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    बनारस की साड़ी व फिरोजाबाद की चूड़ी होती थी बिहार में एक माह तक चलने वाले काढ़ागोला माघी पूर्णिमा मेले की पहचान

    By Rajeev ChoudharyEdited By: Ashish Pandey
    Updated: Thu, 09 Feb 2023 04:43 PM (IST)

    Katihar Kadhagola Maghi Purnima Fair कभी अलग पहचान रखनेवाला काढ़ागोला गंगा घाट माघी पूर्णिमा मेला अब गुमनामी के अंधेरो में खोता जा रहा है। राजा-महाराजाओं के आगमन से अपनी भव्यता बिखेरने वाला काढ़ागोला का माघ मेला अब साल-दर-साल सिमटता जा रहा है।

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    गुमनामी के अंधेरो में खोता काढ़ागोला गंगा घाट पर लगने वाला माघी पूर्णिमा मेला, पहुंचपथ पर लगा बोर्ड। जागरण

    भूपेन्द्र सिंह, (बरारी) कटिहार: कभी क्षेत्र में अपनी अलग पहचान रखनेवाला काढ़ागोला गंगा घाट पर लगने वाला माघी पूर्णिमा मेला अब गुमनामी के अंधेरो में खोता जा रहा है। राजा-महाराजाओं के आगमन से अपनी भव्यता बिखेरने वाला काढ़ागोला का माघ मेला साल-दर-साल सिमटता जा रहा है। पांच दशक पूर्व तक यहां मेले में दूरदराज से लोग पहुंचते थे। बनारस की साड़ी से लेकर फिरोजाबाद की चूड़ी यहां लगने वाले मेले का मुख्य आकर्षण होती थीं।

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    यूपी, राजस्थान सहित अन्य राज्यों के दुकानदार लगाते थे दुकान

    कुरसेला स्टेट के रघुवंश नारायण सिंह के द्वारा शुरू किए गए इस मेले की तैयारी महीनों पूर्व से ही शुरू हो जाती थी। मेलें में कोलकाता, राजस्थान, वाराणसी, इलाहाबाद, बनारस, कानपुर, झारखंड, पटना आदि दूरदराज के बड़े शहरों से बड़ी संख्या में दुकानदार मेले में दुकान लगाने पहुंचते थे। मेले में विविध प्रकार के मसाला, फल्, कपड़ा, बर्तन, फर्नीचर आदि की बिक्री होती थी। बनारसी साड़ी व फिरोजाबाद की चूड़ी खरीदने हजारों की संख्या में लोग आस-पास के जिलों से पहुंचते थे। यही नहीं, श्रद्वालुओं और यहां पहुंचने वाले राजा-महाराजाओं के मनोरंजन के लिए थिएटर, सर्कस, जादुगरी, यमपुरी नाच, तैराकी, कुश्ती आदि का भी आयोजन होता था।

    लाव-लश्कर के साथ पहुंचते थे कई स्टेट

    बताया जाता है कि एक माह तक चलने वाले इस मेले में राजा-रजवाड़ाओं का जमावड़ा लगता था। दर्जनों एकड़ में लगने वाले मेले में दरभंगा महाराज की अगुवाई में बनमनखी के तत्कालीन राजा कृत्यानंद सिंह, पूर्णिया के राजा भोलाचन्द्र सिंह, नवगछिया साहु परबत्ता के राजा पीरनी लाल आदि घोड़े के रथ पर अपनी महारानी के साथ पहुंचते, यहां तंबू लगाकर प्रवास करते और गंगा स्नान भी करते थे। बड़ी संख्या में दूरदराज से श्रद्वालु टप्पर लगे बैलगाड़ी, भैंसा-गाड़ी और पांव-पैदल पहुंचकर मेले का आनंद उठाते थे।

    मेले में होती थी सालभर की खरीदारी

    ग्रामीण विमल मालाकार, मिथिलेश सिंह आदि ने बताया कि यहां लगने वाले मेले में आने वाले कई लोग साल भर के लिए खाद्य सामग्री व मसालों की खरीदारी करते थे। मेले का एक वर्ष तक लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता था। लेकिन अब गंगा के बढ़ते कटाव से काढ़ागोला गंगा घाट पर लगने वाले मेले का दायरा और इसकी पहचान सिमटती जा रही है।

    क्या कहते हैं विधायक?

    बरारी विधायक विजय सिंह ने कहा कि काढ़ागोला गंगा तट पर लगने वाले माघी पूर्णिमा मेले से लोगों की आस्था व श्रद्धा जुड़ी हुई है। उन्होंने कहा कि मेले के विकास के लिए इसे पर्यटनस्थल के रूप में विकसित करने की हरसंभव कोशिश की जाएगी।