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    बरगद के वृक्ष को कहा जाता है ऑक्सीजन का प्राकृतिक कारखाना

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 07 Jun 2021 10:24 PM (IST)

    मधेपुरा। वट (बरगद) एक ऐसा वृक्ष है जिसे ऑक्सीजन का प्राकृतिक कारखाना कहा जाता है। वहीं अन्य पेड़ों की तुलना में इसमें कई गुना अधिक ऑक्सीजन निकलता है। यह लंबी आयु का वृक्ष है। इसमें क्राउन एरिया (फैलाव क्षेत्र) अधिक होने के चलते इनके आसपास की हवा में नमी बनी रहती है। गर्म के दिनों में बरगद छाया के साथ ठंडक प्रदान करता है।

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    बरगद के वृक्ष को कहा जाता है ऑक्सीजन का प्राकृतिक कारखाना

    मधेपुरा। वट (बरगद) एक ऐसा वृक्ष है जिसे ऑक्सीजन का प्राकृतिक कारखाना कहा जाता है। वहीं, अन्य पेड़ों की तुलना में इसमें कई गुना अधिक ऑक्सीजन निकलता है। यह लंबी आयु का वृक्ष है। इसमें क्राउन एरिया (फैलाव क्षेत्र) अधिक होने के चलते इनके आसपास की हवा में नमी बनी रहती है। गर्म के दिनों में बरगद छाया के साथ ठंडक प्रदान करता है। वट के वृक्ष दिन ही नहीं बल्कि रात में भी ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। वट वृक्ष में फैलाव अधिक होने के चलते ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलती है। इसके अलावा वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टिकोण से वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बरगद पेड़ अन्य पेड़-पौधों की अपेक्षा चार-पांच गुना अधिक ऑक्सीजन देता है। शुद्ध हवा और प्राकृतिक ऑक्सीजन से शरीर निरोगी रहता है, जिस जगह बरगद पेड़ होता है, उसके आसपास के 200 मीटर का क्षेत्र ठंडा रहता है।

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    कोरोना काल में ऑक्सीजन के महत्व को हर कोई समझ रहा है। 10 जून को महिलाएं वट सावित्री का व्रत रखेंगी। इस दिन अपने पति के मंगल स्वास्थ्य की कामना के साथ-साथ एक पौधा भी लगाएंगी। घर-परिवार की सुख-समृद्धि के साथ कोरोना काल में समाज, प्रदेश और देश के स्वास्थ्य की मंगल कामना भी करेंगी।

    बीएन मंडल विश्वविद्यालय में वनस्पति शास्त्र की अतिथि सहायक शिक्षिका डॉ. राखी भारती का कहना है कि बरगद पेड़ चूंकि काफी विशाल होता है, इसलिए यह दूर-दूर तक के इलाके में शुद्ध हवा विसर्जित करता है। इससे शुद्ध ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है। यह 20 घंटे से अधिक ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है। चूंकि इसकी जड़ें धरती में काफी दूर तक फैलती है। इसलिए इसे ऐसी जगह पर रोपित किया जाना चाहिए जहां कम से कम 100 मीटर तक खाली जगह हो। ताकि आसपास के मकान, भवन प्रभावित न हो। खासकर तालाब, स्कूल के मैदान, मंदिर, मठ के आसपास बरगद पेड़ लगाना चाहिए। वहीं पंडित दुर्गानंद झा कहते हैं कि वट वृक्ष अमरत्व बोध का प्रतीक है। सनातन संस्कृति में बरगद पेड़ की पूजा की जाती है, ऐसी कथा है कि सावित्री के पति की मृत्यु हो गई थी। तब उसने बरगद पेड़ के नीचे शव रखकर वृक्ष की पूजा करके अपने पति सत्यवान के प्राण को यमराज से वापस लौटा लाने में सफल रही थी। इस मान्यता के चलते वट वृक्ष को पूजा जाता है। ग्रंथों में यह भी लिखा है कि बरगद पेड़ की छाल में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास है। कोट कई साल से वट सावित्री की पूजा कर रही हैं। इस साल तालाब के किनारे वट का पौधा लगाकर देखभाल करेंगी। धार्मिक महत्व के साथ बरगद का औषधीय महत्व भी है। इसके पत्ते, छाल, तना, जड़ व तने से निकलने वाला दूध से कई औषधियां बनती है। दस जून को वट सावित्री अमावस्या पर बरगद का पौधारोपण करने का संकल्प लेते हैं। बरगद का पौधा लगने से आक्सीजन की कमी दूर होगी। कोरोना काल में यह वृक्ष बेहद मददगार साबित हुआ है। -डॉ. वीणा कुमारी,

    एसोसिएट प्रोफेसर व अध्यक्ष, हिदी विभाग, टीपी कॉलेज, मधेपुरा कई साल से वट सावित्री का व्रत रखकर बरगद वृक्ष का पूजन करती आ रही हैं। इस वृक्ष का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही यह आक्सीजन के रूप में हमें प्राणवायु देते हैं। दस जून को वट सावित्री पूजा के बाद क्षेत्र में बरगद का पौधा लगाया जाएगा। इसके लिए गांव में खाली पड़ी जमीन पर ग्रामीणों के सहयोग से पौधा लगाया जाएगा। वट सावित्री वृक्ष के साथ एक पौध लगाया जाएगा। इसका वे संकल्प लेती हैं। -संजन सिंह, गृहिणी इस वर्ष वटवृक्ष लगाने की योजना है। उन्होंने संकल्प लिया है कि ज्यादा से ज्यादा वटवृक्ष लगाएंगे। ताकि लोगों को छाया और ऑक्सीजन मिलती रहे। हमें अपने आसपास शुद्ध वायु के लिए बरगद जैसे पेड़ लगाने चाहिए। यह वृक्ष प्राणवायु देने के साथ ही धार्मिक महत्व का है। वट सावित्री के दिन बरगद का पौधा रोपित करूंगी। साथ ही दूसरी महिलाएं भी वट सावित्री के दिन बरगद का एक-एक पौधा रोपित करें। -माधवी सिंह, सिंहेश्वर

    सदा सुहागन रहने रहने की कामनाओं को लेकर सदियों से पति की लंबी उम्र की कामना कर हर सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। यह मान्यता है नहीं सत्य भी है कि जब एक पतिव्रता नारी सावित्री के पति सत्यवान मृत हो गए थे तो सावित्री ने वट वृक्ष के निकट ही ईश्वर से कामना की तो उनके पति सत्यवान जीवित हो उठे थे। तभी से हर सुहागिन महिलाएं यह पर्व करती आ रही है। इस साल वटवृक्ष पूजा के दिन एक पौधा लगाऊंगी। डॉ. सुनीता कुमारी, अतिथि सहायक प्राध्यापक, बीएनएमयू, मधेपुरा