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    52 तरह की ईंटों से बना विश्व-प्रसिद्ध ‘52 कोठरी-53 द्वार’, अब खंडहर बनने की राह पर

    Updated: Thu, 11 Dec 2025 03:45 PM (IST)

    खगड़िया के भरतखंड में स्थित ऐतिहासिक धरोहर 52 कोठरी–53 द्वार संरक्षण के अभाव में खंडहर में तब्दील हो रहा है। राजा बाबू बैरम सिंह द्वारा निर्मित यह महल ...और पढ़ें

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    विश्व-प्रसिद्ध 52 कोठरी-53 द्वार

    संवाद सूत्र, परबत्ता (खगड़िया)। प्रखंड के भरतखंड स्थित ऐतिहासिक धरोहर 52 कोठरी–53 द्वार आज संरक्षण के अभाव में धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होती जा रही है। करीब ढाई सौ वर्ष पूर्व राजा बाबू बैरम सिंह द्वारा निर्मित यह विशाल महल कभी अपनी भव्यता, अनोखी बनावट और अनूठी संरचना के लिए दूर-दराज के राज्यों से आने वाले लोगों का आकर्षण केंद्र रहा है। 

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    करीब पांच बिघा, पांच कट्ठा, पांच धूर और पांच धुरकी क्षेत्र में फैला यह प्राचीन महल आज अपनी उपेक्षा पर आठ आठ आंसू बहाने को बिबस है। स्थानीय लोगों के अनुसार, मुंगेर का किला बनाने वाले मशहूर कारीगर बरकत खान उर्फ बकास्त मियां ने ही इस महल का निर्माण किया था। 

    52 प्रकार की ईंटों का उपयोग

    खास बात यह कि इसके निर्माण में सुरखी-चूना, कत्था, राख तथा 52 प्रकार की ईंटों का उपयोग किया गया था दरवाजों, खिड़कियों और दीवारों के अनुपात के अनुसार अलग-अलग आकार की ईंटें आज भी इसकी अनूठी इंजीनियरिंग का प्रमाण हैं। माचिस जैसी छोटी ईंट से लेकर दो फीट तक की बड़ी ईंटें यहां देखने को मिलती हैं

    महल की विशेषता

    महल के भीतर कुल 52 कोठरियां और 53 द्वार बनाए गए थे, इसी कारण इसे ‘52 कोठरी–53 द्वार’ के नाम से जाना जाता है क्षेत्र में लोग इसे ‘भरतखंड का पक्का’ भी कहते हैं। इसकी जटिल संरचना ऐसी थी कि कहा जाता है एक बार कोई गलती से अंदर प्रवेश कर जाय तो बाहर निकलना आसान नहीं था। 

    आज भी दीवारों पर की गई नक्काशी और चित्रकारी आगंतुकों आकर्षित करती है। महल के अंदर का तापमान पूर्वकाल में 10 से 22 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच स्थिर रहता था, जो इसकी उन्नत स्थापत्य कला को दर्शाता है। 

    मुख्यमंत्री ने दिया आश्वासन

    इतिहासकारों का मानना है कि यदि इस धरोहर को समय रहते संरक्षित नहीं किया गया, तो आने वाली पीढ़ियां इतिहास के इस महत्वपूर्ण अध्याय से अनजान रह जाएंगी। मुख्यमंत्री द्वारा हाल ही में दिए गए आश्वासनों से लोगों को उम्मीद जगी है कि शायद इस मुगलकालीन धरोहर को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके। 

    कभी इसकी तुलना जयपुर के हवामहल से की जाती थी लेकिन आज यह सरकारी की अनदेखी का शिकार होकर जर्जर अवस्था में खड़ा है लोगों ने सरकार से इसे पर्यटन स्थल का रूप देने का मांग किया है।