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    विदेशियों की थाली तक पहुंच रहा मोकरी का सोनाचुर चावल

    By JagranEdited By:
    Updated: Sat, 24 Nov 2018 03:00 AM (IST)

    मां मुंडेश्वरी की गोद में बसे व धान का कटोरा के नाम से चर्चित कैमूर जिला के भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव का सोनाचुर चावल विदेशों तक लोगों की थालियों में पहुंच रहा है। मोकरी गांव का चावल लेने के लिए दूसरे प्रदेशों के व्यापारी पूर्व से ही आ रहे हैं। नवंबर में धान की कटनी शुरू हो जाती है और किसान इसे कूटकर चावल का स्टॉक करने लगते हैं।

    विदेशियों की थाली तक पहुंच रहा मोकरी का सोनाचुर चावल

    मां मुंडेश्वरी की गोद में बसे व धान का कटोरा के नाम से चर्चित कैमूर जिला के भभुआ प्रखंड के मोकरी गांव का सोनाचुर चावल विदेशों तक लोगों की थालियों में पहुंच रहा है।

    मोकरी गांव का चावल लेने के लिए दूसरे प्रदेशों के व्यापारी पूर्व से ही आ रहे हैं। नवंबर में धान की कटनी शुरू हो जाती है और किसान इसे कूटकर चावल का स्टॉक करने लगते हैं।

    किसानों ने बताया कि धान की कटनी शुरू होते ही पश्चिम बंगाल के व्यापारी आने लगते हैं। वे यहां से सोनाचुर चावल खरीदकर बांग्लादेश भेजते हैं। दूसरे देशों में भी चावल भेजा जाता है। गांव के काफी लोग सऊदी, मॉरीशस, दुबई आदि में रहते हैं। वे यहां से चावल ले जाते हैं और वहां बिक्री भी करते हैं। विदेशों के जो लोग इसका स्वाद चख चुके हैं, वे हर साल इसे मंगवाते हैं।

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    खास सिवान में होती है इस धान की उपज

    किसानों ने बताया कि यह धान स्थानीय तौर पर गो¨वद भोग के नाम से जाना जाता है। इसका चावल बाहर सोनाचुर के नाम से जाना जाता है। यह धान खास सिवान में ही होता है। मोकरी गांव के पश्चिम मोकरी सिवान से लेकर बौरईं सिवान के बीच कृषि योग्य भूमि में गो¨वद भोग धान की उपज होती है। इसके अलावा यह धान किसी-किसी खास भूमि में होता है।

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    पूर्व में खेती थी आसान

    किसानों ने बताया कि पूर्व में इस धान की खेती काफी आसान थी, क्योंकि ¨सचाई की समस्या नहीं थी। आसानी से सभी खेत तक पानी पहुंच जाता था और रासायनिक खाद का प्रयोग भी कम होता था। आज के समय में रासायनिक खाद के प्रयोग से धान की उपज पर काफी प्रभाव पड़ा है। वहीं मिट्टी की गुणवत्ता में भी कमी आई है।

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    चावल की खासियत

    मोकरी गांव के पश्चिम स्थित सिवाना से बौरईं सिवाना तक उपजने वाले गो¨वद भोग धान की खासियत लोगों को काफी आकर्षित करती है। यह चावल गीला नहीं होता और मुलायम व हल्का होता है। यह काफी सुगंधित भी है।

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    1966 के अकाल में बो¨रग से सिंचाई

    मोकरी के किसान सत्यनारायण चौबे व संजय चौबे ने बताया कि यहां 1966 के अकाल में डेढ़ इंच की बो¨रग से पूरे गांव में धान की ¨सचाई की गई थी। जब पूरा जिला अकाल की चपेट में था तो मोकरी ही ऐसा गांव था, जहां फसल हुई थी। पहले पहाड़ से आने वाले पानी को किसान बस अपने खेतों तक पहुंचा देते थे। इसके बाद उन्हें कुछ नहीं करना पड़ता था।

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    रास्ते का हो गया अतिक्रमण

    किसानों ने बताया कि पूर्व में जिस रास्ते से पानी पहाड़ से आता था, उसका अतिक्रमण हो गया। इसके कारण अब पानी की समस्या हो गई है। अब तो पेयजल की भी समस्या है। गांवों में जिनके पास सिंचाई के साधन हैं, उनके लिए खेती आसान है। लेकिन जिनके पास साधन नहीं है उनके धान की फसल बर्बाद हो जा रही है। इस वर्ष भी पानी के अभाव में काफी फसल बर्बाद हो गई।

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