लाली पहाड़ी पर है नारी सशक्तीकरण का इतिहास, बिखरीं पड़ीं बुद्ध की स्मृतियां
-कभी महिला बौद्ध भिक्षुओं का साधना केंद्र था लखीसराय तीन बार महात्मा बुद्ध का भी हुआ है आगमन
-कभी महिला बौद्ध भिक्षुओं का साधना केंद्र था लखीसराय, तीन बार महात्मा बुद्ध का भी हुआ है आगमन
-बौद्ध सर्किट से जोड़कर विदेशी पर्यटकों को खींचने की चल रही है कवायद, बनेगा विश्वस्तरीय संग्रहालय मृत्युंजय मिश्रा, लखीसराय
लखीसराय में एक प्राचीन बौद्धकालीन शहर 'क्रिमिला' दफन है। यहां बहने वाली नदी 'किऊल' का नाम 'क्रिमिला' का ही अपभ्रंश माना जाता है। माना जाता है कि यहां तीन बार महात्मा बुद्ध आए थे और लंबे समय तक रहे थे। यहां की खास बात यह है कि यह विश्व का पहला ऐसा बौद्धकालीन शहर है, जहां महिला बौद्ध भिक्षुओं का साधना केंद्र के प्रमाण मिले हैं। इससे यह पता चलता है कि इस बौद्धकालीन शहर में महिलाओं को बराबरी का स्थान व सम्मान मिला हुआ था।
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कृमिला का था व्यापक क्षेत्र लखीसराय के पश्चिमी छोड़ पर अवस्थित चौकी एवं बालगुदर गांव शुरू से ही प्राचीन साहित्य का गवाह रहा है। कृमिला नगर प्राचीन काल में धार्मिक गतिविधियों के साथ-साथ तत्कालीन राजनीतिक एवं प्रशासनिक सक्रियता का भी केंद्र था। प्राप्त अभिलेखों के अनुसार इस नगर का क्षेत्रफल 72 वर्ग किलोमीटर तक फैला था। अंग्रेज शासक वाडेल ने अपने सर्वेक्षण में इसकी चर्चा की है। उरैन, घोषी कुंडी, बिछवे पहाड़ से प्राप्त अभिलेख से पुष्ट होता है कि गौतम बुद्ध यहां 13 वां, 18 वां एवं 19 वां वर्षावास व्यतीत किया था। भगवान बुद्ध के महत्वपूर्ण शिष्य कृमिल जो कि आनंद के सहयोगी एवं इसी जगह के एक श्रेष्ठी के पुत्र थे। उन्हीं के नाम पर शहर का नाम पड़ा था। कनिघम ने अपनी रिपोर्ट में यहां विस्तृत बाजार का उल्लेख किया है।
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विश्व का अद्भुत महिला साधना केंद्र लखीसराय के जयनगर लाली पहाड़ी पर जब पुरातात्विक अवशेषों की खोदाई का कार्य विश्व भारती शांति निकेतन बंगाल और बिहार विरासत विकास समिति के द्वारा संयुक्त रुप से शुरू हुई तो चौंकाने वाली बात सामने आई। खोदाई के दौरान यह साक्ष्य मिला कि विश्व का अद्भुत महिला साधना केंद्र यहां था। लाली पहाड़ी की खोदाई में चारों तरफ 12 सुरक्षा टॉवर, सेल, इंडोर दरवाजा, इंटर कनेक्टेडेट सेल, कलर प्लेटफॉर्म, साधना केंद्र, महिलाओं के व्यवहार करने की सामग्री आदि मिले हैं। इस पहाड़ी के सामने ही किऊल नदी के उस पार घोषी कुंडी एवं बिछवे पहाड़ी है। वहां ओपन कक्ष मिले हैं। बौद्ध भिक्षुणी लाली पहाड़ी पर से ही साधना करती थी।
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बिखरीं पड़ीं हैं बुद्ध की स्मृतियां लखीसराय जिले में यत्र-तत्र बुद्ध की स्मृतियां बिखरी पड़ी हैं। बालगुदर, नोनगढ़, सतसंडा, उरैन, अशोक धाम सहित कई इलाके में अब भी काले पत्थर के अवशेष देखे जा सकते हैं। कुछ इलाके में पौराणिक मिट्टी के बर्तन भी बिखरे पड़े हैं। लाली पहाड़ी की खोदाई शुरू होने एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन के बाद यहां विश्वस्तरीय संग्रहालय की स्थापना का भी निर्णय राज्य सरकार ने लिया है। ताकि बौद्ध सर्किट से इसे जोड़कर विदेशी पर्यटकों को लाया जा सके।
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कोट : कई अभिलेखों की चर्चा एवं खनन में मिल रहे अवशेषों से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि यह क्षेत्र बुद्ध सर्किट से जुड़ा हुआ रहा था। यह स्थल 8-9 वीं सदी में प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी था। लाली पहाड़ी के खनन में अद्भुत महिला साधना केंद्र मिले हैं। एक अद्भुत काले पत्थर की प्रतिमा भी मिली। इस अद्भुत पत्थर में भगवान बुद्ध के स्वरूप अवलोकितेश्वर, मंजूश्री एवं मैत्रेय मिले हैं। अभिलेखों में इसकी चर्चा है लेकिन यह विश्व में कहीं देखने को नहीं मिला है। लखीसराय में मिलने से यह शहर विश्व मानचित्र पर आ गया है।
प्रो. अनिल कुमार, प्राध्यापक, विश्वभारती विवि, शांतिनिकेतन
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