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    परिक्रमा डोली पहुंची मटिहानी, सियाराममय हुआ सीमांचल

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    Updated: Sat, 12 Mar 2016 01:27 AM (IST)

    मधुबनी। मधवापुर में मिथिला की सुप्रसिद्ध 15 दिवसीय पावन परिक्रमा की डोली शुक्रवार को गिरजा स्थान फ

    मधुबनी। मधवापुर में मिथिला की सुप्रसिद्ध 15 दिवसीय पावन परिक्रमा की डोली शुक्रवार को गिरजा स्थान फुलहर से चलकर तीसरे पड़ाव स्थल नेपाल के मटिहानी मठ पहुंची। जहां लक्ष्मीनारायण मठ के मान महंथ जग्रनाथ दास वैष्णव के नेतृत्व में सीमावर्ती क्षेत्र के हजारों नर-नारियों ने मिथिला बिहारी एवं जानकी जी की डोली एवं साथ चल रहे साधू, संत एवं महंथों का पुष्प वृष्टि कर भव्य स्वागत किया। सीमावर्ती क्षेत्र के लोग भगवान की डोली की पूजा-अर्चना की। इस क्रम में साधू-संतों द्वारा किए जा रहे जय सीताराम जयघोष व भजन कीर्तन से माहौल आध्यात्मिक हो गया। भगवान की डोलियों के पहुंचते ही लोगों की भाड़ी भीड़ दर्शन के लिए उमड़ पड़ी। वहीं परिक्रमा में भाग लेने वाले साधू, संत, महात्मा व अन्य श्रद्धालुओं का लोगों ने ठंडा-गरम पेयजल से स्वागत किया। रास्ते में सड़क किनारे खड़े हजारों लोगों ने भगवान की डोलियों पर पुष्प व गुलाल उड़ाकर अपनी श्रद्धा निवेदित कर रहे थे। परिक्रमा में दोनों देशों के हजारों संत महात्मा, गृहस्थों के अतिरिक्त भारतीय क्षेत्र के अयोध्या, काशी, मथुरा, वृन्दावन आदि के लाखों श्रद्धालु सियाराम भक्त 15 दिनों तक भक्ति के साथ पांव पैदल भाग लेते हैं और सियाराम के प्रति भक्ति में लीन रहते हैं।

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    प्रतिवर्ष फाल्गुन प्रतिपदा से कल्याणेश्वर स्थान से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को जनकपुर धाम में समाप्त होने वाली मिथिला परिक्रमा भारत-नेपाल के सांस्कृतिक एकता का अदभूत उदाहरण है। यह 15 दिवसीय परिक्रमा फाल्गुन अमावस्या को नेपाल के कचुरी धाम से हजारों संत महात्माओं व अन्य श्रद्धालुओं के साथ मिथिला बिहारी व जानकी जी की डोली उठती है जो हनुमानगढ़ी होते हुए भारत के कल्याणेश्वर धाम पहुंचती है। दूसरे दिन परिक्रमा गिरजा स्थान फुलहर और तीसरे दिन मटिहानी पहुंचती है। इस तरह परिक्रमा मिथिला क्षेत्र से जुड़े भारत-नेपाल के प्रसिद्ध पन्द्रह देवस्थलों का भ्रमण पैदल 15 दिनों तक होता है। प्रत्येक विश्राम स्थलों पर भगवान के डोली की ठहरने की व्यवस्था अलग-अलग रहती है और लोग रात्रि विश्राम करते हैं रात्रि के समय विश्राम स्थलों में भजन कीर्तन के साथ-साथ रामलीला एवं झांकी आदि का आयोजन किया जाता है। करीब 150 किलोमीटर पैदल भ्रमण करने के बाद अंतिम दिन पूर्णिमा को परिक्रमा जनकपुरधाम में पंचकोशी परिक्रमा कर एक-दूसरे को अबिर-गुलाल उड़ाकर परिक्रमा समाप्त हो जाता है।

    परिक्रमा में आए हुए साधु, संतों, महात्माओं एवं श्रद्धालुओं के सहयोग के लिए दोनों देश के संघ संस्थाओं के द्वारा शिविर लगाकर मुफ्त दवा वितरण एवं मटिहानी के व्यवसायियों की ओर से परिक्रमा पैदल यात्र करने वाले लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था किया गया था। वहीं लोगों द्वारा पेयजल के लिए बों¨रग से पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई थी। जबकि मेला में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए बड़ी संख्या में नेपाल प्रहरी और एपीएफ के जवान व भारतीय क्षेत्र से एसएसबी व थाना पुलिस के जवान तैनात किए गए थे। इसके अलावा मेला के दौरान यात्रियों के सहयोग और सेवा के लिए दोनों देशों के संघ संस्थाओं द्वारा बीमार लोगों की सेवा के लिए जगह-जगह शिविर लगाकर लोगों के बीच दवा वितरण किया जा रहा था और सीमावर्ती क्षेत्र के गणमान्य व विभिन्न दलों के कार्यकर्ता व आम नागरिक तत्पर दिखे। परिक्रमा डोली शनिवार सुबह अगले पड़ाव स्थल जलेश्वर के लिए सियाराम का जयघोष लगाते हुए प्रस्थान किया।

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