अगस्त क्रांति के नायक सिंहेश्वर झा स्वतंत्र पर बन रही डाक्युमेंट्री, आजादी के आंदोलन में झेली थी प्रताड़ना
मधेपुरा के सिंहेश्वर झा स्वतंत्र पर डॉक्यूमेंट्री बनेगी जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने बिहपुर में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और सहरसा में झंडा फहराया। 1934 में तालाब और कुआं बनवाकर लोगों की मदद की। अंग्रेजों ने उन्हें बहरा कर दिया था। पंडित नेहरू ने उन्हें स्वतंत्र की उपाधि दी।
संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा)। पुरैनी की सपरदह पंचायत के कड़ामा में 15 अगस्त 1915 को जन्मे सिंहेश्वर झा स्वतंत्र किशोरावस्था में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान इनके नेतृत्व में भागलपुर जिले के बिहपुर में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई थी।
शराब के ठेकों पर तोडफोड़ करते हुए बिहपुर स्थित स्वराज आश्रम में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। 1934 में बिहार में हुए भूकंप के बाद सिंचाई व पेयजल की समस्या को दूर करने के लिए उन्होंने खुद की जमीन पर बड़ा-सा तालाब व कुआं का निर्माण कराया।
सिंहेश्वर झा के नेतृत्व में 29 अगस्त 1942 को कोसी क्षेत्र के सहरसा जिला मुख्यालय स्थित पुरानी कचहरी में झंडा फहराया गया। अंग्रेज सिपाहियों ने साइकल के पहिये में भरने वाले पंप से इनके दोनों कानों में हवा भरकर इनको बधिर बना दिया था।
दो वर्ष पूर्व दिल्ली में आयोजित अमृत महोत्सव स्थापना दिवस के दौरान सिंहेश्वर झा स्वतंत्र की जीवनी पर डाक्यूमेंट्री बनाने का निर्णय लिया गया था। अब सेंटर फार कल्चरल रिसोर्सेज एंड ट्रेनिंग (सीसीआरटी) की टीम ने डाक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण शुरू कर दिया है।
डाक्युमेंट्री बनाए जाने की जानकारी स्वतंत्रता सेनानी सिंहेश्वर झा स्वतंत्र के दत्तक पुत्र व भतीजा सत्यनारायण झा की पत्नी चंद्रा कुमारी ने दी। उन्होंने बताया कि सीसीआरटी दिल्ली ने केंद्रीय विद्यालय रांची में पदस्थापित अजीत कुमार ठाकुर को डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाने की जिम्मेदारी दी है।
स्वतंत्रता संग्राम में उनके समर्पण और समाजसेवा के कार्याें को लेकर डाक्युमेंट्री बनाई जा रही है। खासकर गांव में अपनी जमीन में तालाब का निर्माण व विद्यालय की स्थापना जैसे कार्य शामिल है।
बताते चलें कि कोसी के महान सपूत सिंहेश्वर झा स्वतंत्र का जन्म सपरदह पंचायत के कड़ामा में निरसू झा के घर 15 अगस्त 1915 को हुआ था l तीन भाइयों में सबसे छोटे सिंहेश्वर झा किशोरावस्था में ही मातृभूमि की रक्षा के लिए समर में कूद पड़े।
बताया जाता है कि बिहपुर स्थित स्वराज आश्रम में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद बौखलाए अंग्रेज डॉ.राजेंद्र प्रसाद की सभा में आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाने लगे। अपनी जान पर खेलकर सिंहेश्वर झा व अन्य क्रांतिकारियों ने राजेन्द्र प्रसाद की जान बचाई थी।
इस दौरान राजेंद्र प्रसाद के साथ वे कई दिनों तक भागलपुर सेंट्रल जेल में बंद रहे। भागलपुर जिले के स्वतंत्रता सेनानी उपेंद्र नाथ मुखर्जी उर्फ पटल बाबू ,बाबू दीप नारायण सिंह, वासुकीनाथ राय, दीनानाथ सहाय, नित्यानंद झा, बालेश्वर भगत, गणेश झा, महावीर झा, रामेश्वर झा, सहदेव मिश्र, परमेश्वर झा व अन्य कई क्रन्तिकारी इनके साथी रहे थे।
उदाकिशुनगंज पुलिस चौकी जलाकर लूटे अंग्रेजों के हथियार
1942 ईस्वी में ही भारत छोड़ो आंदोलन के समय इनके नेतृत्व में ही क्रांतिकारियों ने उदाकिशुनगंज के पुलिस चौकी में झंडा फहराने के दौरान सारे हथियारों को लूट कर चौकी में आग लगाकर अंग्रेजी हुकूमत को बेबस कर दिया था।
इसी दौरान भागलपुर के बिहपुर में अंग्रेज सिपाहियों ने उन्हें पकड़कर साइकिल के पहिये में भरने वाले पंप से इनके दोनों कानों में हवा भरकर इनको बधिर बना दिया। साथ ही उन्हें मृत समझकर जलकुम्भी से भरे तालाब में फेंक दिया था। हालांकि वे जीवित बच गए लेकिन इस घटना में उनकी श्रवण शक्ति चली गई। वे कृत्रिम उपकरण के सहारे सुना करते थे।
पंडित नेहरू ने दी स्वतंत्र की उपाधि
आजादी के पश्चात सन 1948 ईस्वी में पूर्णिया जिले के सुखसेना गांव में काशी ठाकुर के पुत्री शकुंतला देवी के साथ उनकी शादी हुई। लेकिन उन्हें कोई संतान नहीं हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने भतीजे सत्यनारायण झा उर्फ कैशियर साहब को अपना दत्तक पुत्र बना लिया, जो आजीवन उनकी सेवा-सुश्रुषा करते रहे।
सन 1952 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भागलपुर दौरे के दौरान उन्हें सम्मानित करते हुए स्वतंत्र की उपाधि प्रदान की। बाद में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सरकारी स्तर से भागलपुर जिले के जिला पदाधिकारी द्वारा इन्हें ताम्र पत्र से सम्मानित किया गया।
दुर्भाग्यवश उनके घर से ताम्र पत्र की चोरी हो गई। 1976 में मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा से प्रभावित होकर उन्होंने अपने गांव कड़ामा में सिंहेश्वर प्रिया शकुंतला संस्कृत उच्च विद्यालय की स्थापना की। 25 जून 1998 को उनका निधन हो गया। लेकिन सिंहेश्वर झा स्वतंत्र की कीर्ति आज भी जन-जन में विद्यमान है।
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