मधुबनीः बिहार से नेपाल तक प्रभु राम-माता सीता से जुड़े आस्था स्थल पर्यटन संग देते हैं पुण्य कमाने का सौभाग्य
मिथिला के कण-कण में माता सीता रची-बसी हैं। यहां प्रभु श्रीराम ने जहां-जहां अपने पावन पग धरे वह धरती धन्य हो गई। 15 दिन चलने वाली मध्यमा परिक्रमा में इन जगहों पर जाकर श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। इसमें भारत-नेपाल के साधु-संतों के साथ बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं।

मनोज झा, हरलाखी (मधुबनी)। प्रभु श्रीराम और माता सीता से जुड़े स्थलों के दर्शन के साथ परिक्रमा का पुण्य मधुबनी आकर ले सकते हैं। नेपाल से शुरू और मिथिलांचल के विभिन्न स्थलों से होकर गुजरने वाली 84 कोसी परिक्रमा में श्रद्धालु उन 15 जगहों पर जाते हैं, जो प्रभु श्रीराम व माता सीता से जुड़े हैं।
इनमें कई वे स्थान हैं, जहां श्रीराम स्वयंवर में भाग लेने से पहले अनुज लक्ष्मण व गुरु विश्वामित्र के साथ पहुंचे थे। इनमें से चार स्थल भारत और शेष नेपाल में हैं। वैसे तो इन स्थलों पर पूरे वर्ष श्रद्धालु आते हैं, मगर यात्रा के समय इनकी संख्या बढ़ जाती है।
मिथिला के कण-कण में माता सीता रची-बसी हैं। यहां प्रभु श्रीराम ने जहां-जहां अपने पावन पग धरे, वह धरती धन्य हो गई। 15 दिन तक चलने वाली मध्यमा परिक्रमा में इन जगहों पर जाकर श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। इसमें भारत-नेपाल के साधु-संतों के साथ बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं।
इसका आयोजन नेपाल के कचुरीधाम के मिथिला बिहारी मंदिर की ओर से किया जाता है। मिथिला बिहारी (श्रीराम) की डोली लेकर श्रद्धालु सबसे पहले जनकपुर पहुंचते हैं। यहां से किशोरीजी (माता सीता) की डोली भी साथ में हो जाती है। यहां से दोनों डोलियां भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती हैं।
मध्यमा परिक्रमा से जुड़े स्थलों में कचुरीधाम के अलावा कल्याणेश्वर महादेव, फुलहर, मटिहानी, जलेश्वर, मड़ै स्थान, ध्रुवकुंड, कंचनवन, पर्वता, धनुषा, सतोषर, औरही, करुणा, विशौल और जनकपुर हैं। इनमें से चार कल्याणेश्वर, फुलहर, करुणा, विशौल भारतीय क्षेत्र के मधुबनी जिले तो शेष नेपाल में हैं।
सात मार्च को जनकपुर में परिक्रमा संपन्न होगी। उस दिन मिथिला में होलिका दहन होगा। इसमें परिक्रमा में बीते 15 वर्ष से शामिल होने वाले सीतामढ़ी के शंकर दास कहते हैं कि हम जैसे गृहस्थ भोजन बनाने का पूरा सामान साथ लेकर चलते हैं। एक समय भोजन करते हैं।
परिक्रमा स्थल की खासियत
कल्याणेश्वर स्थान भारतीय क्षेत्र के मधुबनी जिले के हरलाखी प्रखंड क्षेत्र में है। कहा जाता है कि राजा जनक ने कल्याणेश्वर महादेव की स्थापना की थी। हरलाखी प्रखंड अंतर्गत फुलहर वह स्थान है, जहां माता सीता प्रतिदिन मां गिरजा के पूजन को आती थीं।
यहीं वह फुलवारी थी, जिसमें माता सीता और प्रभु श्रीराम ने एक-दूसरे को पहली बार देखा था। मधवापुर प्रखंड के निकट मटिहानी से श्रीराम के विवाहोत्सव की रस्म मटकोर के लिए मिट्टी लाई गई थी। इससे इस जगह का नाम मटिहानी पड़ा।
