परजुआर तालाब की जमीन पर अतिक्रमकारियों का दबदबा
मधुबनी। मछली मखाना उत्पादन के लिए प्रखंडवार मत्स्यजीवी सहयोग समिति को दिए गए 10735 तालाबों में से करीब पांच हजार से अधिक तालाब जलकुंभी से भरा पड़ा रहता है। ऐसे तालाबों में बरसात के दिनों में नाममात्र पानी दिखाई देता है।
मधुबनी। मछली, मखाना उत्पादन के लिए प्रखंडवार मत्स्यजीवी सहयोग समिति को दिए गए 10735 तालाबों में से करीब पांच हजार से अधिक तालाब जलकुंभी से भरा पड़ा रहता है। ऐसे तालाबों में बरसात के दिनों में नाममात्र पानी दिखाई देता है। ऐसे तालाबों में मछली पालन, मखाना उत्पादन मुश्किल भरा होता है। इस तरह के तालाब के बड़ा हिस्सा अतिक्रमणकारियों के कब्जे में चला गया है। वहीं जिला मत्स्य विभाग के तहत तालाबों के रखरखाव के लिए अपनायी गयी प्रक्रिया की गति धीमी होने से तालाबों को बचाने की मुहिम को बल नही मिल रहा है।
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तालाब घाट पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा से महिलाओं को होती परेशानी दशकों पूर्व तक पवित्र जल से लोगों को शीतलता प्रदान करने वाला बेनीपट्टी के परजुआर डीह टोल तालाब करीब पांच वर्ष से से गंदगी व जलकुंभी से अटा-पटा है। गंदगी से पटा अतिक्रमण का शिकार इस तालाब को सरकारी स्तर पर समुचित संरक्षण नही हो पा रहा हैं। गांव के एक मात्र इस तालाब की बदहाली दूर करने में संबंधित विभाग उदासीनता से तालाब के चारों ओर अतिक्रमण का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। गंदगी व नाले की दूषित पानी बहाए जाने से यह तालाब धीरे-धीरे अपना स्वरूप बदलता जा रहा है। इस तालाब का लाभ लोगों को नही मिल पा रहा हैं। कई बार तालाब भिडा की जमीन के अतिक्रमण का मसला सामने आते रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि करीब डेढ़ बीघा रकवा वाले इस तालाब को अतिक्रमण से मुक्त कराने के दिशा में एक वर्ष पूर्व अंचल कार्यालय को आवेदन दिया गया था। आवेदन के आलोक में अंचल अमीन द्वारा मापी की गई थी। तत्कालीन सांसद हुक्मदेव नारायण यादव के ऐच्छिक कोष से तालाब के एक घाट का निर्माण कराया गया था। इस घाट पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा होने से स्नान के लिए महिलाओं को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। तालाब के चहुंओर भिडा की करीब पांच कट्ठा जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा बना है। ग्रामीणों ने बताया कि तालाब की स्थिति खराब होने से लोगों को छठ पूजा में दिक्कत होती है। अतिक्रमण के खिलाफ आगे आने वाले लोगों पर अतिक्रमणकारियों द्वारा मारपीट किया जाता है। इस तालाब को अतिक्रमण से मुक्त कराकर सौंदर्यीकरण की योजना पर कार्य शुरू किया जाना चाहिए।
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अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा परसा गांव का मरर तालाब बाबूबरही प्रखंड के कुल्हरिया पंचायत के के परसा गांव स्थित मरर तालाब अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। इस तालाब की करीब 10 कट्ठा जमीन पर
स्थानीय लोगों द्वारा कब्जा कर लिया गया है। जंगलझाड़ वाले इस तालाब का अतिक्रमण का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। तालाब पर अतिक्रमण को लेकर कई दफे स्थानीय लोगों द्वारा बाबूबरही अंचल प्रशासन का ध्यान आकर्षित किया जाता रहा है। गांव के कुशेश्वर यादव ने बताया कि एक वर्ष पूर्व से अंचल कार्यालय द्वारा इस तालाब को अतिक्रमण मुक्त कराने के दिशा में प्रक्रिया चल रही है। लेकिन इस दिशा में अंचल प्रशासन की उदासीनता से ठोस कार्रवाई नहीं होने से अतिक्रमणकारियों का मनोबल बढ़ता ही जा रहा है। अतिक्रमण और जंगल-झाड़ के कारण तालाब का वजूद मिटता जा रहा है। गंदगी से भरे इस तालाब में छठ पूजा में भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। तालाब की उड़ाही नही होने से वर्षा जल को संचय नही हो पाता है। वर्षा जल संचय के लिए इस तालाब का जीर्णोद्धार आवश्यक हैं। तालाबों की गहराई बढ़ाकर वर्षा जल को बचाने का प्रयास करना होगा। इससे बाढ़ की तबाही से भी बचने के साथ सिचाई की सुविधा भी बहाल होंगी। अंचल प्रशासन की उदासीनता के कारण मरर सहित अनेक तालाब की स्थिति मरनासन्न हो गई है। प्रशासन के सहयोग से तालाब का जीर्णोद्धार संभव होगा। तालाब के अतिक्रमणकारियों पर कार्रवाई जरूरी है।
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आम लोगों की नजरों से ओझल हो रहा भगवतीपुर का सार्वजनिक तालाब तालाबों की बदहाली और उसके अतिक्रमण से जिले के अधिकांश तालाबों को सूखे के दौर से गुजर रहा है। ऐसे तालाब बरसात के दिनों में भी सूख ही रह जाता है। तालाबों में जलकुंभी रहने से वर्षा जल का संचय नही हो पाता है। ऐसे तालाब मौसम बदलते ही सूख जाता है। सालों भर लोगों का स्नान, मछली पालन व सिचाई सुविधा मुहैया कराने वाले तालाबों को सूखने से जल संकट की विकट समस्या उत्पन्न होने लगा है। पोखर, तालाब की धार्मिक महत्ता रही है। छठ पूजा, मुंडन सहित अन्य धार्मिक अनुष्ठान के लिए तालाबों में जल का होना जरूरी माना गया है। पंडौल प्रखंड के भगवतीपुर गांव स्थित सार्वजनिक तालाब की निरंतर उपेक्षा से इसकी पहचान समाप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। चहुंओर अतिक्रमण के कारण यह तालाब आम लोगों के आंखो से ओझल सा हो गया है। जल की जगह गंदगी से से भरे इस तालाब के अस्तीत्व पर ग्रहण नग गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस सार्वजनिक तालाबों को जीवित करने के लिए लोग लालायित तो है लेकिन शासन-प्रशासन की सहयोग के बगैर यह संभव नही हो रहा हैं। तालाबों के जीर्णोद्धार के दिशा में आवश्यक पहल शुरू किया जाना चाहिए। तालाब के करीब ही माता भुवनेश्वरी मंदिर होने से बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु पहुंचते है। चहुंओर उग आए जंगल वाले सार्वजनिक तालाब के अतिक्रमण के प्रति प्रखंड प्रशासन उदासीन बना है। तालाब को फिर से जीवित करने के दिशा में सरकारी स्तर पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। प्रशासन का सहयोग मिले तो सूखे तालाबों का जीर्णोद्धार कार्य स्थानीय लोगों के मदद से पूरा किया जा सकता है। भिडा के बगैर लोगों को तालाब के समुचित लाभ से वंचित होना पड़ रहा हैं।
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