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    रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से बढ़ रहा खतरा

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    Updated: Tue, 03 May 2016 06:36 PM (IST)

    कटिहार। रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुध इस्तेमाल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। रासायनिक उर्वर

    कटिहार। रसायनिक उर्वरकों के अंधाधुध इस्तेमाल से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है। रासायनिक उर्वरकों के बेइंतहा इस्तेमाल से जहां खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है, वहीं ¨सचाई के लिए पानी की भी कमी होती जा रही। 60 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही देश में रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक व् संकर बीजों के इस्तेमाल में भी इजाफा हुआ।

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    केंद्रीय रासायनिक और उर्वरक मंत्रालय के रिपोर्ट अनुसार 1950.51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का इस्तेमाल करते थे, जो अब कई सौ गुणा बढ़कर 310 लाख टन हो गया है। इसमें 70 लाख टन विदेशों से आयात किया जाता है। निश्चित ही बढ़ रहे रासायनिक उर्वरक के इस्तमाल से पैदावार भी बढ़ी है लेकिन खेत व खेती के साथ पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

    खेतीे व मानव जीवन पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव

    - जल, मृदा और वायु प्रदुषण का है बड़ा कारक

    - मिटटी की उर्वरा शक्ति हो रही क्षिण्ण

    - मिट्टी के क्षारीय होने से घट रही पैदावार

    -यूरिया व डीएपी जैसे उर्वरक के अधिकाधिक इस्तेमाल से मिट्टी से लोप हो रहे प्राकृतिक तत्व जिससे मिट्टी के कणों में पानी संग्रह की क्षमता हो रही कम, परिणामस्वरूप अधिक ¨सचाई की आवश्यकता।

    -यूरिया का बीजों के साथ सीधे संपर्क होने से अंकुरण दर में भी होती है कमी

    -रासायनिक उर्वरकों के असमान इस्तेमाल से दलहन फसलों की ग्रंथि निर्माण व् वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर भी पड़ रहा विपरीत प्रभाव

    -यूरिया के इस्तेमाल से ग्रीन हाउस गैस, नाइट्रस ऑक्साइड, वायुमंडल में उपस्थित ओजोन परत को भी पहुंचा रहा नुकसान

    -रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित इस्तेमाल से उत्पादों में भी भी विषाक्तता बढ़ रही है, जिससे कई तरह की बीमारी बढ़ रही है। खच्स कर बच्चों में बेबी ब्लू ¨सड्रोम जैसी बीमारी घर कर रही है।

    -वहीं कीटनाशकों के इस्तमाल ने खेतों से किसानों के मित्र जीव कहे जाने वाले कीटों को भी गायब कर दिया। ये जीव जैविक क्रियाओं द्वारा मिट्टी को उर्वरा बनाये रखने में मददगार होते है।