Madhubani News: लौकही रेल परियोजना को स्वीकृति मिलने के बावजूद निर्माण नहीं, स्थानीय लोगों में आक्रोश
Madhubani News लौकही के लोग रेल सेवा के इंतजार में हैं पर परियोजना शुरू नहीं हो रही। 2007 में लालू प्रसाद यादव ने घोषणा की थी शिलान्यास भी हुआ लेकिन काम आगे नहीं बढ़ा। लोग सरकार पर उदासीनता का आरोप लगा रहे हैं और आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं। रेल सेवा से क्षेत्र का विकास होगा और लोगों को सुविधा मिलेगी।
राशिद रजा, लौकही (मधुबनी)। Madhubani News: रेल सेवा की आस में दशकों से टकटकी लगाए बैठे लौकही वासियों का धैर्य अब जवाब देने लगा है। इंडो-नेपाल सीमा पर स्थित इस महत्वपूर्ण प्रखंड में रेल परियोजना की स्वीकृति के बावजूद अब तक कोई ठोस निर्माण कार्य शुरू नहीं होने से स्थानीय लोगों में गहरी नाराज़गी है।
लोगों ने केंद्र सरकार और विशेषकर रेल मंत्रालय पर उदासीनता का आरोप लगाया है। बताते चलें कि लौकही प्रखंड, जिसकी स्थापना 2 अक्टूबर 1955 को हुई थी, सीमावर्ती क्षेत्र होने के साथ-साथ रणनीतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यहां की आबादी ढाई लाख से अधिक है और दो राष्ट्रीय राजमार्ग– एनएच-27 तथा एनएच-227 से यह क्षेत्र सीधे जुड़ा हुआ है। इसके बावजूद यहां रेल जैसी बुनियादी सुविधा का अब तक नहीं मिल पाना जनाकांक्षा के साथ एक बड़ा मजाक बनकर रह गया है।
वर्ष 2007 में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सीतामढ़ी-जयनगर-लौकहा-लौकही-निर्मली रेलवे लाइन (वाया सुरसंड) की महत्वाकांक्षी परियोजना की घोषणा की थी। इस घोषणा के बाद 5 जनवरी 2008 को सुरसंड में इस परियोजना का विधिवत शिलान्यास भी किया गया था।
कुल 188.9 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन के लिए सर्वेक्षण संपन्न कर लिया गया था, साथ ही प्रस्तावित स्टेशन और हाल्ट के लिए स्थान भी चिह्नित कर दिए गए थे। उस समय यह खबर पूरे इलाके में उत्साह की लहर लेकर आई थी।
परंतु अब, इस परियोजना की स्थिति बेहद चिंताजनक है। निर्माण कार्य तो दूर, वर्षों से इस योजना को केवल बजट में मामूली राशि आवंटित कर ‘खानापूर्ति’ की जा रही है। ऐसे में स्थानीय लोग इसे सरकार की “राजनीतिक दिखावा” करार दे रहे हैं।
लौकही के समाजसेवी रामनाथ झा ने कहा, “यह प्रखंड इंडो-नेपाल बॉर्डर पर स्थित है, जो देश की सुरक्षा और विकास दोनों के लिहाज से बेहद अहम है। लेकिन सरकार की अनदेखी से यहां की पीढ़ियां रेल सेवा के बिना ही गुजर रही हैं। अब हमें सिर्फ आश्वासन नहीं, एक्शन चाहिए।”
स्थानीय युवाओं ने भी इंटरनेट मीडिया और जन संवाद के माध्यम से आंदोलन की चेतावनी दी है। लोगों का कहना है कि यदि जल्द ही इस परियोजना को पुनर्जीवित कर निर्माण कार्य शुरू नहीं किया गया, तो वे बड़ा जनआंदोलन छेड़ने को मजबूर होंगे।
बताते चलें कि लौकही प्रखंड मुख्यालय के लोगों को रेल यात्रा के लिए अब भी 30 किलोमीटर दूर घोघरडीहा रेलवे स्टेशन का सहारा लेना पड़ रहा है। जबकि लौकहा रेलवे स्टेशन की दूरी मात्र 15 किलोमीटर है, लेकिन दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों के लिए सीधी ट्रेनें न होने के कारण यात्रियों को दरभंगा, मधुबनी या अन्य बड़े रेलवे स्टेशनों का चयन करना पड़ता है।
इस स्थिति में लोगों को अतिरिक्त यात्रा करनी पड़ती है, जिससे बस या निजी वाहनों पर अलग से खर्च वहन करना पड़ता है। खासकर गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए यह आर्थिक बोझ बन गया है।
स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि लौकही प्रखंड में प्रस्तावित रेल परियोजना को लागू किया जाए, तो न सिर्फ प्रखंड के 18 पंचायतों के लोगों को सुविधा मिलेगी, बल्कि नेपाल सीमा से सटे गांवों को भी इसका लाभ मिलेगा।
सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र व्यापार और आयात-निर्यात के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण है। रेल कनेक्टिविटी बेहतर होने से स्थानीय उत्पादों को बाजार तक पहुंचाना आसान होगा, जिससे क्षेत्र के आर्थिक विकास को गति मिलेगी।
लोगों ने सरकार और रेल मंत्रालय से इस परियोजना को प्राथमिकता देने की मांग की है ताकि आने वाले समय में लौकही प्रखंड रेल मानचित्र पर एक मजबूत कड़ी के रूप में उभर सके।
परंतु रेल परियोजना को लेकर जिस तरह से सरकारी तंत्र में शिथिलता देखी जा रही है, उसने लौकही जैसे संवेदनशील इलाके के विकास की उम्मीदों को गहरी ठेस पहुंचाई है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस जनाक्रोश को समझती है या एक और चुनावी वादा अधूरा ही रह जाएगा।
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