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    'सोनाली' के सहारे चमक रहा मुर्गी पालन का रोजगार

    By JagranEdited By:
    Updated: Sun, 30 Aug 2020 09:08 PM (IST)

    कटिहार। हाल के वर्षों में मुर्गी पालन व्यवसायिक रूप से चुका है काफी संख्या में युवा भी मुर्गी ...और पढ़ें

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    'सोनाली' के सहारे चमक रहा मुर्गी पालन का रोजगार

    कटिहार। हाल के वर्षों में मुर्गी पालन व्यवसायिक रूप से चुका है, काफी संख्या में युवा भी मुर्गी पालन व्यवसाय से जुड़े हैं। लेकिन परंपरागत श्रोत के कारण नुकसान की संभावना अधिक होने के कारण कभी कभी भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है। लेकिन मुर्गीपालकों के लिए सोनाली प्रजाति वरदान बनने लगी है। मुर्गी की यह प्रजाति सामान्य प्रजाति से अलग है और यह देसी मुर्गी की तरह दिखने के साथ ही स्वाद में बेहतर होने के कारण इसका बाजार मूल्य भी बेहतर मिलता है। इसके साथ ही इस प्रजाति में बीमारी की संभावना काफी कम रहने के कारण नुकसान न के बराबर होता है। जबकि इसकी वृद्धि पॉल्ट्री की भांति होती है। देसी जैसी शक्ल व स्वाद के कारण इसकी डिमांड भी बाजार में अधिक रहने के कारण इसकी बिक्री अधिक मूल्य में होती है। सोनाली प्रजाति के सहारे मुर्गीपालन व्यवसाय को अलग पहचान देने वाले सदर प्रखंड के सरदाही निवासी विशुनदेव बताते हैं कि खुले बाजार में इसकी बिक्री तीन सौ से 350 रुपये प्रतिकिलो तक होती है। इसके कारण उन्हें बेहतर मुनाफा मिल रहा है।

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    2018 से कर रहे मुर्गीपालन का व्यवसाय :

    विशुनदेव ने वर्ष 2018 में मुर्गीपालन का प्रशिक्षण लेकर व्ययसाय आरंभ किया था। इस दौरान उन्हें सोनाली प्रजाति की जानकारी मिली। पहने छोटे स्तर पर इसका पालन शुरू किया और बेहतर मुनाफा मिलने के बाद उन्होंने वृहद पैमाने पर इसका उत्पादन शुरू किया। वे बताते हैं कि मुर्गी पालन के लिए अपने क्षेत्र के लिए सोनाली वरदान है। इसका रखरखाव काफी सुलभ है, जबकि बीमारी की संभावना काफी कम रहने के कारण नुकसान न के बराबर होता है।

    क्या है सोनाली प्रजाति की विशेषता :

    सोनाली प्रजाति की उपलब्धता मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल के मालदह जिले से होती है। 20 से 25 ग्राम का चूजा उन्हें उपलब्ध कराया जाता है। जिसकेा मूल्य 30 से 25 रुपये आता है। जो 80 से 85 दिनों में डेढ़ से दो किलोग्राम वजन का हो जाता है। इसके भोजन के लिए मक्का का दर्रा व हरा चारा उपलब्ध कराया जाता है। जबकि इसमें रोग की संभावना कम रहने के कारण दवाओं का प्रयोग काफी कम होता है। चूजा उपलब्ध होने के बाद इसे किसी प्रकार का टीका या दवा नहीं दिया जाता है। इसकी बिक्री तीन सौ रूपये प्रतिकिलों औसतन होता है। विशुनदेव बताते हैं कि वर्ष में चार बार वे चूजा से मुर्गा तैयार करते हैं, इससे उन्हें तीन से चार लाख तक की आमदनी होती है।

    युवाओं को भी देते हैं प्रशिक्षण :

    मुर्गी पालन को लेकर वे युवाओं को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। इसके साथ ही रेडियो के माध्यम से भी उनके मुर्गीपालन का प्रसारण हो चुका है। उन्होंने बताया कि यह बेहतर व्यवसाय है और युवा सोनाली प्रजाति का चयन कर बेहतर मुनाफा कमा सकते हैं। मुर्गीपालन व उन्नत कृषि के लिए उन्हें कई बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है। कहा कि अगर सरकारी स्तर पर मदद मिले तो यह युवाओं के लिए कामधेनु साबित हो सकती है।