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    औषधीय गुणों से भरपूर है नीम

    By Edited By:
    Updated: Sun, 02 Sep 2012 09:53 PM (IST)

    फोटो 02 केएसएन 49

    कैप्शन= नीम का पेड़

    =नीम के पेड़ों की हो रही कमी से पर्यावरण प्रेमी चिंतित

    बीरबल महतो, निप्र. गलगलिया, किशनगंज : नीम का पेड़ औषधीय गुणों से भरपूर होता है। 537 प्रकार के कीड़ों की नियंत्रित करने की क्षमता रखने वाला नीम का पेड़ एक जीवनदायी वृक्ष है। अगर चिलचिलाती धूप में नीम के पेड़ के नीचे बैठ जाएं तो यह 10 डिग्री तापमान कम करने की क्षमता रखता है। परंतु दिन-ब-दिन नीम के पेड़ों की संख्या में कमी आती जा रही है। इस बाबत एमएच आजाद नेशनल कालेज ठाकुरगंज के वनस्पति विज्ञान के व्याख्याता प्रो. रियासत अली ने बताया कि नीम का पेड़ एक गुणकारी और लाभकारी वृक्ष होता है। जो देश के हर शहरों और गांवों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। पर धीरे-धीरे इनकी संख्या में कमी आती जा रही है। नीम के पेड़ के पांचों अंग जड़, छाल, टहनी फूल और पत्ती सभी उपयोगी है। नीम कड़ुआ होने और अपने गुणों के कारण औषधीय जगत में इसका स्थान सबसे ऊपर है। प्रो. अली ने बताया कि नीम का बनिस्पतिक नाम मीलिया आजादी राचता अथवा आजादी राचता इंडिका है। भारत के आलावा यह गुणकारी वृक्ष नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, इंडोनेशिश और श्रीलंका आदि देशों में पाया जाता है। विगत 150 वर्षो में यह वृक्ष भारतीय उपमहाद्वीप की भागौलिक सीमा को लांघ कर आफ्रीका, आस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण और मध्य अमेरिका आदि उष्ण कटिबंधीय प्रदेशों में भी पहुंच चुका है। नीम का पेड़ 22 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड के बच का वार्षिक तापमान सहन कर सकता है। यह गहरी और रेतीली मिटटी जहां पानी की निकासी है वहां सबसे अधिक यह पेड़ होते है। नीम की विशेषता उपचार व उपयोग के संबंध में समाधान कायाकल्प केंद्र पिपरीथान के प्राकृतिक चिकित्सक डा. एम. सरजू बताते हैं। नीम का सबसे अधिक उपयोग दतवन के रुप में होता है। कीटनाशक गुण होने के कारण इसका दतवन करने से दांत व मुंह में होने वाले रोगों को नष्ट करने में सबसे अधिक सक्षम है। इसके बाद नीम का उपयोग फर्नीचर, जलावन, मधुमक्खी पालन, रंग रोगन, पशु चारा, खली के रुप में प्रदूषण नियंत्रण में, पर्यावरण, फसल व फसल संरक्षण व औद्योगिक प्रयोजन आदि में बहुपयोगी कार्यो में उपयोग में लाया जाता है। डा. सरजू बताते हैं नीम के छाल का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों और घावों के निवारण में सहायक होता है। नीम की पत्तियां चबाकर खाने से रक्तशोधन होता है। घाव, फोड़े, फुं सी, घमौरी, नासूर, खुजली, दिनाय, जले-कटे, कुष्ठ रोग, धवल रोग, बवासीर, आंख, कान, नाक, पेट, कृमि, मलेरिया, प्लेग, हैजा, पीलिया, डायबटीज (मधुमेह), कफ, पित्त, दमा, रक्त, हृदय विकार, पथरी, नशा, विष उतारने, लू से बचाव अतिसार, पेचिस और केलोस्ट्राल नियंत्रण आदि कई प्रकार के रोगों से निजात दिलाने में सहायक होता है। वहीं नीम के पेड़ को मनरेगा योजना के तहत वृक्षारोपण कार्य में प्रमुखता स लगाने के संबंध में कार्यक्रम पदाधिकारी मनरेगा विनोद कुमार सिंह ने बताया कि मनरेगा के तहत जीवन रक्षक नीम का पेड़ लगाने के लिए सभी मनरेगा कर्मियों को निर्देश जारी किया गया है। वृक्षारोपड़ कार्य में नीम का पेड़ लगाने को प्रमुखता दी जाएगी।

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