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जीवनदायिनी किऊल नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

लखीसराय। नदी है तो पेड़ हैं और पेड़ हैं तो नदी। दोनों हैं तो मानव जीवन। लेकिन आज मानव ह

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 07:11 PM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 07:11 PM (IST)
जीवनदायिनी किऊल नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा
जीवनदायिनी किऊल नदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

लखीसराय। नदी है तो पेड़ हैं और पेड़ हैं तो नदी। दोनों हैं तो मानव जीवन। लेकिन, आज मानव ही नहीं पशु-पक्षियों का जीवन बचाने वाली किऊल नदी का वजूद मिटता जा रहा है। किऊल नदी के आंचल से बालू गायब हो रहा है। पेड़-पौधे समाप्त होते जा रहे हैं। कभी चट्टानों को तोड़कर गर्मी में भी अविरल बहने वाली नदी अभी सूखी पड़ी हैं। पानी के लिए नदी तड़प रही हैं।

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यह मानव जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं है। नदी में पानी नहीं रहने के कारण कृषि भी प्रभावित हो रही है। जमुई जिले के बाद लखीसराय जिले में बहने वाली किऊल नदी वर्षा के अभाव में अपना अस्तित्व खो चुकी है। नदी में पानी के बदले जंगली घास, मिट्टी और दरार दिखती है। नदी के मिटने का सीधा असर पशु और प्रकृति पर पड़ रहा है। नदी किनारे बसे गांवों का जलस्तर लगातार नीचे गिर रहा है। नदी में पानी गायब होने के कारण जंगल में रहने वाले पशु भटक कर गांव में पहुंच जा रहे हैं। दरअसल, बारिश नहीं होने के कारण नदी में बाढ़ का पानी आना लगभग बंद हो गया है। इस कारण लाल बालू भी गायब हो रहा है।

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लाल बालू के प्रसिद्ध है किऊल नदी

लखीसराय-जमुई जिले में बहने वाली किऊल नदी लाल बालू के लिए बिहार में प्रसिद्ध है। पानी से अधिक बालू को लेकर इसकी महत्ता है। लेकिन नदी में पहाड़ी पानी नहीं आने से बालू से अधिक मिट्टी और जंगली घास का कब्जा हो गया है। पर्याप्त बारिश के अभाव में किऊल नदी अपना अस्तित्व खोती जा रही है। एक तरह से यह नदी संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रही है।

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कहते हैं क्षेत्र के बुजुर्ग

किऊल नदी में पानी की अविरल धारा बहती थी। लेकिन वर्तमान में यह नदी बरसाती बनकर रह गई है। गर्मी में चापाकल सूखने के कारण ग्रामीण इस नदी का पानी पीते थे। अतिक्रमण के कारण नदी का अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है। चानन के लोगों का जीवन इस नदी के बिना संकट में है।

बिच्छू यादव, भलूई

किऊल नदी को आदि गंगे की संज्ञा दी गई है। श्रद्धालु नदी में पवित्र स्नान करते हैं। इस नदी की व्याख्या इतिहास में है। पूर्व में सीओ उमेश प्रसाद के नेतृत्व में किऊल नदी को अतिक्रमणमुक्त करने की मुहिम चलाई गई थी। लेकिन समय के साथ फाइल बंद होकर रह गई।

सत्यनारायण सिंह, रामपुर किऊल नदी में 25-30 साल पूर्व बरसात के अलावा अन्य दिनों में भी अविरल धारा बहती थी। लेकिन अब जगह-जगह बांध, पुल, बराज आदि का निर्माण होने से पानी की धारा को अवरुद्ध कर दिया गया है। नदी में गड्ढे में पानी जमा रहता है। परंतु अब इसका अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर है।

गनौरी यादव, बसुआचक किऊल नदी का अस्तित्व को बचाने की जरूरत है। इसके लिए सरकार व अधिकारियों को जागरूक होना होगा। यह नदी सैकड़ों गांवों के लिए जीवनदायिनी है। नदी के मिटते अस्तित्व का सीधा असर गांवों पर पड़ रहा है। दिन-प्रतिदिन जलस्तर गिरता जा रहा है।

परीक्ष बिद, जानकीडीह

क्या कहते हैं अधिकारी

नदी जीवनदायिनी है। इसे बचाना सभी का दायित्व है। कुछ मानवीय भूल के कारण भी परेशानी बढ़ी है। नदियों से अतिक्रमण हटवाया जा रहा है। अवैध खनन को रोका जा रहा है। अवैध खनन करते हुए पकड़े जाने पर कार्रवाई की जा रही है। जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत जल एवं पर्यावरण संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। इसमें सभी लोगों से सहयोग की आवश्यकता है।

मुरली प्रसाद सिंह, एसडीओ, लखीसराय

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नदी का अस्तित्व बचाने के लिए कार्य किया जा रहा है। नदियों की उड़ाही कराई जा रही है। जल-जीवन-हरियाली के तहत जल संरक्षण का कार्य किया जा रहा है। इसको लेकर सभी अधिकारी सजग हैं। नदियों के सूखने का असर गांवों पर पड़ रहा है। जलस्तर गिरता जा रहा है। इसे बचाने का कार्य किया जा रहा है। किऊल नदी को भी बचाने की दिशा में काम होना चाहिए।

हरेराम, कार्यपालक अभियंता, पीएचईडी, लखीसराय


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