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    लोहट चीनी मिल का अस्तित्व खत्म, 29 साल से बंद मिल की मशीनें बिक चुकी, आसान नहीं होगी नई शुरुआत

    By Pradeep MandalEdited By: Nishant Bharti
    Updated: Fri, 28 Nov 2025 08:43 AM (IST)

    राज्य सरकार की बंद चीनी मिलों को फिर से शुरू करने की घोषणा के बावजूद, मधुबनी की लोहट चीनी मिल की स्थिति निराशाजनक है। 29 साल पहले बंद हुई इस मिल की सभी मशीनें बेची जा चुकी हैं। नई शुरुआत के लिए नई मशीनें लगानी होंगी और गन्ने की खेती को बढ़ावा देना होगा। मिल की स्थापना 1914 में हुई थी, लेकिन घाटे के कारण 1996 में इसे बंद कर दिया गया।

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    लोहट चीनी मिल 

    प्रदीप मंडल, मधुबनी।  राज्य सरकार ने बंद चीनी मिलों को चलाने की जो घोषणा की है, उसका क्रियान्वयन बहुत आसान नहीं है। वर्षों पहले बंद चीनी मिलों के एक-एक उपकरण बेचे जा चुके हैं। जिन मिलों की मशीनें बची हैं, वे जंग खाकर बर्बाद हो चुकी हैं। 

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    अंग्रेजों के समय स्थापित 29 वर्ष पहले मधुबनी की बंद लोहट चीनी मिल का हाल कुछ ऐसा ही है। इसकी सभी मशीनें बिक चुकी हैं। इसका कोई अवेशष नहीं बचा है। इसे चलाने के लिए नई मशीनें लगानी होंगी। मिल को गन्ना उपलब्ध हो सके, इसके लिए इसकी खेती को बढ़ावा देना होगा। 

    1914 में चीनी मिल की स्थापना 

    लोहट चीनी मिल की स्थापना 1914 में 225 एकड़ भूमि में दरभंगा राज की दरभंगा शुगर कंपनी ने की थी। मिल की उत्पादन और गुणवत्ता इतनी अच्छी थी कि अंग्रेजी शासनकाल में इसने अलग पहचान बना ली। 

    लोहट चीनी मिल का 150 एकड़ में कृषि फार्म और 75 एकड़ में कारखाना तथा पदाधिकारियों व कर्मियों के लिए आवास का निर्माण किया गया था। ढुलाई के लिए पंडौल स्टेशन से लेकर लोहट चीनी मिल के अंदर तक रेलवे लाइन बिछाई गई थी। यहां 1250 स्थायी तथा 500 से 700 अस्थायी एवं सीजनल मजदूर काम करते थे।

    कोलकाता की कंपनी को बेचा गया था स्क्रैप 

    चीनी मिलों को चलाने के लिए 1974 में बिहार स्टेट शुगर कारपोरेशन लिमिटेड की स्थापना की गई, लेकिन चीनी की कीमतों में गिरावट और लागत में बढ़ोतरी के दबाव को मिलें झेल नहीं पाईं। घाटा बढ़ने से 1996 में लोहट चीनी मिल बंद कर दी गई। 

    2022 में मिल के खराब हो चुकीं मशीनें व स्क्रैप बेच दिया गया। इसे लगभग 24 करोड़ रुपये में कोलकाता की कंपनी बीबीएस इंफ्राकान प्राइवेट लिमिटेड ने खरीदा था। 

    मिल के लिए बिछी रेल लाइन की 23 पटरियां काटकर चुरा ली गईं। इसे लेकर प्राथमिकी हुई। बाद में रेल पटरियां बरामद हुई थीं। इससे पूर्व 2017 में मिल के अंदर रखे रेल इंजन को रेलवे यहां से ले गया था। जिसे फिलहाल दरभंगा स्टेशन के सामने सजाकर रखा गया है।