त्योहार और चुनाव भी नहीं रोक पा रहा प्रवासियों की राह
कटिहार। दशहरे की धूम व चुनावी माहौल भी प्रवासियों की राह नहीं रोक पा रही है। कोर
कटिहार। दशहरे की धूम व चुनावी माहौल भी प्रवासियों की राह नहीं रोक पा रही है। कोरोना संक्रमण काल में लौटे प्रवासी मजदूर अपने घर रोजगार की चाह में थककर परदेश की ओर पलायन कर रहे हैं। बताते चलें कि पर्वों के मौसम में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी होती थी और उनके आगमन से त्योहार का रंग गहरा होता था। दशहरा के पूर्व ही मजदूरों का जत्था वापस घर की ओर लौटने लगता था, जिनकी वापसी महापर्व छठ के बाद होती थी, लेकिन इस बार स्थिति पूरी तरह उलट है।
रेलवे स्टेशनों पर काफी संख्या में पहुंचे प्रवासी मजदूर परदेश जाने की तैयारी में जुटे रहते हैं। त्योहार के दौरान उन्हें घर से जाने की टीस तो है, लेकिन परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ उन्हें विवश कर रहा है। मायूस चेहरा और बुझा मन लेकर प्रवासी मजदूर ट्रेन पर सवार हो रहे हैं। बताते चलें कि कोरोना संक्रमण काल में वापस लौटे मजदूरों को अपने घर ही रोजगार देने की घोषणा तो खूब हुई, लेकिन इसपर अमल नहीं हो पाया। काफी संख्या में लौट रहे प्रवासी मजदूरों की टोली अपने घर रोजगार मिलने के दावों की पोल खोल रही है।
व्यवस्था को कोस रहे मजदूरों के चेहरे पर थी दर्द की झलकियां :
रविवार को कटिहार रेलवे स्टेशन पर परदेश जाने के लिए पहुंचे फलका के प्रवासी मजदूर डोमन साह, इसरत आलम, नितिश कुमार, बिनोद कुमार, भुवन मेहता, अररिया आलोक भगत, मु. इदरीश आदि ने बताया कि वे रोजगार का इंतजार कर थक चुके हैं। उनकी जमा पूंजी भी समाप्त हो गई है और घर पर रुके तो बच्चे भूख से बिलबिला उठेंगे। आखिर त्योहार तो अगले साल भी आएगा, लेकिन अगर रोजगार नहीं ला तो दो वक्त कि रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल होगा। अब तो परदेश ही उनका सहारा बनेगा। इसलिए वे रोजगार की तलाश में पलायन को विवश हो रहे हैं।
वोट से नहीं भरेगा पेट बर्बाद हो चुका है खेत :
प्रवासी मजदूरों की माने तो चुनाव के दौरान अपने घर से बाहर जाने का उन्हें मलाल तो है, लेकिन क्या वोट देने से पेट भरेगा.। उनकी बात भी सही है। प्रवासियों ने बताया कि बरसात व बाढ़ के कारण खेत भी बर्बाद हो चुका है। धान की फसल डूबने के कारण अब साल भर का अनाज मिलना भी मुश्किल है। कहा कि प्रत्याशियों व सरकार के दावों पर अब उन्हें भरोसा नहीं रह गया। आजतक अपने क्षेत्र में रोगजार की घोषणा हुई है, लेकिन दर्द यह है कि दो वक्त की रोटी के लिए आज भी परदेश ही उनका सहारा बना हुआ है।