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    लोगों का दु:ख हरतीं राज राजेश्वरी

    By JagranEdited By:
    Updated: Thu, 28 Sep 2017 01:19 AM (IST)

    मधुबनी। कलुआही प्रखंड की मधेपुर पंचायत के बहरवन बेलाही में पौराणिक नदी चंद्रभागा किनारे विराजमान

    लोगों का दु:ख हरतीं राज राजेश्वरी

    मधुबनी। कलुआही प्रखंड की मधेपुर पंचायत के बहरवन बेलाही में पौराणिक नदी चंद्रभागा किनारे विराजमान है राजराजेश्वरी जो दु:खहर या डोकहर के नाम से प्रसिद्ध है। मिथिला के तीर्थ राज के तौर पर इस स्थल को आदिशक्ति और देवाधिदेव महादेव की क्रीड़ा स्थल के नाम से जाना जाता है। यहां शिव और गौरी विराजमान हैं। इनके नीचे एक तरफ मार्कण्डेय तो दूसरी तरफ हनुमानजी हैं। सामने गहरे कुंड में शिव¨लग स्थापित हैं। इस स्थल की महत्ता प्रागैतिहासिक काल से है। मंदिर का भव्य निर्माण दरभंगा पति महेश ठाकुर के समय काल में किया गया। स्थल की प्राचीनता इसी बात से पता चलता है कि मंदिर के मुख्य द्वार पर लगे शिलालेख को आज तक किसी भी विद्वान से पढ़ना संभव नहीं हो सका है। इस गुप्त और अंतिम हत्वपूर्ण स्थल की वर्तमान प्राकट्य 9वीं शताब्दी माना जाता है।

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    मंगरौनी निवासी प्रसिद्ध तंत्रसिद्ध मदन उपाध्याय के सहोदर रूपी उपाध्याय

    उर्फ भारती जी के समय में माना जाता है, जो काशीविश्वनाथ की नगरी से लौटकर भगवती की कृपा से यहां पहुंचे और चन्द्रभागा नदी में असंख्य कमल फूलों के मध्य एक कमल के नीचे से इस देव दुर्लभ शिवशक्ति की युगल प्रतिमा को बाहर निकाला। माना जाता है कि मंदिर के सामने बाएं दिशा में जो पीपल है वो

    उन्हीं भारतीजी की जीवित सामाधि स्थल है। वर्तमान में उन्हीं के वंशज जो अपने नाम में भारती उपयोग करते है यहां की व्यवस्था संभालते हैं। वैसे तो

    इस शक्तिपीठ में प्रतिदिन भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है पर शिवरात्रि और शारदीय नवरात्र में यहां भाड़ी भीड़ होती है। विजया दशमी को होने वाली विशेष पूजा आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होकर राजराजेश्वरी की पूजा कर गाजेबाजे के साथ भजन कीर्तन करते हुए घंटे घडियाल, ढ़ोल, नगाड़े के साथ नीलकंठ पक्षी के दर्शन को निकलते हैं। और जहां वो पवित्र पक्षी दिख जाता है वहां पूजन कर वापस मंदिर लौट जाते हैं। जहां पुन: आदि शक्ति और देवाधिदेव की विधिविधान से पूजा की जाती है।