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    'वनराजा' ने बदली गांव की तस्वीर

    By JagranEdited By:
    Updated: Wed, 25 Jul 2018 08:11 PM (IST)

    खगड़िया। अलौली प्रखंड का एक गांव है बुढ़वा पररी। साल भर पूर्व यहां के अधिकांश लोग बिहार के आम गांव की

    'वनराजा' ने बदली गांव की तस्वीर

    खगड़िया। अलौली प्रखंड का एक गांव है बुढ़वा पररी। साल भर पूर्व यहां के अधिकांश लोग बिहार के आम गांव की तरह खेतीबारी पर निर्भर थे। उससे किसानों का किसी तरह से गुजर-बसर हो पा रहा था। परंतु, आज इस गांव के समृद्धि की चर्चा दूर-दूर तक है। आस-पड़ोस के गांवों के लोग यहां आते हैं और मुर्गा पालक किसानों से मिलकर समृद्धि के गुर सीखते हैं।

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    'वनराजा' मुर्गा पालन से आई समृद्धि

    मालूम हो कि बुढ़वा पररी की तस्वीर वनराजा मुर्गा ने बदल दी। कृषि विज्ञान केंद्र खगडिय़ा के सहयोग से यहां के किसानों ने वनराजा मुर्गा पालन के गुर सीखे और आज वनराजा की बदौलत 'राज' कर रहे हैं। जानकारी अनुसार सबसे पहले कृषि विज्ञान केंद्र खगड़िया की ओर से बिहार पशु चिकित्सा महाविद्यालय, पटना से वनराजा के एक हजार चूजे मंगाए गए। जो यहां के किसानों को निश्शुल्क दिए गए। इसके बाद बुढ़वा पररी के किसानों ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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    एक वनराजा मुर्गी साल में देती है डेढ़ सौ अंडे

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    मुर्गा पालक किसान रामदास साहू कहते हैं कि एक वनराजा मुर्गी साल में डेढ़ सौ अंडे देती है। एक अंडे(वजन 60 ग्राम) आम मौसम में दस रुपये और ठंड में 15 रुपये की दर से बिक जाते हैं। अगर एक किसान 200 वनराजा मुर्गी का पालन करते हैं, तो उनकी आमदनी साल में दो लाख रुपये के आसपास तक हो जाती है। वहीं किसान रंजन पासवान के अनुसार एक वनराजा मुर्गा पांच माह में तैयार हो जाता है। जिससे तीन से चार किलो मांस प्राप्त होता है। बाजार में यह मांस दो से ढाई सौ रुपये किलो तक बिकता है। मालूम हो कि सबसे पहले रंजन ने ही वनराजा का पालन शुरू किया था। बकौल रंजन- अब तो आसपास के किसान भी यहां आकर मुर्गा पालन के गुर सिख रहे हैं। सहसी, असुरारी आदि गांवों में भी वनराजा का पालन शुरू हो गया है।

    कोट

    ' वनराजा' मुर्गा पालन से कम लागत में अधिक मुनाफा प्राप्त होता है। 200 मुर्गा-मुर्गी पालन कर एक किसान साल में दो से ढाई लाख रुपये कमा सकते हैं। इसी तरह से किसानों की आय दूनी होगी।

    सतेंद्र कुमार, पशु वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, खगड़िया। === ===