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    कैमूर में विकास की नई इबारत लिख रहीं मूर्ति निर्माण कला में सुशीला

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 04 Jan 2021 11:08 PM (IST)

    कहा जाता है की इंसान के अंदर दृढ़ इच्छा शक्ति और लगन हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है।

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    कैमूर में विकास की नई इबारत लिख रहीं मूर्ति निर्माण कला में सुशीला

    कैमूर। कहा जाता है की इंसान के अंदर दृढ़ इच्छा शक्ति और लगन हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। ऐसा व्यक्ति ही समाज में मिसाल बनता है। जिसका लोग अनुशरण करते हैं। अगर महिलाएं इस तरह का कारनामा करती हैं तो इसकी चर्चा सर्वत्र होती है। पुरुष प्रधान समाज में अक्सर हर कला में पुरुष ही अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लेकिन मोहनियां नगर में इसके इतर ही देखने को मिलता है। मूर्ति निर्माण कला के क्षेत्र में सुशीला का सभी लोहा मानते हैं। मूर्ति निर्माण कला में इन्हें नई पहचान मिली है। जो अन्य महिलाओं के लिए मिसाल है। दुर्गापूजा, लक्ष्मी पूजा, सरस्वती पूजा, विश्वकर्मा पूजा इत्यादि अवसरों पर इन देवी देवताओं की मूर्ति की काफी मांग होती है। सभी अवसरों पर सुशीला इन देवी-देवताओं की अपने हाथों से प्रतिमा बनाकर तैयार करती हैं। वार्ड संख्या आठ निवासी रामअवतार प्रजापति की शादी कुदरा थाना के मोकरम गांव निवासी सुशीला से 32 वर्ष पूर्व हुई। ससुराल आने के बाद परिवार के पुश्तैनी धंधे को सुशीला ने देखा। अवसर विशेष पर देवी देवताओं की मूर्ति बनाना, इसके बाद मिट्टी के बर्तन निर्माण का कार्य पूरे साल चलता था। जिससे परिवार का भरण पोषण होता था। इस कार्य में गरीबी आड़े आ रही थी। परिस्थिति को देखते हुए अपने नाम के अनुरूप अपने को सुशीला ने स्थापित किया। उसने मूर्ति निर्माण में परिवार का सहयोग करना शुरू किया। पति रामअवतार प्रजापति सिर्फ पुआल से मूर्तियों का ढांचा तैयार कर देते हैं। उसमें भी सुशीला का योगदान होता है। इसके बाद मूर्ति निर्माण का पूरा काम करते हुए उक्त महिला को देखा जा सकता है। धूप में भी सुशीला पूरी तन्मयता के साथ मूर्तियों को रूप देने में लगी रहती हैं। इस कार्य में सुशीला काफी व्यस्त रहती हैं।

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    उन्होंने बताया कि उनको चार पुत्रियां और एक पुत्र हैं। मोहल्ले वासी भी सुशीला की इस कला का लोहा मानते हैं। सुशीला द्वारा बनाई गयी मूर्तियों की काफी मांग होती है। लोग दूर दूर तक मूर्तियों को ले जाते हैं। सुशीला को कुम्हार जाति को सरकारी सुविधा नहीं मिलने का मलाल है। सुशीला कहती है कि मिट्टी और पानी की व्यवस्था नहीं होने से परेशानी होती है। बर्तन बनाना हो या मूर्ति सबके लिए मिट्टी की जरूरत पड़ती है। यह आसानी से नहीं मिलता। महंगाई की मार से धंधा प्रभावित हुआ है। सरकारी तौर पर कुंभकारों को मिट्टी और पानी की व्यवस्था हो तभी इस जाति का भला होगा।