Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    बिहार की इस विधानसभा सीट में होगी पासवान परिवार की असली परीक्षा, विरासत बनाम वजूद की लड़ाई

    Updated: Wed, 08 Oct 2025 10:27 AM (IST)

    खगड़िया जिले के अलौली सीट पर पासवान परिवार की राजनीतिक विरासत दांव पर है। रालोजपा सुप्रीमो पशुपति कुमार पारस अपने बेटे यशराज को मैदान में उतारना चाहते हैं लेकिन राजद विधायक रामवृक्ष सदा से उन्हें कड़ी टक्कर मिलेगी। यह सीट पासवान परिवार की पारंपरिक सीट रही है और चिराग पासवान भी यहां से उम्मीदवार उतार सकते हैं।

    Hero Image
    अलौली में होगी पासवान परिवार की परीक्षा। फाइल फोटो

    निर्भय, खगड़िया। खगड़िया जिले में प्रथम चरण में छह नवंबर को मतदान होना है। यहां अलौली (सुरक्षित) सीट पर दावेदारी को लेकर सियासी तापमान चरम पर है। यह सीट अब महज़ एक निर्वाचन क्षेत्र नहीं, बल्कि पासवान परिवार की राजनीतिक विरासत और सम्मान की कसौटी बन चुकी है।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के सुप्रीमो पशुपति कुमार पारस इस बार अपने पुत्र यशराज पासवान को अलौली से चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं। यशराज महीनों से क्षेत्र में डटे हैं, पंचायतों से लेकर नुक्कड़ सभाओं तक लोगों से संवाद कर रहे हैं।

    उनके लिए यह चुनाव न केवल राजनीतिक पदार्पण का अवसर है, बल्कि पिता की परंपरा और परिवार की प्रतिष्ठा को दोबारा स्थापित करने की चुनौती भी है, मगर यह राह आसान नहीं।

    फिलहाल इस सीट पर राजद के विधायक रामवृक्ष सदा का कब्जा है, जो मुसहर समाज से आते हैं। वे महागठबंधन में इस समाज के एकमात्र विधायक हैं, इसलिए राजद के लिए इस सीट को छोड़ना आसान नहीं है।

    ऐसे में अगर महागठबंधन से रालोजपा को यह सीट नहीं मिलती, तो यह पारस के सियासी प्रभाव पर गहरा असर डाल सकती है। अलौली का इतिहास पासवान परिवार के नाम से गहराई से जुड़ा है।

    पासवान परिवार की पारंपरिक सीट

    1969 में स्वर्गीय रामविलास पासवान ने यहीं से संयुक्त समाजवादी पार्टी के टिकट पर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। बाद में उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने 1977 से लेकर 2005 तक सात बार इस सीट पर जीत दर्ज की।

    इस बीच बस एक बार 1980 में उन्हें कांग्रेस के मिश्री सदा से हार का सामना करना पड़ा था। पर 2010 में समीकरण बदले। जदयू के रामचंद्र सदा ने पारस को हराया और यहीं से पासवान परिवार की अलौली पर पकड़ ढीली पड़ी।

    2015 में पारस ने वापसी की कोशिश की, पर राजद के चंदन कुमार से हार गए। 2020 में पारस मैदान में नहीं उतरे, क्योंकि तब वे हाजीपुर से सांसद बन चुके थे। उस चुनाव में राजद ने अलौली में अपनी पकड़ बरकरार रखी।

    अब 2025 में पासवान परिवार एक बार फिर अपनी कर्मभूमि पर लौटने की तैयारी में है। इधर, लोजपा (रामविलास) के प्रमुख चिराग पासवान भी इस सीट पर नजर गड़ाए हुए हैं।

    सूत्रों का कहना है कि वे अपने किसी करीबी रिश्तेदार को यहां से उम्मीदवार बना सकते हैं। 2020 में उनके प्रत्याशी रामचंद्र सदा तीसरे स्थान पर रहे थे, पर इस बार समीकरण कुछ और हैं।

    रालोजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्रवण अग्रवाल का कहना है कि अलौली से ही रामविलास पासवान जी ने राजनीति की शुरुआत की थी। पारस सात बार विधायक रहे हैं।

    यह हमारी परंपरागत सीट है। हमें पूरा भरोसा है कि अलौली से हमारी पार्टी ही लड़ेगी। हालांकि आखिरी फैसला तो महागठबंधन के कार्डिनेशन कमेटी में होना है।

    वहीं, लोजपा (रा) के खगड़िया जिलाध्यक्ष मनीष कुमार का कहना है कि अलौली और खगड़िया दोनों पर हमारा दावा है। सांसद राजेश वर्मा ने क्षेत्र के विकास को नई दिशा दी है।

    बहरहाल, अलौली की यह जंग केवल दो दलों की नहीं, बल्कि एक विरासत बनाम वजूद की लड़ाई है। पासवान परिवार के लिए यह चुनाव राजनीतिक भविष्य और पारिवारिक सम्मान दोनों की अग्निपरीक्षा साबित हो सकती है।

    यह भी पढ़ें- Bihar Election 2025: चुनाव में दांव पर उत्तर बिहार के 12 मंत्रियों की प्रतिष्ठा, टिकट मिलना लगभग तय