यहां है लालू-नीतीश की पॉलिटिक्स का सेंटर, यदुवंशियों के गढ़ में क्या फिर होगा टाई या बदलेगा सीन?
मधेपुरा, जो कभी समाजवाद की प्रयोगशाला था, अब चुनावी राजनीति का केंद्र है। 1990 में लालू यादव ने इसे अपना गढ़ बनाया, लेकिन 2005 में नीतीश-शरद की जोड़ी ने बाजी पलट दी। 2020 में राजद ने वापसी की, जिससे मुकाबला बराबरी पर आ गया। वर्तमान में राजद और जदयू के लिए अपने गढ़ को बचाना एक चुनौती है। आगामी चुनाव में दोनों पार्टियां पूरी ताकत लगाएंगी।

अमितेष, मधेपुरा। यदुवंशियों के गढ़ मधेपुरा में इस बार चुनावी समर देखने लायक होगा। 1950 के दशक में भूपेंद्र नारायण मंडल और बीपी मंडल के दौर में मधेपुरा को समाजवाद का प्रयोगशाला कहा गया। 1990 का दशक आते-आते यह मंडल-कमंडल की राजनीति का केंद्र बना तो कांग्रेस हाशिये पर चली गई और जनता दल का गढ़ बन गया।
इसका सीधा फायदा लालू यादव को हुआ और रोम पोप का मधेपुरा गोप का नारा बुलंद कर अपने इस गढ़ को मजबूत करते चले गए। इसके बाद नीतीश कुमार और शरद यादव की जोड़ी ने पचपनिया की राजनीति को धार देकर 2005 में जिले की पांचों विधानसभा सीट पर कब्जा जमाते हुए अपना मजबूत किला बनाया।
2009 में परिसीमन के बाद बच गए चार में एक मधेपुरा विधानसभा सीट पर राजद 2010 में वापसी करने में सफल रही। 2020 में जदयू के हाथ से सिंहेश्वर सीट झटककर राजद खुद को मजबूत करती दिखी।
लालू और नीतीश की राजनीति का केंद्र रहा है मधेपुरा:
1990 के दशक में जनता पार्टी की लहर में लालू यादव की सलाह पर शरद यादव लोकसभा चुनाव लड़ने मधेपुरा आए थे। इसके बाद वे यहीं के होकर रह गए। जब लालू-शरद की राहें अलग हुई तो दोनों के बीच चली प्रतिद्वंद्विता नेशनल मीडिया की सुर्खियां बनती रही।
लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में भले ही लालू को शरद के हाथों हार मिली और शरद को लालू ने शिकस्त दी, लेकिन विधानसभा चुनुाव में लालू यादव की ही चली। मधेपुरा जिला 1990 से 2000 तक जनता दल और राजद का गढ़ बना रहा। इसके बाद शरद यादव-नीतीश कुमार की जोड़ी ने 2005 के विधानसभा चुनाव में खेल पलट दिया और जिले की सभी पांच सीटों पर कब्जा जमा लिया।
मधेपुरा जिले को लालू, शरद और नीतीश कुमार ने हमेशा केंद्र बनाए रखा। यही वजह है कि अपने शासनकाल में लालू यादव हर चुनावों में एक तरफ मधेपुरा में कैंप करते रहे। इधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी गत चुनावों को मधेपुरा को केंद्र बनाकर कोसी-सीमांचल को साधते रहे हैं। चाहे वह लोकसभा का चुनाव हो या फिर विधानसभा का।
लालू यादव के एमवाई समीकरण की काट में नीतीश कुमार पचपनिया की राजनीति को धार देते हुए समीकरण पलटने में कामयाब रहे। नतीजा जदयू का यह मजबूत गढ़ बन गया लेकिन 2020 में राजद ने राजग के समीकरण में सेंध लगाते हुए जोरदार वापसी की और बराबरी पर आ खड़ी हुई। लिहाजा जिले की दो-दो सीट पर कब्जा जमाए जदयू और राजद के लिए इस बार गढ़ बचाने की चुनौती है।
वर्तमान में मधेपुरा और सिंहेश्वर (सुरक्षित) सीट पर राजद का कब्जा है। आलमनगर और बिहारीगंज सीट पर तो जदयू का। राजद बिहारीगंज व आलमनगर सीट हथियाने के लिए पूरी जोर लगाएगी। वहीं जदयू मधेपुरा और सिंहेश्वर (सुरक्षित) सीट पर वापसी के लिए पूरा दमखम लगा रही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।