अद्भुत बंधन : राम-सीता की पावन भूमि जनकपुरधाम में बसा 36 परिवारों का नया संसार
जनकपुरधाम के मणिमंडप परिसर में 36 जोड़ों का सामूहिक विवाह हुआ, जिसमें भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र के जोड़े शामिल थे। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ विवाह संपन्न हुआ। विहिप ने दहेज प्रथा को दूर करने के लिए यह आयोजन किया। विवाह के बाद जोड़ों को घरेलू सामग्री उपहार में दी गई। कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्ति शामिल हुए।

संवाद सहयोगी, हरलाखी (मधुबनी) । जनकपुरधाम स्थित मनिमंडप परिसर में बुधवार रात 36 जोड़े वर-वधु का सामूहिक विवाह कराया गया। इस विवाह में भारत-नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र के जोड़े शामिल हुए। वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हिंदू रीति रिवाजों से विवाह कराए गए।
विवाह के लिए बेदी मंडप पर बैठे दूल्हा दुल्हन।
वर व कन्या ने सबसे पहले माता जानकी की पूजा की
विवाह से पहले शाम करीब छह बजे सभी दूल्हे को रथ पर बैठकर उनके अभिभावकों ने गाजे बाजे के साथ नगरदर्शन कराया। उसके बाद उन्होंने जानकी मंदिर में प्रवेश किया। वर व कन्या ने सबसे पहले माता जानकी की पूजा की। फिर विवाह की सभी रस्मे पूरी की गईं।
आयोजन के संबंध में विहिप के जिलाध्यक्ष ने बताया कि दहेज रूपी कुप्रथा को दूर करने के लिए नेपाल के विश्व हिंदू परिषद ने सात वर्ष पूर्व इस सामूहिक विवाह की प्रथा शुरू की थी। इस तरह के आयोजन में समाज के सभी वर्गो को आगे आना होगा।
आज भी दहेज कुप्रथा के कारण बहुत सारी बेटियों के विवाह में कठिनाई होती है। सामूहिक विवाह कई जरूरतमंद परिवारों के लिए मददगार होता है। वैवाहिक रस्मों के उपरांत विहिप द्वारा सभी जोड़ें को उपहार स्वरूप घरेलू उपयोगी सामग्री देकर विदा किया गया।
नेपाल विहिप के केंद्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह, मधेश प्रदेश के मुख्यमंत्री सरोज यादव, मेयर मनोज कुमार साह, स्थानीय सीडीओ प्रेम प्रसाद ल्यूटेन व एसपी रुगम बहादुर कुंवर इस सामूहिक विवाह में शामिल हुए। आयोजन विहिप के धनुषा जिलाध्यक्ष संतोष साह व नगर अध्यक्ष जानकी रमण शास्त्री सहित अन्य सदस्यों ने किया।
बरात में शामिल साधु-संतों को मिथिला व्यंजन कराए गए
सात दिवसीय श्रीराम-सीता विवाहोत्सव के अंतिम दिन बुधवार को नेपाल के जनकपुरधाम में रामकलेवा अर्थात विदाई की रस्म हुई।
रामकलेवा में मर्याद भोजन की परंपरा निभाई गई। प्रभु श्रीराम संग तीनों भाई, राजा दशरथ एवं बरात में शामिल साधु-संतों को भतखई कराई गई।
भोजन में भात-दाल, कई प्रकार की सब्जियों के साथ कढ़ी-बड़ी, अदौरी, तिसियौरी, तिलकोर, खमहाउर का तरुआ, पापड़, अचार, मिठाई, दही सहित कई प्रकार के अन्य व्यंजन परोसे गए। भोजन के क्रम में मैथिलानियों ने खूब हंसी-ठिठोली भी की। सबसे पहले चारों भाइयों को भोजन परोसा गया। भगवान भोजन नहीं कर रहे थे। मिथिला की परंपरा के अनुसार राजा जनक के रूप में जानकी मंदिर के महंत राम तपेश्वर दास ने भगवान राम को मनाया और उन्हें भोजन कराया।

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