गोबर खाद व कंपोस्ट बढ़ाती है मिट्टी की उर्वरा शक्ति
किशनगंज। जैविक खाद में गोबर खाद और कंपोस्ट खाद का विशेष महत्व है। इसका संतुलित उपयोग कर किसान अपने ख
किशनगंज। जैविक खाद में गोबर खाद और कंपोस्ट खाद का विशेष महत्व है। इसका संतुलित उपयोग कर किसान अपने खेतों की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को स्थायी रुप से बढ़ा सकता है। यह बातें मंगलवार को डीएओ अनिल कुमार यादव ने कही। उन्होंने कहा कि पशुओं के मल, मूत्र और बिछावन के अपघटन के उपरांत प्राप्त खाद को गोबर खाद कहते हैं। इसमें सामान्य रुप से 0:5 फीसद नत्रजन, 0.2 फीसद फाँस्फोरस और 0.5 फीसद पोटाश पाया जाता है। इसके अलावा उसमें सूक्ष्मात्रिक तत्व अल्प मात्रा में विद्यमान रहते हैं। गोबर खाद बनाने के लिए पशुशाला के पास बीस मीटर लंबा, पांच मीटर चौड़ा और तीन मीटर गहरा गढ्ढा खोदा जाता है। इसके आधे हिस्से में डेढ़ फीट कर ऊंचाई तक गोबर ,मूत्र और बिछावन के डाला जाता है। इस डेढ़ फीट वाले लेयर को मिट्टी से ढ़क देना पड़ता है। अब गढ्ढे के शेष बचे हिस्से को गोबर,मूत्र और बिछावन के हिस्से को भरना चाहिए। जब तक यह हिस्सा भरता है। तब तक पहले वाले आधे हिस्से का गोबर खाद में बदल जाता है। जिसका खेती में प्रयोग किया जाता है। श्री यादव ने कहा कि पौधों के अवशेष, घसर का कूड़ा-कचरा, करकट, पशुओं के गोबर एवं मूत्र का सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा विशेष विच्चछेदन उपरांत प्राप्त खाद को कंपोस्ट कहते हैं। कंपोस्ट बनाने के लिए कमरे की गुणवत्ता के आधार पर इसमें सामान्यत: 0.4 से 2 फीसद नत्रजन, 0.4 से एक फीसद फॉस्फोरस,और 0:5 से तीन फीसद तक पोटाश पाया जाता है। कंपोस्ट में स्फुर की मात्रा बढ़ाने के लिए इसमें रॉक फास्फोरस और स्फुर विलायक जीवाणु का कल्चर मिलाया जाना चाहिए। इस तरह कंपोस्ट को इनरिया कंपोस्ट की संज्ञा की गई है।
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