सैलाब के साथ बढ़ जाती है नागराज की फुफकार
कटिहार। गंगा महानंदा और कोसी से घिरे कटिहार जिले में सैलाब के साथ नागराज की फुफ ...और पढ़ें

कटिहार। गंगा, महानंदा और कोसी से घिरे कटिहार जिले में सैलाब के साथ नागराज की फुफकार भी बढ़ जाती है। बाढ़ के पानी के साथ बिषधर भी पहुंच जाते हैं और लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। गत एक सप्ताह के दौरान ही यहां दस लोग सर्पदंश के शिकार हो चुके हैं। इसमें चार लोगों की मौत हो चुकी है। बता दें कि अभी बाढ़ ने दस्तक ही दी है और सर्पदंश का सिलसिला तेज हो गया है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के मुताबिक हर माह जिले में 45 लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं। बरसात के मौसम के तीन माह में ही सर्वाधिक घटनाएं होती है। औसतन तीस से चालीस फीसदी लोगों की इससे मौत भी हो जाती है।
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अस्पताल में उपलब्ध रहती है दवा, झाड़ फूंक के चक्कर में जाती है जान
सर्पदंश की घटना को लेकर स्वास्थ्य विभाग बाढ़ पूर्व तैयारी के तहत सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इसकी दवा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराती है। यद्यपि इसका समुचित लाभ लोग नहीं ले पाते हैं। अधिकांश पीएचसी में सर्पदंश की दवा एक्सपायर होती है और इसका उपयोग नही हो पाता है। स्वास्थ्य विभाग की बैठक में डीएम ने भी सर्पदंश की घटनाओं पर विशेष ध्यान रखने का निर्देश दिया है। दरअसल झाड़-फूंक के चक्कर में लोगों के फंसने के कारण भी यहां मौत हो जाती है। झाड़-फूंक के चक्कर में लोग सर्पदंश के शिकार मरीज को अस्पताल ले जाने में देरी कर देते हैं। बांध व सड़क पर शरण लेते हैं लोग, विषैले सर्पों का रहता है प्रकोप
जिले के तकरीबन आठ प्रखंड की बड़ी आबादी बाढ़ की चपेट में रहती है। इसमें काफी तादाद में परिवार बाढ़ आते ही बांध व सड़कों पर तंबू लगाकर रहते हैं। उनके घरों में बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाता है। इधर बरसात व बाढ़ के कारण विषैले सर्पों का प्रकोप बढ़ जाता है। मुख्य रूप से गेहूमन, कोबरा, करैत, पनिया दराज सहित कई अन्य विषैले सांप लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। तत्काल चिकित्सा से बच सकती है जान :
सर्पदंश की घटना में बाद तत्काल उपचार करने से लोगों को आसानी से बचाया जा सकता है। चिकित्सकों की माने तो हर सरकारी अस्पताल में सर्पदंश की दवा उपलब्ध है और तत्काल इलाज से लोगों को बचाया जा सकता है। जबकि देरी होने से जहर फैलने की स्थिति में लोगों की जान चली जाती है। ऐसे करे सर्पदंश से बचाव - बाढ़ और बरसात के समय जमीन में न सोएं - चूहों के बिल व पुराने बिल के आसपास न जाएं - रात के वक्त रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था के साथ ही बाहर निकलें - पुरानी लकड़ी, उपलों के ढ़ेर को सीधे हाथ से न छुएं - सर्पदंश की स्थिति में संभव हो तो सर्प की प्रजाति की पहचान करें - सर्पदंश के बाद झाड़-फूंक के चक्कर में न पड़ें - तत्काल अस्पताल पहुंचकर उपचार शुरू करवाएं - मरीज को सोने नहीं दे, उसे जगा कर रखें - अधिकांश मामलों में घबराहट के कारण मरीज की मौत हो जाती है, ऐसे में उसका मनोबल बढ़ाएं। - अविलंब नजदीकी चिकित्सक से सलाह लें।

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