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    कटिहार चुनाव: एनडीए-महागठबंधन में कांटे की टक्कर, ओवैसी और पीके बिगाड़ेंगे खेल?

    Updated: Fri, 24 Oct 2025 02:43 PM (IST)

    कटिहार जिले की सातों विधानसभा सीटों पर एनडीए और महागठबंधन के बीच सीधी टक्कर है, लेकिन ओवैसी की पार्टी, जनसुराज और बागी उम्मीदवार चुनावी समीकरण बिगाड़ सकते हैं। कटिहार, कदवा, बलरामपुर, मनिहारी, बरारी, कोढ़ा और प्राणपुर में मुकाबला दिलचस्प है, जहां बागियों और नए दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है। ध्रुवीकरण और वोटों का बंटवारा परिणाम को अप्रत्याशित बना सकता है।

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    कटिहार में चुनावी परिदृश्य पेचीदा, एनडीए-महागठबंधन की सीधी टक्कर में ओवैसी-जनसुराज का पेच

    संवाद सहयोगी, कटिहार। जिले की सातों विधानसभा सीटों पर इस बार सीधी टक्कर एनडीए और महागठबंधन के बीच होती दिख रही है। हालांकि, इस आमने-सामने की जंग के बीच एआईएमआईएम (औवेसी), जनसुराज और बागियों की मौजूदगी समीकरण बिगाड़ सकती है। जिले की राजनीति में ध्रुवीकरण का प्रभाव हमेशा निर्णायक रहा है, और इस बार भी वोटों का बंटवारा किसी की हार-जीत तय करेगा।

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    2020 के चुनाव में बलरामपुर, मनिहारी और कदवा सीट पर महागठबंधन का परचम लहराया था, जबकि प्राणपुर, बरारी, कटिहार और कोढ़ा पर एनडीए ने जीत दर्ज की थी। इस बार भी दोनों गठबंधन अपने पुराने गढ़ बचाने की कोशिश में हैं, लेकिन मैदान में उतरे बागी उम्मीदवार और नए विकल्प बने जनसुराज-औवेसी का समीकरण सबकी रणनीति उलझा सकता है।

    दूसरे शब्दों में कहे तो जिले के चुनावी परिदृश्य में बागियों, औवेसी की पार्टी और जनसुराज ने समीकरण को पूरी तरह पेचीदा बना दिया है। ध्रुवीकृत वोटिंग पैटर्न और बागी कारक बनकर इस बार कई सीटों का परिणाम अप्रत्याशित बना सकते हैं।

    विधानसभा कटिहार:

    कटिहार में हर बार की तरह इस बार भी सीधी भिड़ंत एनडीए और महागठबंधन के बीच है। लेकिन इस बार महागठबंधन से सौरभ अग्रवाल की एंट्री ने माहौल गरमा दिया है।

    भाजपा के चार बार के विधायक तारकिशोर प्रसाद को इस बार चुनौती दे रहे हैं। सौरभ अग्रवाल भाजपा एमएलसी अशोक अग्रवाल के पुत्र हैं। निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे रामप्रकाश महतो (राजद के पूर्व मंत्री) महागठबंधन के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। जनसुराज के मो. गाजी शरीफ भी चुनावी समीकरण में नई गुत्थी जोड़ रहे हैं।

    शहर के मतदाता परंपरागत रूप से भाजपा के पक्ष में रहते हैं, लेकिन इस बार सौरभ के प्रभाव का फैक्टर हो सकता है।

    कदवा विधानसभा:

    कदवा में दोनों गठबंधन को अपने बागियों को साधने की बड़ी चुनौती है। दो बार से कांग्रेस के शकील अहमद खान यहां से विधायक हैं। इस बार एनडीए की ओर से जदयू ने पूर्व सांसद दुलाल चंद्र गोस्वामी को उतारा है। पिछले चुनाव में भाजपा कैडर की नाराजगी ने गठबंधन को नुकसान पहुंचाया था, हालांकि इस बार वह आंशिक रूप से कम दिख रही है। राजग के लिए जदयू से बागी होकर निर्दलीय उतरे पूर्व मंत्री हिमराज सिंह, महिला नेत्री आशा सुमन और लोजपा के राजीव रंजन मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं।

    वहीं महागठबंधन को जनसुराज के शहरयार, राजद के पूर्व प्रखंड अध्यक्ष सुरेश यादव, निर्दलीय सादिक हुसैन और एआईएमआईएम के शाकिर रेजा से चुनौती मिल रही है। यहां एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर भी असर डाल सकता है।

    बलरामपुर विधानसभा:

