम भी करते थे। स्व. लौधु मंडल के पड़ोसी राकेश और पुत्र उदय सिंह बताते हैं कि जीवन के आखरी लम्हो में वे अक्सर व्याप्त भ्रष्टाचार की चर्चा कर दुखी होते थे। कहते थे कि बापू ने इस तरह के दिन देखने के लिए आजादी दिलाई थी।

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