सड़क के अभाव में पगडंडी पर जिंदगी, बीमारों को खटिया पर ढोकर पहुंचाना पड़ता है अस्पताल
बिहार के कुछ गांवों में सड़क न होने से लोगों का जीवन कठिन हो गया है। बीमारों को खटिया पर लादकर अस्पताल ले जाना पड़ता है। ग्रामीणों ने सरकार से कई बार गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। सड़क के अभाव में ग्रामीण नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं।

सड़क के अभाव में पगडंडी पर जिंदगी
तौफिक आलम, फलका (कटिहार)। बंकू टोला में बिजली जरूर पहुंची, लेकिन सड़क नहीं। कई मूलभूत सुविधाओं का यहां अभाव है। इस गांव में सड़क नहीं रहने के कारण पगडंडी पर चलने की बाध्यता बनी हुई है। जब मोहल्ले के कोई व्यक्ति गंभीर बीमार पड़ जाए तो ऐसी स्थिति में एंबुलेंस की कौन कहे, एक अदद टेंपो भी वहां नहीं पहुंच पाता।
वैसे में मरीजों को खटिया पर लादकर करीब दो किलोमीटर पगडंडी पर चलकर मुख्य सड़क तक आना होता है, तब जाकर उसे फलका सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया जाता है। इस समस्या पर आज तक जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं गया।
पगडंडी पर चलने की बाध्यता
कोढ़ा विधान सभा के मानचित्र पर बसे बंकू टोला की सात दशक में भी तस्वीर नहीं बदली है। यहां विकास की रोशनी नहीं पहुंच पाई है। सड़क नहीं रहने के कारण पगडंडी पर चलने की बाध्यता बनी हुई है।
जब मोहल्ले के कोई व्यक्ति गंभीर बीमार पड़ जाता है तो उसे खटिया पर लाद कर करीब दो किलोमीटर पगडंडी का रास्ता तय कर मुख्य सड़क पहुंचना पड़ता है। तब राेगी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फलका पहुंच पाता है।
सड़क के कारण जल्दी नहीं होती शादी
सड़क नहीं रहने का साइड इफेक्ट बेटे-बेटियों के विवाह पर भी पड़ता है। जल्द उनका विवाह तय नहीं हो पाता है। बरसात के दिनों में गांव के चारों तरफ जलमग्न रहता है। बंकू टोला में करीब 300 की आबादी निवास करती है। जिसमें अधिकांश मजदूर के साथ-साथ गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले हैं।
ग्रामीण हंसराज मुंडा, दुखी दास मुण्डा, बेजू मुण्डा, इंदर मुण्डा, अर्जुन मुण्डा, कमलेश्वरी शर्मा, कोनी मोसेमात, दासो, कबूतरी मोसेमात, मुसनी देवी आदि ने कहा कि हम लोग पिछले चार दशक से यहां बसे हुए हैं। सड़क नहीं रहने के कारण आवागमन में काफी दिक्कत होती है। बारिश के दिनों में भारी परेशानियों से दो-चार होना पड़ता है।
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