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    Bihar Earthquake: 15 जनवरी 1934, जब बिहार ने देखा तबाही का भयावह मंजर, महज एक झटके में चली गई थी 10 हजार जिंदगियां

    Updated: Mon, 15 Jan 2024 12:23 AM (IST)

    15 जनवरी 1934 की दोपहर मुंगेर में आए भूकंप से हुए विध्वंस को आज की नई पीढ़ी ने भले ही नहीं देखा लेकिन उसकी कहानी आज भी जीवित है। भूकंप की तबाही का जिक ...और पढ़ें

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    2 विध्वंस की कहानी सुन सिहर उठती है युवा पीढ़ी।

    संवाद सहयोगी, जमालपुर (मुंगेर)। 89 साल पहले 15 जनवरी, 1934 की दोपहर मुंगेर में आए भूकंप से हुए विध्वंस को आज की नई पीढ़ी ने भले ही नहीं देखा, लेकिन उसकी कहानी आज भी जीवित है। भूकंप की तबाही का जिक्र मुंगेर के हर घर में पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।

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    इस भूकंप ने मुंगेर में करीब 438 लोगों की जान गई थी। 8.4 रिक्टर स्केल की तीव्रता वा भूकंप यहां पहली बार आया था। तब चारों तरफ विनाश के निशान थे। पूरा शहर मलवे में इस तब्दील हो गया था। रेल कारखाने को भी काफी नुकसान हुआ था।

    उस वक्त मोहनदास करमचंद गांधी, जवाहर लाल नेहरू, डा. राजेंद्र प्रसाद, डा. संपूर्णानंद पंडित, मदन मोहन मालवीय, सरोजनी नायडू, खान अब्दुल गफ्फार खान, यमुना लाल बजाज, आचार्य कृपलानी जैसे लोगों ने मुंगेर में आकर राहत कार्य में सहयोग दिया। इस दिवस पर मुंगेर बाजार को पूरी तरह बंद रखा जाता है। शोक सभा रखकर बड़े पैमाने पर दरिद्र नारायण भोज का आयोजन होता है।

    इंग्लैंड से इंजीनियरों को बुलाया गया

    भूकंप से जहां रेल कारखाना पूरी तरह तबाह हो गया था, वहीं रेलवे स्टेशन, रेल कालोनी, कारखाना के प्रशासनिक शाखा से लेकर मुख्य पोस्ट आफिस,प्राचीन संत मैरी चर्च भूकंप में जमींदोज हो गया था।

    कई बुजुर्गों ने बताया कि देश का सबसे भयावह 1934 का भूकंप था। शहर तो बर्बाद हुआ ही था अपनो का भी साथ छूट गया। भूकंप दिवस के उस काले मंजर को याद को अपने जेहन में रखने के लिए सामाजिक राजनीतिक नेता कार्यकर्ता आयोजन कर परंपरा को आज तक निभाते आ रहे हैं।

    बर्बाद हुए खूबसूरत शहर को फिर से बसाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड से इंजीनियरों की एक टीम को बुलाकर शहर में इमारतों की एक नई नींव तैयार की। अंग्रेजों द्वारा बसाए गए लौहनगरी जमालपुर भी 1934 के भूकंप में तबाह हुआ था। कारखाना के कई शाप के अलावा रेल कालोनी, जमालपुर पोस्ट आफिस के अलावा स्टेशन क्षतिग्रस्त हुआ था।

    आज भी याद है वह मंजर

    उस समय का मंजर याद कर सभी सिहर जाते हैं। जमालपुर के उस्ताद पूरन, अवध किशोर सिंह, रामस्वरूप सिंह, नथुनी पंडित,राघो मंडल,जगदीश शर्मा, विजय साह,सहित कई बुजुर्गों ने बताया कि देश का सबसे भयावह 1934 का भूकंप था। शहर तो बर्बाद हुआ ही था अपनो का भी साथ छूट गया। आज भी इस घटना को यादकर सिहर जाते हैं।