    मुस्लिम बाहुल्य बलरामपुर में मुकाबला बेहद रोचक बन गया है। माले के दो टर्म के विधायक महबूब आलम और एनडीए के घटक दल लोजपा (रामविलास) से संगीता देवी के बीच सीधी टक्कर दिख रही है। 60-40 प्रतिशत मुस्लिम-हिंदू जनसंख्या वाले इस इलाके में जनसुराज के असहब आलम महागठबंधन के वोट बैंक पर सेंध लगा सकते हैं, जबकि राजग के बागी वरुण झा वोटों का समीकरण बिगाड़ सकते हैं।

    एआईएमआईएम से आदिल हसन और इसके बागी मो. मुअज्जम व मो. जिन्नाह भी मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं। इसके अलावा मैदान में उतरे नौ मुस्लिम उम्मीदवार वोट बिखराव का कारण बन सकते हैं।

    मनिहारी विधानसभा:

    यहां भी मुकाबला दिलचस्प है। कुल 60 प्रतिशत हिंदू और 40 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस के मनोहर प्रसाद सिंह और जदयू के शंभू कुमार सुमन के बीच सीधी टक्कर है। जनसुराज के बबलू सोरेन त्रिकोणीय मुकाबला बना सकते हैं। राजग को इस बार लोजपा की साझेदारी का लाभ मिल सकता है।

    पिछले चुनाव में लोजपा अकेले लड़ी थी और करीब 20 हजार वोट प्राप्त किए थे। इस बार उस वोट का ट्रांसफर एनडीए के लिए फायदेमंद हो सकता है। बीएसपी से उपेंद्र मंडल भी मैदान में हैं, हालांकि मुकाबला मुख्य रूप से एनडीए-महागठबंधन के बीच ही सिमटा नजर आ रहा है। सचिन कुमार मुर्मू ने नामांकन वापस लेकर जदयू में अपनी आस्था व्यक्त कर दी है।

    बरारी विधानसभा:

    बरारी सीट पर भी मुकाबला कांटे का होता जा रहा है। यहां 68 प्रतिशत हिंदू और 32 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण करीब 42 प्रतिशत है, जिससे महागठबंधन को बढ़त मिलती दिखती है। कांग्रेस ने इस बार तौकीर आलम को उम्मीदवार बनाया है, जो पहली बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके पिता मंसूर आलम तीन बार विधायक रह चुके हैं।

    राजद को टिकट नहीं मिलने से उसके कैडरों में असंतोष है, जिससे महागठबंधन के वोट में सेंध पड़ सकती है। पिछले चुनाव में ओवैसी की मौजूदगी से राजद को नुकसान हुआ था। इस बार भी ऐसा होने की आशंका है। औवेसी की पार्टी से मो मतीउर रहमान चुनावी मैदान में हैं। हालांकि जन सुराज प्रीतम प्रसून की उपस्थित राजग को भी परेशान कर सकती है। निर्दलीय संजू सिंह ने नामांकन पर्चा वापस लेकर महागठबंधन में आस्था व्यक्त की है।

    कोढ़ा विधानसभा:

    कोढ़ा में परंपरागत रूप से सीधा मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच होता आया है, लेकिन इस बार जनसुराज की एंट्री से त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन गए हैं।

    स्थानीय प्रतिनिधियों से नाराजगी का फायदा जन सुराज को मिल सकता है। यहां भाजपा से कविता देवी और कांग्रेस से पूनम कुमारी आमने-सामने हैं। जन सुराज से निर्मल कुमार राज समेत आठ प्रत्याशी चुनावी मैदान में हैं। यहां का चुनाव परिदृश्य हमेशा आमने-सामने की रही है।

    प्राणपुर विधानसभा:

    प्राणपुर का चुनाव सबसे अधिक रोचक हो गया है। चुनावी समीकरण बदल सकती है। महागठबंधन ने बड़ा दांव चला है। इस बार कांग्रेस से उम्मीदवार तौकीर आलम ने राजद के इशरत प्रवीण के पक्ष में अपना नामांकन वापस लिया। यहां पिछले दो चुनाव से दोनो चुनावी मैदान में उतरते रहे थे। जिसका फायदा भाजपा को मिलता रहा था। 2020 में भाजपा ने यहां सिर्फ 1.5 प्रतिशत वोट अंतर से जीत दर्ज की थी।

    इस पर जनसुराज के कुणाल निषाद से राजग को और खतरा बढ़ गया है। हालांकि, एआईएमआईएम से मो अफताब आलम भी चुनावी मैदान में हैं। इनका सूर्जापूरी मुस्लिम पर अच्छी पकड़ बताई जाती है। इस विधान सभा में लगभग 50-50 प्रतिशत हिंदू-मुस्लिम मतदाता है। मलहा और केवट जाति का वोट भी लगभग 18 प्रतिशत है। ऐसे में मामूली उलट फेर चुनावी नतीजा प्रभावित कर सकता है।