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    Lakhisarai News: 15 साल बाद भी मुसहरी स्कूल को नहीं मिला अपना भवन, राजनीतिक खींचतान के कई बार लौट गए हैं पैसे

    लखीसराय के हलसी प्रखंड के मतासी गाँव में प्राथमिक विद्यालय पुरबारी मुसहरी 15 वर्षों से भवन के अभाव में चल रहा है। महादलित बच्चों को शिक्षा से जोड़ने के उद्देश्य से स्थापित इस विद्यालय को 2014-15 में भवन निर्माण के लिए राशि मिली जो राजनीतिक खींचतान के कारण वापस हो गई। 54 नामांकित बच्चों और पांच शिक्षकों के साथ विद्यालय सामुदायिक भवन में संचालित है।

    By Awadh Kishor Edited By: Nishant Bharti Updated: Wed, 27 Aug 2025 04:12 PM (IST)
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    प्राथमिक विद्यालय पुरबारी मुसहरी को 15 साल बाद भी भवन नसीब नहीं

    संवाद सूत्र, जागरण, हलसी (लखीसराय)। सरकार भले ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। हलसी प्रखंड के मतासी गांव स्थित प्राथमिक विद्यालय पुरबारी मुसहरी की स्थापना हुए 15 साल बीत चुके हैं, मगर आज तक विद्यालय को अपना भवन नसीब नहीं हुआ।

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    मजबूरी में विद्यालय का संचालन गांव के सामुदायिक भवन में किया जा रहा है, जहां एक कमरे और एक बरामदे में ही प्रथम से पंचम वर्ग तक की पढ़ाई के साथ-साथ कार्यालय का काम भी चलता है। वर्ष 2009-10 में महादलित परिवार के बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के उद्देश्य से इस विद्यालय की स्थापना की गई थी।

    शुरुआत में तीन शिक्षकों की नियुक्ति हुई और पठन-पाठन शुरू हुआ। इसके बाद वर्ष 2014-15 में विद्यालय भवन निर्माण के लिए सर्व शिक्षा अभियान के तहत राशि भी निर्गत की गई, लेकिन गांव की राजनीतिक खींचतान और आपसी रंजिश के कारण वह राशि वापस लौट गई।

    सबसे बड़ी विडंबना यह है कि भवन निर्माण के लिए खाता संख्या 192, खेसरा संख्या 765 में 10 डिसमिल जमीन भी चिह्नित कर दी गई, लेकिन अब तक भवन निर्माण की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई। वर्तमान में विद्यालय में 54 बच्चे नामांकित हैं और पांच शिक्षक पदस्थापित हैं। बावजूद इसके बच्चे और शिक्षक दोनों ही सामुदायिक भवन में पढ़ाई करने को विवश हैं।

    हालात यह है कि जिस सामुदायिक भवन में कक्षाएं चल रही हैं, उसी के पास सर्व शिक्षा अभियान की राशि से शौचालय का निर्माण तो हो गया, लेकिन विद्यालय का भवन आज भी अधर में लटका हुआ है।

    विद्यालय के पूर्व प्रभारी शंभुनाथ शुक्ला ने बताया कि उन्होंने कई बार पदाधिकारियों और पंचायत प्रतिनिधियों से भवन निर्माण की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने पहल नहीं की। नतीजतन राशि विभाग को लौटानी पड़ी और मासूम बच्चों का भविष्य आज भी संकट में है। यह स्थिति सरकार और शिक्षा विभाग के दावों की पोल खोलती है।

    राजनीतिक रस्साकशी और अधिकारियों की उदासीनता की कीमत महादलित परिवार के बच्चे चुका रहे हैं। अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक इन बच्चों का भविष्य सामुदायिक भवन की चारदीवारी में कैद रहेगा। हाल ही में यहां नए प्रधान शिक्षक ने योगदान किया है। वे बुधवार को अवकाश पर थे। देखना होगा भवन निर्माण को लेकर उनकी प्राथमिकता क्या होगाी।