मधुबनी में यूपी के फौजी को मिली अपनी मिट्टी, चुनाव ड्यूटी बनी मिलन का जरिया
Bihar News: उत्तर प्रदेश के फ़ौजी सतपाल शर्मा, जो चुनावी ड्यूटी के दौरान मधुबनी के ठाढ़ी गांव पहुंचे। उन्होंने अपनी जड़ों को खोजा। कई पीढ़ियों पहले उन ...और पढ़ें

संवाद सहयोगी, अंधराठाढ़ी (मधुबनी)। Bihar News: पूर्वजों की पवित्र भूमि मिथिला पर कदम रखते ही यूपी के फौज़ी सतपाल शर्मा की आंखें नम हो गईं। उत्तर प्रदेश में जन्मे और वहीं पले-बढ़े सतपाल के लिए यह सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि अपनी जड़ों से मुलाकात का एक ऐसा क्षण था, जिसका इंतज़ार उनके पूर्वजों की कई पीढ़ियों ने किया था।
बताते चलें कि फौजी सतपाल शर्मा अपनी चुनावी ड्यूटी के दौरान ठाढ़ी आए थे। इस दौरान उनको पता चला कि उनकी जड़ें मिथिला में है। उत्तर प्रदेश में रहने वाले मैथिल ब्राह्मणों को ब्रजस्थ मैथिल ब्राह्मण कहा जाता है।
ऐतिहासिक रूप से इनके पूर्वज बिहार के मिथिला क्षेत्र से 16वीं शताब्दी में गयासुद्दीन तुगलक और बाद में अकबर के शासनकाल में आगरा चले गए थे। औरंगज़ेब के दौर में बढ़ते अत्याचारों के बीच वे ब्रज क्षेत्र आगरा, अलीगढ़, मथुरा, हाथरस में बस गए।
1857 के बाद जोड़ा गया रिश्ता
मुग़ल काल में कट चुके रिश्ते को 1857 के बाद पुनः जोड़ने का बड़ा श्रेय स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती को जाता है। उन्हीं के प्रयासों से प्रवासी मैथिल ब्राह्मणों का मिथिला से पुनः संपर्क बना मैथिल सिद्धांत सभा जैसे संगठन बने और पंजी-प्रमाणपत्र की परंपरा पुनर्जीवित हुई। हालांकि ये जुड़ाव उस तरह से नहीं हो पाया जैसा होना चाहिए था।
वहां आज भी इन ब्रजस्थ मैथिलों को वो सम्मान और अपनापन नहीं मिल पाया जिसके वो हकदार थे। राजनीतिक और सामाजिक तौर पर उन्हें वहां हमेशा बाहरी और और पराया जी समझा जाता रहा। सतपाल शर्मा का भावुक क्षण - फ़ौज़ी सतपाल शर्मा जब अपने पूर्वजों की धरती पर पहुंचे तो उनकी भावनाएं चरम पर थीं।
उन्होंने कहा मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपनी मां की गोद में लौट आया हूं। यह मिट्टी मेरे पूर्वजों के कदमों की खुशबू समेटे है। भले समय, परिस्थिति और दूरी कितनी ही बदल जाए, जड़ों की पुकार कभी खत्म नहीं होती।
सैकड़ो वर्षों के बाद यह भावुक पुनर्मिलन दर्शाता है कि अपनी मिट्टी, अपनी संस्कृति और अपनी पहचान से मिलना मानव जीवन का सबसे अनमोल अनुभव है।
सतपाल तो ऐसे फौजी हैं जो अपनी जड़ तक पहुंच सके। मुगलों के शासनकाल में यहां से पलायन करने वाले अनेक ब्राह्मण आज विभिन्न जगहों पर निर्वासित जीवन जी रहे। जड़ से अलग होने का दर्द वे अपने में समेटे हैं।

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