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    रसायनिक उर्वरकों के प्रयोग से बंजर हो रही जमीन

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    Updated: Sat, 28 Nov 2015 07:15 PM (IST)

    कटिहार [विनोद कुमार राय]। रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही ह

    कटिहार [विनोद कुमार राय]। रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। वहीं यह पर्यावरण असंतुलन बढ़ाने की भी वजह बन रही है। 60 के दशक में हुई हरित क्रांति की शुरुआत के साथ ही देश में रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक व संकर बीजों के इस्तेमाल में इजाफा हुआ। केंद्रीय रासायनिक और उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 1950-51 में भारतीय किसान मात्र सात लाख टन रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करते थे। जो अब कई गुणा बढ़कर 310 लाख टन हो गया है। इसमें 70 लाख टन विदेशों से आयात किया जाता है। निश्चित ही बढ़ रहे रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से पैदावार भी बढ़ी है, पर खेत, खेती और पर्यावरण पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

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    क्या पड़ रहा है प्रतिकूल असर :

    - जल, मृदा और वायु प्रदुषण का बन रहा प्रमुख कारक

    - मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है।

    - मिट्टी के क्षारीय होने से पैदावार घट रही है।

    - यूरिया व डीएपी जैसे उर्वरक के अधिकाधिक प्रयोग से मिट्टी से प्राकृतिक तत्व का लोप हो रहा है।

    - मिट्टी के कणों में पानी संग्रह की क्षमता कम हो रही है और अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है।

    - यूरिया का बीजों के साथ सीधे संपर्क होने से अंकुरण दर में कमी आती है।

    - नाइट्रोजन अस्थितिकरण का प्रभाव बढ़ रहा है।

    - ओजोन परत को भी नुकसान पंहुचा रही है।

    - खास कर बच्चों में बेबी ब्लू सिंड्रोम जैसी बीमारी बढ़ रही है।

    क्या कहते है कृषि वैज्ञानिक :

    कृषि वैज्ञानिक पंकज कुमार का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के अगर कमी नहीं लायी गयी तो मानव जीवन पर इसका काफी दुष्प्रभाव पड़ेगा। रासायनिक उर्वरकों को कम करने के लिए उन्होंने हर फसल से पूर्व मिट्टी की जांच को अहम बताया। वहीं नीम कोटेड यूरिया के प्रयोग की सलाह दी। इस यूरिया से पौधों को प्राकृतिक कीटनाशक मिलती है और इसमें उपस्थित नाइट्रोजन विनाइट्रीकरण भी कम करता है। साथ ही साथ उन्होंने जैविक उर्वरकों के बदले कम्पोस्ट खाद, वर्मी कम्पोस्ट, मुर्गी खाद के अधिकाधिक प्रयोग पर बल दिया। उन्होंने कहा कि समन्वित पोषक प्रबंधन बेहद जरूरी है।