जलेश्वर महादेव की स्थापना भी राजा जनक ने की थी। सीता-राम के विवाहोत्सव के लिए जो मंडप बनाया गया था, उसके लिए खर मड़ै स्थान से आया था। ध्रुवकुंड को ध्रुव से जुड़ा बताया जाता है। नगर भ्रमण के दौरान प्रभु श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण व गुरु विश्वामित्र के साथ यहां पहुंचे थे।
कंचनवन का मिथिला की लोक संस्कृति में विशेष महत्व है। मिथिला आगमन पर इसी जगह प्रभु श्रीराम ने होली मनाई थी। मध्यमा परिक्रमा के दौरान यहां से होली की शुरुआत हो जाती है। यात्रा का विश्राम पर्वता नामक जगह पर होता है।
धनुषा के बारे में मान्यता है कि स्वयंवर के दौरान जिस शिव धनुष को प्रभु श्रीराम ने तोड़ा था़, उसका मध्य भाग इस स्थल पर गिरा था। इसे लोग धनुषा पहाड़ कहकर बुलाते हैं। कहा जाता है कि सतोषर में सप्त ऋषि का आश्रम था।
मिथिला आगमन पर गुरु विश्वामित्र, राम व लक्ष्मण को इस स्थल पर लाए थे। करुणा वह स्थान है, जहां विदाई के दिन सखियों ने माता सीता को पानी पिलाया था। विशौल में प्रभु श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण व गुरु के साथ विश्राम किया था।
मधुबनी देश के दिल्ली, मुंबई जैसे प्रमुख शहरों से ट्रेन से जुड़ा है। यहां करीब 40 किलोमीटर दूर दरभंगा एयरपोर्ट है। देश के प्रमुख शहरों से यहां के लिए फ्लाइट उपलब्ध है। मधुबनी के हरलाखी प्रखंड मुख्यालय की दूरी करीब 40 किलोमीटर है, जहां कल्याणेश्वर स्थान, फुलहर, करुणा और विशौल हैं।
यहां से बस की सुविधा है। प्राइवेट वाहन भी बुक कर जा सकते हैं। ट्रेन से सीधे जयनगर उतर इन जगहों पर जा सकते हैं। वहां से दूरी करीब 25 किलोमीटर है। जिला मुख्यालय और जयनगर में रहने के लिए बजट में अच्छे होटल हैं। दरभंगा से भी बस पकड़ इन चारों स्थानों पर जा सकते हैं।
दरभंगा या मधुबनी जिला मुख्यालय से हरलाखी जाते समय बीच में बेनीपट्टी प्रखंड स्थित उच्चैठ भगवती का भी दर्शन कर सकते हैं। उच्चैठ भगवती के बारे में कहा जाता है कि कालीदास को यहीं ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। मां काली के इस रूप का दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। नवरात्र के समय यहां बड़ी भीड़ होती है।
इस परिक्रमा का इतिहास प्रभु श्रीराम के मिथिला आगमन से जुड़ा है। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष महाशिवरात्रि के बाद फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से शुरू होती है। उस दिन भगवान भोलेनाथ को साक्षी रखकर डोली की पूजा-अर्चना की जाती है। होलिका दहन के दिन जनकपुर में माता किशोरीजी के अंत:गृह की परिक्रमा कर संपन्न होती है। इस बार इसकी शुरुआत 20 फरवरी से हुई। परिक्रमा में हजारों श्रद्धालु शामिल हैं। - राम नरेश शरण, महंत, मिथिला बिहारी मंदिर, कचुरीधाम, नेपाल
परिक्रमा में शामिल होने वाले बहुत से गृहस्थ भोजन का पूरा सामान लेकर चलते हैं। साधु-संतों के लिए पड़ाव स्थल पर स्थानीय स्तर पर व्यवस्था की जाती है। इसमें स्थानीय लोग सहयोग करते हैं। कल्याणेश्वर में टेंट लगाने के साथ श्रद्धालुओं के ठहरने सहित अन्य व्यवस्था की जाती है। रास्ते भर लोग दर्शन व पूजा करते हैं। पड़ाव स्थल पर हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं। - कृष्ण कुमार ठाकुर, पुजारी कल्याणेश्वर महादेव, हरलाखी, मधुबनी
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