दियारा के काला सोना पर ग्रहण, किसानों के अरमानों पर फिर रहा पानी
कटिहार के बरारी-कुर्सेला में गंगा दियारा की उपजाऊ भूमि पर कलाई (उड़द) की खेती पिछले छह वर्षों से गंगा नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव के कारण प्रभावित है। पहले किसान बिना खाद-पानी के अच्छी पैदावार करते थे और अच्छी कमाई होती थी, लेकिन बार-बार बाढ़ आने से किसानों को नुकसान हो रहा है।
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उड़द की खेती हो रही प्रभावित। (जागरण)
भूपेन्द्र सिंह, बरारी (कटिहार)। बरारी-कुर्सेला के गंगा दियारा के उपजाऊ जमीन में काला सोना के नाम से प्रसिद्ध कलाई (उड़द) फसल की खेती पर छह वर्षों से ग्रहण लग गया है।
इसके पीछे का कारण गंगा दियारा के विस्तृत भू-भाग से गंगा नदी के पानी का देर से उतरना माना जा रहा है। कम लागत में बेहतर उत्पादन को लेकर पांच वर्ष पूर्व यहां के सर्वाराम मौजा दियारा, अठनिया दियारा, छप्पन मिलिक, बकिया सुखाय, कांतनगर, कुर्सेला के गोबराही दियारा के करीब एक हजार से अधिक हेक्टेयर में कलाई फसल की बोआई को लेकर किसानों में होड़ लगी रहती थी।
अमूनन अगस्त माह में बाढ़ का पानी उतरने के साथ ही किसान गंगा दियारा में कामत बनाकर इसकी बोआई शुरू कर देते थे। गंगा दियारा में खेती-किसानी से चाय-पान की दुकाने तक खुल जाती थी। लेकिन अब वो बात नहीं देखी जा रही है।
इसके पीछे गत पांच वर्षो से बाढ़ के समय गंगा नदी के जलस्तर में उतार चढ़ाव का कारण माना जा रहा है। इस वर्ष भी इस इलाके में डेढ़ माह के अंतराल में तीन बार गंगा नदी के जलस्तर में उफान आया जिससे बोआई में देरी से इसकी खेती प्रभावित हो गई।
किसान चतुर्भुज यादव, सुचिन यादव, अवधेश यादव, किशुन महतो आदि कहते है कि गंगा दियारा के उपजाऊ भूमि पर बिना खाद पानी के ही कलाई फसल की बंपर पैदावार होती थी। नदी के पानी उतरने के साथ खेतों में नमी पर प्रति एकड़ करीब सात से आठ किलो बीज को छीट दिया जाता है जिसकी लागत महज सात से आठ सौ रुपये आती थी।
तीन माह बाद बिना खाद-पानी के प्रति एकड़ करीब छह से सात क्विंटल कलाई (उड़द) की पैदावर होती थी। इसकी किसानों को करीब 35 से 40 हजार तक की आमदनी हो जाया करती थी। कलाई से होने वाली गाढ़ी कमाई के कारण ही इसे काला सोना भी कहते हैं।
पिछले पांच-छह वर्षो से गंगा मैया के सितंबर माह तक रौद्र रूप के कारण किसानों को कलाई की खेती से हाय-तौबा करनी पड़ रही है।
काला सोना पर अपराधियों की रहती थी गिद्ध दृष्टि
काला सोना के नाम से चर्चित कलाई की फसल पर अपराधियों की हमेशा से गिद्ध दृष्टि लगी रहती थी। जैसे ही फसल पकनी शुरू होती थी, गंगा दियारा में विभिन्न आपराधिक गिरोहों की सक्रियता फसल लूट एवं रंगदारी को लेकर बढ़ जाती थी।
किसानों एवं फसलों की सुरक्षित कटाई व तैयारी को लेकर पुलिस मुख्यालय द्वारा गंगा दियारा में चार से पांच अलग-अलग जगहों पर सैप जवान व पुलिस बल की तैनाती की जाती थी। पांच वर्षों से बार-बार बाढ़ की विभीषिका ने जहां किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया है वही आपराधिक गिरोह भी ठंडे पड़ गए हैं।

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