कतरनी धान की खेती से आत्मनिर्भर बने योगेन्द्र सिंह, रामगढ़ के प्रेरणादायक किसान
कैमूर रामगढ़ के किसान योगेन्द्र सिंह ने खेती को व्यवसायिक रूप देकर सफलता पाई है। उन्होंने कतरनी धान की उन्नत किस्म की खेती शुरू की और आत्मनिर्भर बने। ...और पढ़ें

संवाद सूत्र, रामगढ़(कैमूर)। रामगढ़ प्रखंड के गोड़सरा गांव के किसान योगेन्द्र सिंह ने यह साबित कर दिया है कि अगर खेती को व्यवसायिक सोच और मेहनत से जोड़ा जाए तो यह किसी भी पेशे से कम नहीं है। दो वर्ष पूर्व उन्होंने उन्नत किस्म की कतरनी धान की खेती शुरू की और आज न केवल वे आत्मनिर्भर बने हैं, बल्कि गांव के अन्य किसानों के लिए भी प्रेरणा बन गए हैं।
इस बार योगेन्द्र ने 22 बीघा खेत में कतरनी धान की रोपनी की। लगभग 120 दिन की इस प्रजाति ने खेत में सोने सी चमक बिखेर दी। बड़ी-बड़ी बालियों से भरी फसल देखकर किसान के चेहरे पर मुस्कान है। रोगमुक्त पौधों ने न सिर्फ उपज बढ़ाई बल्कि खर्च भी घटाया। प्रति बीघा छह से सात क्विंटल धान आसानी से निकल रहा है, जो किसानों के लिए लाभकारी है।
मजदूरी का झंझट खत्म
धान कटाई का सबसे बड़ा सिरदर्द मजदूरी का खर्च होता है। लेकिन योगेन्द्र की खेती में यह समस्या उलट गई है। मवेशियों के लिए चारा पाने की लालसा में मजदूर खुद धान काटने खेत पहुंच जाते हैं। इससे समय और पैसे दोनों की बचत होती है।
सब्ज़ी की खेती से अतिरिक्त आय
धान की फसल कटते ही खेत खाली नहीं पड़े रहते। योगेन्द्र तुरंत सब्ज़ी की खेती शुरू कर देते हैं। आलू, प्याज, गोभी, बैंगन, टमाटर जैसी फसलें पूरे साल उनकी आय का साधन बनती हैं। सब्ज़ियों की स्थानीय बाजार में अच्छी खपत होती है, जिससे परिवार की गाड़ी लगातार आगे बढ़ रही है।
त्योहारों में होती है मांग
कतरनी धान से निकला चावल और चूड़ा की त्योहारों में अधिक मांग रहती है। छठ और दीपावली जैसे अवसरों पर व्यापारी खुद गांव पहुंचकर चावल खरीद लेते हैं। इतना ही नहीं, अग्रिम भुगतान कर बुकिंग भी कर जाते हैं। इससे किसान को न तो बाजार में जाने की परेशानी होती है और न ही दाम गिरने का डर।
खेती से आत्मनिर्भरता की ओर
योगेन्द्र का कहना है कि यदि किसान खेती को व्यवसाय की तरह अपनाएं तो कभी नुकसान नहीं होगा। मेहनत और योजना से खेती ही सबसे बड़ा सहारा बन सकती है। उनके अनुभव से यह साफ है कि नई तकनीक और प्रजाति के प्रयोग से खेती में चमत्कार संभव है।

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