2005 के बाद बदली पूर्व सीएम बीपी मंडल के गांव की किस्मत, अब बज रहे विकास के गीत
मधेपुरा जिले का मुरहो गांव, जो पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल का पैतृक गांव है, 2005 के बाद विकास की राह पर अग्रसर है। यहाँ सड़कें, बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं बेहतर हुई हैं। लोग विकास को प्राथमिकता दे रहे हैं, हालांकि युवाओं की अपनी अपेक्षाएं हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे क्षेत्रों में विकास चाहते हैं। उनका मानना है कि अब युवाओं को भविष्य निर्माता बनना है।

पूर्व सीएम बीपी मंडल के गांव की किस्मत
अमितेष, मधेपुरा। जिला मुख्यालय से महज छह किमी की दूरी पर मुरहो गांव अवस्थित है। पूर्व मुख्यमंत्री बिंध्येश्वरी प्रसाद मंडल(बीपी मंडल) का पैतृक गांव है। इसी गांव में कोसी इलाके के पहले दलित सांसद किराय मुसहर की जन्मस्थली है। गांव के पश्चिम से एनएच 106 और उत्तर से एनएच 107 गुजर रही है।
चकाचक सड़कें, बिजली, पानी से लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व तमाम सुविधाएं उपलब्ध है। यहां राह चलते आमलोग हों या फिर खेतिहर मजदूर हर कोई राजनीतिक रूप से परिपक्व दिखते हैं। यूं समझें कि कण-कण में राजनीति की तासीर महसूस की जा सकती है।
चुनावी गपशप शुरू होते ही बरबस पूर्व मुख्यमंत्री बीपी मंडल और आरक्षण की चर्चा हर जुबां पर तैर जाती है। बात वोट की हो तो हर कोई विकास को प्राथमिकता देते दिखते हैं। युवा हों या बुजुर्ग या फिर गृहिणी हर किसी की अपनी प्राथमिकताएं हैं, अपने मुद्दे हैं लेकिन वोट विकास के नाम पर ही देने की बात कही-सुनी जा रही है।
50 दिनों तक प्रदेश के मुखिया
एक फरवरी 1968 को बिहार के सातवें मुख्यमंत्री बने बीपी मंडल भले ही 50 दिनों तक प्रदेश के मुखिया रहे। 7 अगस्त 1990 की शाम प्रधानमंत्री वीपी सिंह के आवास पर केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में दशक भर से धूल फांक रही मंडल आयोग की जिस रिपोर्ट की सिफारिश पर मुहर लगी उस मंडल आयोग के अध्यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) ही थे।
समय बदला, परिस्थितियां बदली लेकिन एक चीज नहीं बदली वह है बीपी मंडल का कृतित्व। वंचितों को मुख्यधारा से जोड़ने वाली मंडल कमीशन की चर्चा हर जुबां है। ग्राम वासियों को इस पर गर्व है।
असल विकास तो 2005 के बाद
लोग कहते हैं कि बीपी मंडल के नाम पर राजनीति खूब हुई। देश के तमाम समाजवादी विचारधारा से जुड़े दिग्गजों ने उनके नाम पर खूब राजनीतिक रोटियां सेकी। लेकिन असल विकास तो 2005 के बाद हुआ। सड़कें पहले भी थी, लेकिन जर्जर। बिजली इस कदर निर्बाध नहीं मिल पा रही थी।
पूर्व मुख्यमंत्री के पैतृक आवास के ठीक सामने उनकी समाधि स्थल है। परिवार के सदस्य शहरों में रहते हैं इसलिए आवास परिसर में सन्नाटा है। गांव में हर तरफ फैली हरियाली के बीच सोने जैसा चमक रहा धान की बाली खुशहाली का प्रतीक सरीखा है।
इस बीच खेत में काम कर रहे जीवछ ऋषिदेव कहते हैं कि विकास तो खूब हुआ है। सड़कें बनी है, बिजली और पानी भी है। किसान सम्मान योजना का भी लाभ मिल रहा है। सीता देवी बताती हैं कि महिलाओं के हित में सरकार ने बहुत काम किया है। गांव में सबकुछ है।
हालांकि इससे हटकर युवाओं की अपनी राय है। बीप मंडल के समाधिस्थल से थोड़ी दूरी पर युवाओं की टोली जमी थी। सरकारी व प्राइवेट जॉब करने वाले नौकरीपेशा युवा पर्व-त्योहारों में घर लौटे हैं।
इनके बीच चल रही चुनावी गपशप के बीच आशीष कुमार बताते हैं कि यह बीपी मंडल का गांव है। हमलोगों को उम्मीद थी कि उनके पौत्र निखिल मंडल को टिकट मिलेगा। लेकिन निराशा हाथ लगी। उन्हें टिकट मिलता तो खुशियां अधिक होती। हमलोग प्रदेश व देश की राजनीति को देखते हैं।
रूपक कुमार बताते हैं कि अब हम युवाओं का पैमाना अलग है। हमें हर क्षेत्र में विकसित बिहार चाहिए। हमारे पुरखों ने तो देश की राजनीति बदल दी। अब हम युवाओं की भी जिम्मेदारी है कि हम भविष्य निर्माता बनें।
चंदन कुमार वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था पर सवाल करते हुए कहते हैं कि एक ही उम्मीदार को बार-बार परखा जाना सही नहीं है। हर किसी को मौका मिलना चाहिए। राजनीतिक दलों के शीर्ष नेतृत्व को भी इस पर सोचने की आवश्यकता है।
प्रशांत कुमार और ललन कुमार कहते हैं कि युवाओं की सोच आगे बढ़ने की है। हम पीछे मुड़कर नहीं देख सकते हैं। विकास ही सबका मुद्दा है। चाहे बात शिक्षा की हो, स्वास्थ्य की हो, रोजगार की हो या फिर इंफ्रास्ट्रक्चर की। हमें स्थानीय मुद्दों के साथ-साथ अपने भविष्य की भी चिंता करनी है।

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